रामलला के दर्शन से लेकर 14 पूरक मंदिरों तक—प्रधानमंत्री का तीन घंटे का विशेष प्रवास
अयोध्या। भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या एक बार फिर ऐतिहासिक क्षण की साक्षी बनने जा रही है। मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम मंदिर के स्वर्ण शिखर पर ध्वजारोहण करेंगे और इसके साथ ही रामजन्मभूमि परिसर में बने 14 पूरक मंदिरों में भी दर्शन-पूजन करेंगे। यह अवसर न केवल रामलला के भक्तों के लिए विशेष है, बल्कि अयोध्या की पवित्र धरती पर आस्था के नए अध्याय के रूप में भी देखा जा रहा है। राम मंदिर स्वयं आस्था का सर्वोच्च केंद्र है, किंतु इसके अलावा परिसर में बने पूरक मंदिर भी सनातन परंपरा के विविध स्वरूपों को दर्शाते हैं। त्रेतायुगीन प्रेरक पात्रों, पंचदेव परंपरा, ऋषि-मुनियों और श्रीराम के प्रिय अनुयायियों के वैभव से सुसज्जित ये मंदिर अयोध्या की आध्यात्मिक समृद्धि का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
मुख्य मंदिर के परकोटे में स्थापित पूरक मंदिर—सनातन परंपरा का सजीव रूप
161 फीट ऊँचे स्वर्ण शिखर वाले भव्य राम मंदिर के चारों ओर पाँच उप-शिखर और परस्पर जुड़ी अनेक मंदिरों की श्रृंखला है। मुख्य परकोटे के भीतर छह पूरक मंदिर हैं, जो समान ऊँचाई और समान अधिष्ठान पर निर्मित किए गए हैं। इनमें वैदिक पंचदेव परंपरा के अंतर्गत शिव, गणेश, सूर्य और आदि शक्ति मां दुर्गा की प्रतिमाएँ स्थापित हैं। परकोटे की दक्षिणी भुजा के मध्य में हनुमान का मंदिर है—श्रीराम के परम प्रिय दूत, जिनकी उपस्थिति हर भक्त का मन शक्ति और साहस से भर देती है। वहीं उत्तरी भुजा में माता अन्नपूर्णा का मंदिर स्थापित है, जो अन्न और समृद्धि की प्रतीक मानी जाती हैं। ये पूरक मंदिर मुख्य मंदिर के स्थापत्य और शिल्पकला को और अधिक भव्यता प्रदान करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी अपने प्रवास के दौरान इन सभी मंदिरों में पूजा-अर्चना करेंगे।
सप्तर्षि मंडप—ऋषि परंपरा और त्रेतायुगीन पात्रों का दर्शन
रामजन्मभूमि परिसर के आग्नेय कोण में 732 मीटर लंबे आयताकार परकोटे के भीतर सप्तर्षि मंडप स्थित है। यहाँ सात मंदिर हैं—वाल्मीकि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, अगस्त्य ऋषि, निषादराज, शबरी और देवी अहिल्या की प्रतिमाएँ स्थापित हैं। इनमें प्रत्येक प्रतिमा श्रीराम के जीवन, आदर्शों और उनके वनवास काल की स्मृतियों को जीवंत करती है। निषादराज द्वारा गंगा पार कराने का प्रसंग, शबरी की निश्छल भक्ति और देवी अहिल्या की मुक्ति—ये सभी कथाएँ भारतीय संस्कृति की करुणा, सेवा और समानता की आधारशिला हैं। प्रधानमंत्री मोदी यहां दर्शन कर सामाजिक समरसता और ऋषि परंपरा के सम्मान का संदेश भी देंगे।
जटायु की प्रतिमा—त्याग और वीरता का शाश्वत प्रतीक
राम मंदिर परिसर से कुछ ही दूरी पर कुबेर टीला स्थित है, जहाँ गिद्धराज जटायु की भव्य प्रतिमा बनाई गई है। वही जटायु जिन्होंने माता सीता को रावण से बचाने का प्रयास करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। जटायु का यह त्याग रामायण का अत्यंत मार्मिक प्रसंग है और उनकी प्रतिमा उसी अद्वितीय वीरता का प्रतीक है। संभावना है कि प्रधानमंत्री यहां भी पहुंचकर जटायु को नमन करेंगे।
लक्ष्मण मंदिर—शेषावतार के वैभव का दर्शन
श्रीराम के प्रिय अनुज लक्ष्मण, जिन्हें शेषावतार माना गया है, उनका मंदिर भी रामजन्मभूमि परिसर का महत्वपूर्ण भाग है। इसका भव्य स्वरूप और आकर्षक शिल्प इसे विशेष आध्यात्मिक केंद्र बनाते हैं। प्रधानमंत्री के तीन घंटे के प्रवास में यहां दर्शन करना भी स्वाभाविक माना जा रहा है।
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