दिल्ली से निर्वासित किए जाने के बाद बड़ा फैसला, केंद्र ने भी मानवीय आधार पर दी सहमति
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण और मानवीय फैसला देते हुए बांग्लादेश की गर्भवती सुनाली खातून और उसकी आठ वर्षीय बेटी को भारत में प्रवेश की अनुमति दे दी है। कोर्ट ने कहा कि महिला की गर्भावस्था और बच्चे की कमजोर स्थिति को देखते हुए इसे सिर्फ कानूनी मामला नहीं, बल्कि मानवता का प्रश्न मानकर निर्णय लेना आवश्यक है।
क्या है पूरा मामला?
सुनाली खातून और उसका परिवार करीब 20 वर्षों से दिल्ली के रोहिणी सेक्टर-26 में दिहाड़ी मजदूरी कर जीवनयापन कर रहा था। लेकिन जून में पुलिस ने उन्हें बांग्लादेशी नागरिक होने के संदेह में हिरासत में लिया। इसके बाद 27 जून को सुनाली और उसकी बेटी को बांग्लादेश भेज दिया गया, जबकि उसके पति और परिवार के कुछ अन्य सदस्य वहीं फंस गए। सुनाली के पिता ने आरोप लगाया कि प्रशासन ने बिना समुचित जांच किए पूरे परिवार को बांग्लादेशी बताकर सीमा पार भेज दिया, जबकि वे लंबे समय से भारत में रह रहे थे।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
बुधवार को चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने मामले की गंभीरता को देखते हुए पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र को आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिए। कोर्ट ने आदेश दिया बांग्लादेश में मौजूद सुनाली खातून और उसकी आठ वर्षीय बेटी को दिल्ली वापस लाया जाए। पश्चिम बंगाल सरकार को बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी देगा। बीरभूम जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी को सुनाली को सभी चिकित्सीय सुविधाएं उपलब्ध कराने के निर्देश।
केंद्र सरकार भी हुई सहमत
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि केंद्र सरकार मानवीय आधार पर महिला और उसकी बेटी को भारत में प्रवेश देने के लिए तैयार है और दोनों को सरकार की निगरानी में रखा जाएगा। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि बांग्लादेश में फंसे अन्य लोग भारतीय नागरिक नहीं हैं, इसलिए उन्हें भारत लाने की मांग कानूनी रूप से स्वीकार्य नहीं होगी।
बचाव पक्ष का तर्क
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और संजय हेगड़े ने अदालत से कहा कि सुनाली के पति और परिवार के अन्य सदस्य भी बांग्लादेश में फंसे हुए हैं और उन्हें भी वापस लाना जरूरी है। लेकिन सॉलिसिटर जनरल ने इस दावे को चुनौती देते हुए कहा कि वे “भारतीय नहीं बल्कि बांग्लादेशी नागरिक हैं” और इसलिए उन्हें सिर्फ मानवीय आधार पर ही राहत मिल सकती है।
अन्य सवालों पर कोर्ट की टिप्पणी
अदालत ने स्पष्ट किया कि फिलहाल प्राथमिकता गर्भवती महिला और उसकी बेटी की सुरक्षा है। बाकी मुद्दों पर केंद्र सरकार उचित निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होगी।
मानवीय आधार पर लिया गया संवेदनशील निर्णय
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश ऐसे समय में आया है जब सीमा पार से जुड़े संवेदनशील मामलों में मानवाधिकार और मानवीय दृष्टिकोण अक्सर विवाद का विषय बनते हैं। कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि न्याय केवल कानून का पालन नहीं, बल्कि मानवता की रक्षा भी है।
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