गौरैया के संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान
हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य इस छोटे से पक्षी के संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाना है। इस साल, भोपाल में पर्यावरण वानिकी वन मंडल ने एक विशेष अभियान चलाकर गौरैया संरक्षण पर जोर दिया। इस दौरान जंगलों और पार्कों में आने वाले लोगों को यह समझाया गया कि गौरैया की घटती संख्या के पीछे क्या कारण हैं और हम इसे बचाने के लिए क्या कर सकते हैं।
गौरैया की घटती संख्या का कारण
डीएफओ निधी चौहान ने बताया कि एक समय था जब गौरैया हर घर, हर आंगन में फुदकती नजर आती थी। लेकिन अब यह पक्षी विलुप्ति के कगार पर है। गौरैया की संख्या में भारी कमी आने के पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं, जिनमें मुख्य रूप से—
- मोबाइल टावर से निकलने वाला रेडिएशन: विशेषज्ञों के अनुसार, मोबाइल टावरों से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें गौरैया के लिए खतरनाक साबित हो रही हैं। यह उनकी दिशाभ्रम की क्षमता को प्रभावित कर रही हैं, जिससे वे अपने घोंसले तक नहीं लौट पातीं।
- शहरीकरण और कंक्रीट के जंगल: पुराने समय में घरों की छत और दीवारों में छोटे-छोटे छेद होते थे, जहां गौरैया आराम से घोंसला बना सकती थी। लेकिन आधुनिक निर्माण शैली ने इस संभावना को खत्म कर दिया है।
- रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग: खेतों में अधिक मात्रा में कीटनाशक और रसायनों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे गौरैया के भोजन (कीड़े-मकोड़े) की उपलब्धता कम हो गई है।
बच्चों को घोंसला बनाने का प्रशिक्षण
एसडीओ राम कृष्ण चौधरी ने बच्चों को घर पर उपलब्ध सामग्रियों से गौरैया के लिए घोंसले बनाने का प्रशिक्षण दिया। उन्होंने दिखाया कि कैसे कार्डबोर्ड, लकड़ी के बॉक्स और सूखे पत्तों की मदद से गौरैया के लिए एक सुरक्षित घर बनाया जा सकता है। इसके अलावा, लोगों को यह भी बताया गया कि अपने घर की छतों, बालकनी और बगीचे में पानी और दाना रखने से गौरैया को दोबारा बसने में मदद मिलेगी।
पार्कों में लगाए गए पानी के सपोरे
गौरैया और अन्य पक्षियों के लिए पानी की उपलब्धता भी एक बड़ी समस्या है, खासकर गर्मियों के दिनों में। वन मंडल की टीम ने भोपाल के विभिन्न पार्कों और जंगलों में पानी के सपोरे (बर्तन) लगवाए, जिससे पक्षियों को पीने के लिए पर्याप्त पानी मिल सके।
लोगों से साझा कराए गए अनुभव
कार्यक्रम में भाग लेने वाले नागरिकों ने गौरैया से जुड़े अपने अनुभव साझा किए। कुछ लोगों ने बताया कि बचपन में वे हर सुबह गौरैया की चहचहाहट सुनते थे, लेकिन अब यह आवाज लगभग गायब हो गई है। इस चर्चा का मुख्य उद्देश्य यह था कि लोग इस समस्या को गंभीरता से लें और इसके समाधान के लिए प्रयास करें।

गौरैया संरक्षण के लिए अपील
वन विभाग ने नागरिकों से अपील की कि वे अपने घरों के आसपास गौरैया के लिए सुरक्षित स्थान बनाएं, घोंसले लगाएं और नियमित रूप से उनके लिए भोजन और पानी की व्यवस्था करें। इस पहल का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि आने वाली पीढ़ी भी गौरैया को देख सके और उसकी चहचहाहट सुन सके।
गौरैया केवल एक पक्षी नहीं, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भोपाल में उठाए गए ये कदम न सिर्फ इस पक्षी के संरक्षण में मदद करेंगे, बल्कि आने वाले समय में इसके अस्तित्व को बचाने में भी सहायक होंगे। अगर हर व्यक्ति थोड़ी-सी जागरूकता दिखाए, तो गौरैया को दोबारा हमारे घरों और बगीचों में देखा जा सकता है।