महाकुंभ नगर। आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, संस्कृति विभाग मप्र शासन द्वारा सेक्टर 18 स्थित एकात्म धाम शिविर में सोमवार को ‘शंकरो लोकशंकर’ कथा के तृतीय दिवस पर अद्वैत वेदांत की दिव्यता और आचार्य शंकर के जीवन प्रसंग पर कथा व्यास एवं राम जन्मभूमि न्यास के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंददेव गिरि ने श्रोताओं को भाव विभोर किया। कथा के दौरान अनेक साधु-संतों की दिव्य उपस्थिति रही, वहीं प्रख्यात उद्योगपति और डीमार्ट के संस्थापक राधाकिशन दमानी भी इस अवसर पर उपस्थित रहे।
आचार्य शंकर का जीवन: एक प्रेरणास्रोत
कथा के दौरान स्वामी गोविंददेव गिरि ने आचार्य शंकर के जीवन के प्रेरणादायक प्रसंगों का उल्लेख करते हुए बताया कि आचार्य शंकर ने अपने जीवन में करुणा और स्वभाव की कोमलता के साथ पंच महायज्ञ का आदर्श प्रस्तुत किया। उन्होंने समाज को वेदांत के उच्चतम स्तर तक पहुंचाने वाले भाष्यों और कर्मण्यता की प्रेरणा देने वाले स्तोत्रों के माध्यम से नई दिशा प्रदान की। स्वामी जी ने कहा कि आचार्य शंकर के ग्रंथों की गहराई तक पहुंचने के लिए उनके जीवन को समझना आवश्यक है।
स्वामी गोविंददेव गिरि ने आदि शंकराचार्य की अद्वितीय करुणा का उदाहरण देते हुए बताया कि जब एक कापालिक ने अनुष्ठान के लिए उनका मस्तक मांगा तो आचार्य शंकर सहर्ष उसे देने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने कहा कि परम तत्व की अनुभूति आचार्य शंकर के भीतर से प्रस्फुटित होती है। उनके ग्रंथों और स्तोत्रों में गहन ज्ञान और समाज में समन्वय स्थापित करने की भावना स्पष्ट रूप से प्रकट होती है।
गंगा और नर्मदा का पूजन: मातृ शक्ति की उपासना
स्वामी गोविंददेव गिरि ने अपने प्रवचन में कहा कि आदि शंकराचार्य ने गंगा और नर्मदा को मात्र नदियों के रूप में नहीं, बल्कि मां के रूप में देखा और उनकी पूजा की। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में नदियों को देवी के रूप में देखा जाता है, क्योंकि वे जीवनदायिनी होती हैं। आदि शंकराचार्य ने हमें सिखाया कि प्रकृति की पूजा केवल आध्यात्मिकता नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और अस्तित्व की पहचान भी है। उन्होंने गंगा और नर्मदा के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा कि इनका जल केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक शुद्धि का भी साधन है।
भव शंकर देशिक मे शरणम्: श्रद्धालु भाव-विभोर
कथा में जब स्वामी गोविंददेव गिरि की सुमधुर वाणी में आदि शंकराचार्य की महिमा में उनके शिष्य तोटकाचार्य द्वारा रचित ‘तोटकाष्टकम’ स्तोत्र का गायन हुआ तो उपनिषद सभागार ‘भव शंकर देशिक मे शरणम’ की दिव्यता से गूंज उठा। श्रद्धालु भाव-विभोर होकर अद्वैत वेदांत की गहराई में डूबते गए।
कथा के दौरान यह भी बताया गया कि जहाँ-जहाँ आचार्य शंकर गए, वहां-वहां समाज उनसे और उनके शिष्यों से प्रभावित होकर पुनः आराधना में संलग्न हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि आचार्य शंकर के जीवन और उनके कार्यों को तीन जन्मों में भी करना कठिन है। कथा के दौरान बताया गया कि जब-जब आचार्य शंकर किसी स्थान पर गए, उनके मुख से स्वतः ही स्तोत्र प्रकट हो गए।
समाज के लिए संदेश
स्वामी गोविंददेव गिरि ने कहा कि हमें आचार्य शंकर की शिक्षाओं को आत्मसात कर अपने जीवन में उतारने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि अद्वैत वेदांत केवल एक दर्शन नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला भी है। समाज में समन्वय, एकता और आध्यात्मिकता को बढ़ावा देने के लिए हमें आचार्य शंकर के विचारों का अनुसरण करना चाहिए।
महाकुंभ नगर में आयोजित यह कथा न केवल श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान कर रही है, बल्कि भारतीय संस्कृति और वेदांत दर्शन की गहराई को भी उजागर कर रही है।