October 24, 2025 7:53 AM

जुलाई 2025 में थोक महंगाई दर दो साल के निचले स्तर पर, खाद्य व ऊर्जा कीमतों में गिरावट से राहत

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जुलाई 2025 में थोक महंगाई दर दो साल के निचले स्तर पर, खाद्य व ऊर्जा कीमतों में गिरावट से राहत

नई दिल्ली। जुलाई 2025 में थोक मूल्य सूचकांक (WPI) आधारित महंगाई दर घटकर (-) 0.58 प्रतिशत पर आ गई, जो पिछले दो वर्षों का सबसे निचला स्तर है। इससे पहले जून 2025 में यह (-) 0.13 प्रतिशत और मई में 0.39 प्रतिशत रही थी। सरकार द्वारा गुरुवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, यह गिरावट मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों, खनिज तेलों, कच्चे पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और मूल धातुओं की कीमतों में कमी के कारण आई है।

खाद्य और ऊर्जा क्षेत्र में कीमतों में गिरावट

आंकड़ों के अनुसार, जुलाई में खाद्य वस्तुओं की थोक कीमतों में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई। दालों, अनाज, सब्जियों और फलों के थोक दाम में कमी ने महंगाई के दबाव को कम किया। इसके साथ ही, कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों के दाम में अंतरराष्ट्रीय बाजार में आई नरमी का सीधा असर थोक महंगाई पर पड़ा। खनिज तेल, प्राकृतिक गैस और अन्य ऊर्जा स्रोतों की कीमतों में आई इस गिरावट ने औद्योगिक उत्पादन लागत को भी कम करने में मदद की है।

WPI और CPI में अंतर

थोक मूल्य सूचकांक (WPI) उन वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में बदलाव को मापता है, जिन्हें थोक स्तर पर बेचा और खरीदा जाता है। यह कीमतें आमतौर पर ‘फैक्टरी गेट’ पर तय होती हैं, यानी इसमें कर और खुदरा व्यापारियों का मुनाफा शामिल नहीं होता। इसके विपरीत, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) खुदरा स्तर पर उपभोक्ताओं द्वारा चुकाई जाने वाली कीमतों पर नजर रखता है।

महंगाई में गिरावट का आर्थिक असर

विशेषज्ञों का मानना है कि थोक महंगाई में यह गिरावट आने वाले समय में खुदरा महंगाई (CPI) पर भी असर डाल सकती है। हालांकि, वे यह भी चेतावनी देते हैं कि मानसून और कृषि उत्पादन की स्थिति, अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल के भाव और वैश्विक आर्थिक उतार-चढ़ाव जैसे कारक आगे के महीनों में महंगाई के रुझान को प्रभावित कर सकते हैं।

पिछले महीनों का रुझान

  • मई 2025 – WPI 0.39% (14 महीने का निचला स्तर)
  • जून 2025 – WPI -0.13% (20 महीने का निचला स्तर)
  • जुलाई 2025 – WPI -0.58% (24 महीने का निचला स्तर)

इस निरंतर गिरावट से उद्योग जगत को राहत मिल सकती है, क्योंकि थोक कीमतों में कमी से उत्पादन लागत घटती है, जिससे उपभोक्ताओं को भी आने वाले समय में सस्ते दामों पर वस्तुएं मिलने की संभावना बढ़ जाती है।


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