बंगाल हिंसा पर भी जताई चिंता, सुनवाई आज फिर दोपहर 2 बजे से जारी रहेगी
नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय में बुधवार को वक्फ कानून से जुड़े मामलों पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार और याचिकाकर्ताओं के बीच तीखी बहस देखने को मिली। देशभर में चर्चित यह मामला अब संवैधानिक और धार्मिक अधिकारों की कसौटी पर है। कोर्ट ने यह स्पष्ट संकेत दिया कि जब तक मामला लंबित है, वक्फ घोषित संपत्तियों की वर्तमान स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में जारी हिंसा पर भी गहरी चिंता जताई गई।
सुनवाई की अगली तारीख: 17 अप्रैल, दोपहर 2 बजे
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने तकरीबन डेढ़ घंटे तक चली सुनवाई के बाद फिलहाल कोई अंतरिम आदेश जारी नहीं किया, लेकिन यह साफ किया कि अगली सुनवाई 17 अप्रैल को दोपहर 2 बजे से होगी। कोर्ट ने वक्फ अधिनियम के कुछ प्रावधानों पर संभावित रोक के संकेत भी दिए हैं, खासकर ‘वक्फ बाय यूजर’ की व्यवस्था और वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति के प्रावधान पर।
“इतिहास को दोबारा नहीं लिखा जा सकता” – सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट ने सरकार से स्पष्ट रूप से कहा, “अगर कोई संपत्ति 100-200 साल पहले वक्फ घोषित हुई है, तो उसे अब अचानक से वक्फ नहीं माना जाना या बदला जाना इतिहास के साथ छेड़छाड़ होगी।” कोर्ट ने पूछा, “क्या आप अब हिंदू ट्रस्टों में मुसलमानों को भी शामिल करेंगे?” और कहा कि यदि सरकार की ऐसी कोई मंशा है, तो उसे खुलकर बताना चाहिए।
कपिल सिब्बल का तर्क: वक्फ इस्लाम का अभिन्न अंग
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने जोर देते हुए कहा कि यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) और धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 26) के खिलाफ है। उन्होंने कहा, “वक्फ इस्लाम का अभिन्न अंग है और इसे राम जन्मभूमि के फैसले में भी मान्यता दी गई है। अगर कोई वक्फ 3000 साल पहले बना था, तो आप आज उससे सेल डीड की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?”
राजीव धवन: यह कानून इस्लाम की आंतरिक व्यवस्था पर हमला है
वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि 2025 का वक्फ अधिनियम इस्लाम की आंतरिक संरचना पर सीधा हमला है। उन्होंने दान और वक्फ की परंपरा को इस्लाम का आवश्यक अंग बताया और कहा कि नए कानून के तहत वक्फ बोर्ड का प्रमुख गैर-मुस्लिम हो सकता है, जो कि अस्वीकार्य है।
केंद्र का पक्ष: सिर्फ विवादित संपत्तियों पर असर
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि “2025 अधिनियम” से पहले जो वक्फ संपत्तियाँ रजिस्टर की गई हैं, वो वक्फ के रूप में बनी रहेंगी। सिर्फ उन्हीं संपत्तियों पर सवाल खड़ा होगा जो पंजीकृत नहीं हैं या जिन पर विवाद है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार का उद्देश्य किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाना नहीं है, बल्कि पारदर्शिता लाना है।
कोर्ट की फटकार: 13वीं-14वीं सदी की मस्जिदों से डीड कैसे मांगेंगे?
प्रधान न्यायाधीश ने सरकार से सवाल पूछा कि अंग्रेजों के शासनकाल से पहले वक्फ की रजिस्ट्रेशन व्यवस्था नहीं थी, तो आप 13वीं-14वीं शताब्दी की मस्जिदों से सेल डीड कैसे मांग सकते हैं? कोर्ट ने कहा कि सिर्फ आधुनिक रजिस्ट्रेशन के आधार पर किसी संपत्ति की वैधता को खारिज नहीं किया जा सकता।
बंगाल हिंसा पर जताई चिंता
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में जारी सांप्रदायिक हिंसा पर भी चिंता जताई और मामले में हस्तक्षेप की संभावना जताई। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह इस तरह की हिंसात्मक घटनाओं को लेकर गंभीर है और स्थिति पर नजर रखे हुए है।
अब सबकी नजरें 17 अप्रैल को होने वाली अगली सुनवाई पर टिकी हैं, जहां संभव है कि कोर्ट वक्फ कानून के विवादित प्रावधानों पर कोई अंतरिम फैसला सुनाए।
स्वदेश ज्योति के द्वारा
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