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March 13, 2025 8:59 PM

लोकसभा में उठा ओला-उबर द्वारा उपभोक्ताओं से भेदभाव का मामला, सरकार ने शुरू की जांच

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आईफोन यूजर्स से ज्यादा किराया वसूलने के आरोपों पर संसद में जवाब, उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने कहा- यह कंज्यूमर कानून का उल्लंघन

नई दिल्ली। ओला और उबर जैसी राइड-शेयरिंग कैब कंपनियों पर आईफोन और एंड्रॉयड यूजर्स से अलग-अलग किराया वसूलने के गंभीर आरोप लगे हैं। इस मुद्दे पर बुधवार को लोकसभा में चर्चा हुई, जिसके बाद सरकार ने इस मामले में जांच शुरू कर दी है। उपभोक्ता मामलों के राज्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने लोकसभा में कहा कि सरकार ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है और विस्तृत जांच के आदेश दिए गए हैं

कैसे उठा मामला?

दरअसल, जनवरी 2025 में एक सर्वे में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि ओला और उबर जैसी कंपनियां आईफोन यूजर्स से अधिक किराया वसूल रही हैं, जबकि एंड्रॉयड यूजर्स को वही राइड कम कीमत में मिल रही है। यह भेदभाव ओला और उबर के डायनामिक प्राइसिंग एल्गोरिदम से जुड़ा हुआ हो सकता है, जो यूजर की डिवाइस, लोकेशन और डिमांड के आधार पर किराया निर्धारित करता है।

इस खुलासे के बाद, कई उपभोक्ताओं ने सोशल मीडिया पर अपने अनुभव साझा किए और कंपनियों की डबल प्राइसिंग रणनीति पर सवाल उठाए। इसके बाद, एक आईफोन यूजर ने इस मुद्दे को लेकर राष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) में शिकायत दर्ज करवाई।

डार्क पैटर्न का आरोप, क्या है यह तकनीक?

एक्सपर्ट्स के अनुसार, यह मामला ‘डार्क पैटर्न’ से जुड़ा हो सकता है।
डार्क पैटर्न एक प्रकार की भ्रामक डिजिटल रणनीति है, जिसमें कंपनियां उपभोक्ताओं को असमान शुल्क देने, छिपे हुए चार्ज लगाने या गैर-वाजिब बदलाव करने के लिए मजबूर करती हैं। यह पूरी तरह से उपभोक्ता संरक्षण कानून के खिलाफ है।

इस मामले में कंपनियों पर आरोप है कि वे:

  • आईफोन यूजर्स से ज्यादा किराया वसूल रही हैं क्योंकि वे प्रीमियम ग्राहक माने जाते हैं।
  • कृत्रिम रूप से किराए बढ़ाकर उपभोक्ताओं से अधिक पैसे वसूल रही हैं।
  • छिपे हुए शुल्क और अनावश्यक चार्ज जोड़कर उपभोक्ताओं को गुमराह कर रही हैं।

सरकार का एक्शन: जांच के आदेश, कंपनियों को नोटिस

सरकार ने इस मामले को गंभीर मानते हुए उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) के तहत जांच शुरू कर दी है।

  • 10 फरवरी 2025 को CCPA ने ओला और उबर को नोटिस जारी कर जवाब मांगा।
  • कंपनियों ने इन आरोपों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
  • इसके बाद सरकार ने मामले को डायरेक्टर जनरल (DG) जांच के पास भेज दिया।
  • DG की विस्तृत रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्रवाई होगी।

प्रह्लाद जोशी ने संसद में कहा कि सरकार इस तरह के मामलों को गंभीरता से देख रही है और उपभोक्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।

ओला और उबर का बचाव, कंपनियों ने क्या कहा?

ओला और उबर दोनों ही कंपनियों ने इन आरोपों को खारिज किया है। उनका कहना है कि उनका किराया पूरी तरह से डायनामिक प्राइसिंग मॉडल पर आधारित होता है, जो यात्रा की मांग, ट्रैफिक, राइड की उपलब्धता और अन्य कारकों को ध्यान में रखकर तय किया जाता है। कंपनियों का दावा है कि वे किसी भी उपभोक्ता के साथ भेदभाव नहीं करती हैं

लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि आईफोन और एंड्रॉयड यूजर्स के लिए अलग-अलग किराए की रिपोर्ट्स इस तर्क को कमजोर करती हैं

उपभोक्ताओं को कैसे नुकसान हो सकता है?

  1. आईफोन यूजर्स को ज्यादा खर्च करना पड़ सकता है क्योंकि कंपनियां उन्हें प्रीमियम ग्राहक मानकर अधिक शुल्क वसूल सकती हैं।
  2. एंड्रॉयड यूजर्स भी प्रभावित हो सकते हैं, क्योंकि कंपनियां जब चाहें किराए में छुपे हुए चार्ज जोड़ सकती हैं।
  3. कैब सेवाओं की पारदर्शिता पर सवाल उठता है, जिससे उपभोक्ता कानून का उल्लंघन हो सकता है।

क्या हो सकता है आगे?

  1. DG (जांच) की रिपोर्ट के आधार पर ओला और उबर के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सकती है।
  2. अगर कंपनियां दोषी पाई गईं, तो उन्हें भारी जुर्माना भरना पड़ सकता है।
  3. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के तहत कंपनियों को अपनी प्राइसिंग पॉलिसी में पारदर्शिता लानी होगी।
  4. सरकार इस मामले पर नई गाइडलाइंस बना सकती है, जिससे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर डार्क पैटर्न के खिलाफ सख्त नियम लागू किए जा सकें।

निष्कर्ष:

ओला और उबर पर आईफोन और एंड्रॉयड यूजर्स से अलग-अलग किराया वसूलने के आरोप लोकसभा तक पहुंच गए हैं। सरकार ने इस मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं और कंपनियों को नोटिस जारी किया गया है। अगर आरोप सही पाए जाते हैं, तो कैब सर्विस कंपनियों को बड़ी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। इस मुद्दे ने डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर उपभोक्ता अधिकारों की सुरक्षा को लेकर बड़ी बहस छेड़ दी है।

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