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February 8, 2025 9:31 AM

देवउठनी एकादशी की कथा, महत्त्व, पूजा विधि, तैयारी और शुभ मुहूर्त

1. देवउठनी एकादशी क्या है?

देवउठनी एकादशी, जिसे देवप्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है, कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह तिथि भगवान विष्णु के चातुर्मास (चार महीने की योग निद्रा) से जागरण का प्रतीक मानी जाती है। इस दिन से सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है, जैसे विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन संस्कार आदि। इसे धार्मिक और सामाजिक रूप से अत्यधिक शुभ माना जाता है।

2. देवउठनी एकादशी की कथा

धार्मिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु चार महीने (आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक) योग निद्रा में रहते हैं। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते। कार्तिक शुक्ल एकादशी पर भगवान विष्णु जागते हैं, और तभी से शुभ कार्यों की शुरुआत मानी जाती है। कथा में यह भी कहा गया है कि इस दिन देवी तुलसी और भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह किया जाता है, जिसे धार्मिक रूप से अत्यंत शुभ और फलदायक माना गया है।

3. देवउठनी एकादशी का महत्त्व

देवउठनी एकादशी का धार्मिक महत्व अत्यंत गहरा है। यह दिन भगवान विष्णु की आराधना और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए विशेष होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, इस दिन की पूजा से समस्त कार्य सिद्धि और परिवार में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।

4. देवउठनी एकादशी की पूजा विधि

  • स्नान और व्रत संकल्प: इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
  • तुलसी-शालिग्राम पूजा: भगवान विष्णु और माता तुलसी का विवाह संपन्न करने के लिए तुलसी के पौधे को शालिग्राम की मूर्ति के साथ सजाएं।
  • दीपदान: भगवान विष्णु की पूजा करते समय दीप जलाएं और गंध, पुष्प, धूप आदि अर्पित करें।
  • विष्णु सहस्रनाम का पाठ: इस दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
  • आरती और प्रसाद वितरण: पूजा के अंत में भगवान विष्णु की आरती करें और प्रसाद को परिवारजनों में बांटें।

5. पूजा की तैयारी

  • तुलसी का पौधा और शालिग्राम की मूर्ति।
  • घी का दीपक, फूल, धूप, चंदन, और मिठाई।
  • पूजा के लिए आवश्यक सभी सामग्रियों को एकत्र करें जैसे कलश, पुष्पमाला, पान, सुपारी, नारियल आदि।

6. देवउठनी एकादशी के शुभ मुहूर्त

  • देवउठनी एकादशी की पूजा का समय सूर्योदय के बाद से लेकर दोपहर तक सर्वोत्तम माना गया है।
  • चंद्रोदय के समय तुलसी पूजन और भगवान विष्णु की आराधना की जा सकती है।
  • विशेष मुहूर्त की जानकारी के लिए स्थानीय पंचांग देखें, क्योंकि मुहूर्त स्थान के अनुसार बदल सकते हैं।

7. निष्कर्ष

देवउठनी एकादशी का व्रत धार्मिकता, आस्था और अध्यात्म का प्रतीक है। भगवान विष्णु की आराधना से सभी कष्टों का निवारण और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस दिन के व्रत और पूजा का पालन करके व्यक्ति अपने जीवन में आध्यात्मिक और पारिवारिक उन्नति प्राप्त कर सकता है।

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