पैनल की रिपोर्ट में हटाने की सिफारिश, पहले भी करोड़ों के घोटाले से जुड़ चुका है नाम
नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व और वर्तमान में इलाहाबाद हाईकोर्ट में पदस्थ न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा पर गंभीर आरोपों की पुष्टि होती दिख रही है। उनके आधिकारिक आवास से भारी मात्रा में अधजली नकदी मिलने की घटना की जांच कर रहे तीन सदस्यीय उच्चस्तरीय न्यायिक पैनल ने अपनी रिपोर्ट गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को सौंपी, जिसमें जस्टिस वर्मा के खिलाफ कड़ी टिप्पणी की गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जस्टिस वर्मा और उनके परिवार के सदस्य जिस स्टोर रूम पर नियंत्रण रखते थे, वहीं 14 मार्च की रात आग लगने के बाद जली हुई नकदी मिली थी। पैनल ने यह भी स्पष्ट किया कि जस्टिस वर्मा के आचरण में गंभीर दोष है और उनका बर्ताव न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला है। समिति ने सिफारिश की है कि उन्हें न्यायिक पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए।

🔎 जांच पैनल ने क्या पाया?
इस संवेदनशील जांच का नेतृत्व पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू ने किया। उनके साथ दो अन्य वरिष्ठ न्यायाधीश भी इस पैनल में शामिल थे। दस दिनों की गहन जांच के दौरान पैनल ने:
- 55 गवाहों के बयान दर्ज किए
- जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास की भौतिक जांच की
- वीडियो फुटेज, फोटो, और अन्य इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों का विश्लेषण किया
पैनल की रिपोर्ट में कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं:
- स्टोर रूम से अधजली नकदी मिलने की पुष्टि दिल्ली पुलिस और फायर डिपार्टमेंट के कम से कम 10 चश्मदीदों ने की।
- घटनास्थल से प्राप्त वीडियो और फोटोग्राफ्स से चश्मदीदों के बयान पुष्ट हुए।
- जस्टिस वर्मा के दो घरेलू सहायकों, राहिल शर्मा और राजिंदर सिंह कार्की, ने स्टोर से जली हुई नकदी निकालने की बात मानी।
- एक वायरल वीडियो में उनकी आवाजें मौजूद थीं, जो फॉरेंसिक जांच में मेल खा गईं।
- जस्टिस वर्मा की बेटी दीया वर्मा ने कर्मचारियों की आवाज पहचानने से इनकार किया, जबकि कर्मचारी ने स्वयं स्वीकार किया कि वही वीडियो में है।
- घर की सुरक्षा इतनी कड़ी थी कि बिना परिवार की अनुमति के कोई भी व्यक्ति स्टोर रूम तक नहीं पहुंच सकता था—हर समय चार गार्ड और एक निजी सुरक्षा अधिकारी तैनात रहते थे।
- जस्टिस वर्मा ने इसे षड्यंत्र बताया, लेकिन पुलिस में कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई और चुपचाप इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर स्वीकार कर लिया।
- नकदी के स्रोत का कोई वैध हिसाब जस्टिस वर्मा नहीं दे सके।
⚖ पिछला मामला: 97.85 करोड़ के घोटाले में भी आया था नाम
यह पहला मौका नहीं है जब जस्टिस यशवंत वर्मा का नाम वित्तीय अनियमितता से जुड़ा हो। 2018 में गाजियाबाद स्थित सिम्भावली शुगर मिल में 97.85 करोड़ रुपये के घोटाले का मामला सामने आया था।
- उस वक्त जस्टिस वर्मा नॉन-एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर के पद पर कार्यरत थे।
- ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स ने मिल पर आरोप लगाया था कि किसानों के नाम पर जारी लोन का गलत इस्तेमाल किया गया।
- इस पर CBI ने एफआईआर दर्ज की, लेकिन मामला बाद में धीमा पड़ गया।
- फरवरी 2024 में निचली अदालत ने जांच फिर से शुरू करने का आदेश दिया, पर सुप्रीम कोर्ट ने उस आदेश को पलट दिया और जांच रुक गई।
📌 अगला कदम क्या होगा?
पैनल ने रिपोर्ट में सिफारिश की है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा लगाए गए आरोपों में पर्याप्त तथ्य मौजूद हैं और संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत जस्टिस वर्मा को हटाने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। इस प्रक्रिया में संसद की मंजूरी आवश्यक होगी। यदि यह आगे बढ़ता है तो यह न्यायपालिका के भीतर एक दुर्लभ और ऐतिहासिक अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी।
स्वदेश ज्योति के द्वारा
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