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April 18, 2025 4:07 PM

हिंदी में क्यों लिखा भगत सिंह ने

  • विवेक शुक्ला
    शहीदे ए आजम भगत सिंह की मातृभाषा पंजाबी थी। वे पंजाबी, हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी और संस्कृत सही से लिख-पढ़ लेते थे। पर उन्होंने अपने विचारों को दूर तक लेकर जाने की गरज से हिंदी में लिखना शुरू किया। हिंदी में उनका पहला महत्वूर्ण निबंध संभवत: ‘पंजाब में भाषा और लिपि की समस्या’ विषय पर 1924 में लिख दिया गया था। वे तब 17 साल के थे। यह 28 फरवरी, 1933 के ‘हिन्दी संदेश’ में प्रकाशित हुआ था। भगत सिंह ने इस मुद्दे के विभिन्न पहलुओं गहराई से विशलेषण किया था। भगत सिंह भाषा को जन चेतना और प्रगति का एक महत्वपूर्ण हथियार मानते थे। वे अपने गृह प्रदेश पंजाब में भाषा को लेकर चल रहे विवाद से परेशान थे। उस समय, पंजाब में मुख्य रूप से हिंदी, पंजाबी और उर्दू भाषाओं का प्रयोग होता था, और प्रत्येक भाषा को बोलने वाले अपने-अपने दावों और हितों के साथ खड़े थे। उन्होंने इस बारे में सवाल खड़ा किया था- “… हमारे प्रांत का दुर्भाग्य रहा कि यहां भाषा को मजहबी रंग दे दिया गया।”
    भगत सिंह का जन्म 1907 के उस पंजाब में हुआ था, जहां पंजाबी और उर्दू का वर्चस्व था। हालांकि, हिंदी भी व्यापक रूप से समझी और प्रिंट मीडिया में उपयोग की जाती थीं। हिंदू परिवारों में हिंदी पढ़ने-लिखने की परंपरा थी। उस दौर के पंजाब में आर्य समाज और सनातन धर्म हिंदी का प्रचार-प्रसार कर रहे थे। भगत सिंह का परिवार आर्य समाज से था।
    भगत सिंह मुख्य रूप से राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर कलम चलाते थे। प्रारंभ में, उन्होंने उर्दू और अंग्रेजी में लिखा, लेकिन फिर उन्होंने हिंदी का रुख कर लिया। उन्होंने कई हिंदी समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए लिखा। भगत सिंह ने ‘बलवंत सिंह’, ‘रणजीत’ और ‘विद्रोही’ सहित कई छद्म नामों से लिखा। यह गिरफ्तारी से बचने के लिए एक आम बात थी। छदम नाम से लिखने का एक बड़ा नुकसान ये हुआ कि उनके लेखों का कायदे से संकलन नहीं हुआ।
    भगत सिंह 1925 में कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी के अखबार ‘प्रताप’ में नौकरी करने कानपुर गए थे। पीलखाना में प्रताप की प्रेस थी। वे उसके पास ही रहते थे। कहना ना होगा कि कानपुर में रहते हुए वे हिंदी को बेहतर तरीके से लिखने लगे होंगे। आखिर कानपुर हिंदी का गढ़ रहा है।
    भगत सिंह के अधिकांश प्रारंभिक लेखन अन्य स्वतंत्रता सेनानियों और उनके संघर्षों पर हैं। चाँद पत्रिका ने उन स्वतंत्रता सेनानियों पर एक विशेष अंक निकाला जिन्होंने अपने जीवन का बलिदान दिया था और भगत सिंह ने इसमें योगदान दिया था। उन्होंने उन बुनियादी मूल्यों और कार्यक्रमों के बारे में अधिक लिखा जिन्हें वे स्वतंत्रता, समानता, न्याय और सांप्रदायिक सद्भाव प्राप्त करने के लिए फैलाना चाहते थे।
    भगत सिंह के लेखन का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर, विशेष रूप से युवाओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। उनके जोशीले और स्पष्ट तर्कों ने कई लोगों को स्वतंत्रता के संघर्ष में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। उनके स्पष्ट हिंदी लेखन से उनके पाठकों की तादाद बढ़ती गई।
    भगत सिंह ने ‘प्रताप’ में रहते हुए रिपोर्टिंग भी की। वे 1926 में दिल्ली में दरियागंज इलाके में भड़के दंगों को कवर करने के लिए भी आए थे। उनके अधिकतर लेख ‘किरती’, ‘प्रताप’ और ‘चांद’ जैसे पत्र-पत्रिकाओं में छपे। इन लेखों में वे अपने क्रांतिकारी विचारों, राजनीतिक दर्शन और सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त करते थे।
    अपने जीवन के शुरुआती दिनों में, भगत सिंह वसुधैव कुटुम्बकम के विचार से प्रभावित थे। उनका सपना था कि दुनिया एक परिवार की तरह हो, जो प्रेम और परस्पर सम्मान से बंधा हो। उनका यह लेख हिंदी ‘साप्ताहिक मतवाला’ में ‘विश्व प्रेम’ नामक शीर्षक से छपा। ‘वसुधैव कुटुंबकम’ एक संस्कृत वाक्यांश है जिसका मतलब है, ‘पूरा विश्व एक परिवार है’। यह सनातन धर्म का मूल संस्कार और विचारधारा है।
    भगत सिंह आत्म-अध्ययन और अन्य हिंदी भाषी क्रांतिकारियों और पत्रकारों के साथ सहयोग के माध्यम से एक हिंदी पत्रकार बने। हालांकि वे पारंपरिक अर्थों में पत्रकार नहीं थे, लेकिन हिंदी पत्रकारिता में उनका योगदान महत्वपूर्ण था और इसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की दिशा को आकार देने में मदद की।
    यह आश्चर्यजनक और प्रेरणादायक है कि भगत सिंह ने यह सब इतनी कम उम्र में लिखा और वह भी एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और आयोजक के रूप में अपनी अन्य सभी गतिविधियों के बीच। यह केवल बेहद कड़ी मेहनत के कारण संभव था जो प्रतिबद्धता के बहुत उच्च स्तर से प्रेरित था, साथ ही जो कुछ भी थोड़े अवसर मौजूद थे, उनका बहुत रचनात्मक उपयोग था।
    एक बात और। भगत सिंह ने अपने विचारों को फैलाने और लोगों को आंदोलनों में शामिल करने के लिए हिंदी में पर्चे और घोषणाएं भी जारी कीं। ये पर्चे सार्वजनिक स्थानों पर बांटे जाते थे और लोगों को स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करते थे। भगत सिंह ने अदालत में भी हिंदी का प्रयोग किया। उनका मानना था कि हिंदी आम लोगों की भाषा है और इसके माध्यम से वे अधिक लोगों तक अपनी बात पहुंचा सकते हैं।
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