राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के बाद पत्रकारों से संवाद करते हुए औरंगजेब विवाद पर सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया है कि देश का नायक या प्रेरणास्रोत किसे होना चाहिए- औरंगजेब, जो आक्रमणकारी सोच का प्रतीक है या फिर दारा शिकोह, जो सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल है? यह गंभीर चर्चा का मुद्दा है। इस प्रश्न में गहरी बात छिपी है जो हमें समाज में सक्रिय ताकतों और उनकी मानसिकता को समझने में सहायता करती है। जरा सोचिए, औरंगजेब और दारा शिकोह, दोनों ही मुगल बादशाह शाहजहां के पुत्र हैं। दोनों मुसलमान हैं। लेकिन हमारे देश में तथाकथित सेकुलर विद्वानों और मुसलमानों ने किसको प्रेरणास्रोत के रूप में स्थापित किया- औरंगजेब को? हमें विचार करना चाहिए कि दारा शिकोह को मुस्लिमों के प्रेरणास्रोत के रूप में क्यों स्वीकार्य नहीं किया गया? इस प्रश्न पर गंभीरता से विचार करने पर बहुत-सी बातें सहज ही ध्यान आएंगी। उल्लेखनीय है कि जहां एक ओर, औरंगजेब ने हिन्दुओं का कत्लेआम किया, इस्लाम स्वीकार करने के लिए हर प्रकार के धतकर्म किए, हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया और मंदिरों को तोड़कर उनके अवशेषों को महलों की सीढ़ियों में लगवाने का घोर सांप्रदायिक अपराध किया। अपने पिता और भाईयों का नृशंसता के साथ खून बहाया। वहीं दूसरी ओर, दारा शिकोह ने भारतीय धर्म ग्रंथों का अध्ययन किया, भारतीय ग्रंथों का अरबी-फारसी में अनुवाद किया, हिन्दू और इस्लाम के बीच सेतु बनाने का प्रयास किया यानी एक तरह से सेकुलर विचार को आगे बढ़ाया। दारा शिकोह की इसी उदारवादी सोच को समाप्त करने के लिए औरंगजेब ने वहशी दरिंदे की तरह अपने भाई का कत्ल किया। लेकिन, भारत के तथाकथित सेकुलर जमात का पाखंड देखिए कि उन्होंने एक सांप्रदायिक एवं आक्रमणकारी मानसिकता के व्यक्ति औरंगजेब का महिमामंडन किया और सांप्रदायिक सद्भाव के प्रतीक दारा शिकोह को इतिहास की गहरी एवं अंधी खायी में कहीं धकेल दिया। कहना होगा, यह विडम्बना ही है कि भारतीय मुस्लिम समुदाय के बहुसंख्यक लोग अपना प्रेरणास्रोत बाहरी आक्रमणकारी, क्रूर और आतातायी को ही मानते हैं। मुस्लिम समुदाय को हिन्दुओं से सीखना चाहिए, जिसने कभी भी आतातायी को अपना आदर्श नहीं बनाया, भले ही वह बलशाली शासक या प्रकांड विद्वान रहा हो। भारत के मुस्लिम समुदाय को यह विचार करना चाहिए कि उसने औरंगजेब, टीपू सुल्तान और बाबर जैसे सांप्रदायिक शासकों को अपना नायक क्यों बनाया? उदारवादी मुस्लिमों को यह सोचना चाहिए कि दारा शिकोह की जगह औरंगजेब को किसने उनके प्रेरणास्रोत के तौर पर थोपा है? नि:संदेह, भारत का नायक औरंगजेब नहीं हो सकता है। यह बात भारतीय मुस्लिम समाज को भी सोचनी चाहिए और उसके अनुरूप ही आचरण भी करना चाहिए। उदारवादी मुस्लिम समुदाय को उठकर खड़ा होना चाहिए और जोर लगाकर कहना चाहिए कि उनका प्रेरणास्रोत औरंगजेब नहीं, दारा शिकोह है।