विश्वकर्मा जयंती 2025: भगवान विश्वकर्मा की पूजा विधि, महत्व और शुभ मुहूर्त जानें

नई दिल्ली। आज बुधवार, 17 सितंबर 2025 को पूरे देश में विश्वकर्मा जयंती श्रद्धा और आस्था के साथ मनाई जा रही है। हिंदू पंचांग के अनुसार यह दिन कन्या संक्रांति के अवसर पर आता है। जब सूर्यदेव अपनी स्वराशि सिंह से निकलकर कन्या राशि में प्रवेश करते हैं, तब इस पर्व का आयोजन किया जाता है। यह दिन विशेष रूप से फैक्ट्री, उद्योगों, कारखानों, मशीनों और शिल्पकारों के लिए बेहद अहम माना जाता है। भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का शिल्पकार कहा जाता है और उन्हें सृष्टि का प्रथम वास्तुकार एवं इंजीनियर माना जाता है।


शुभ मुहूर्त 2025

पंचांग के अनुसार इस वर्ष विश्वकर्मा जयंती पर पूजा-अर्चना के लिए विशेष शुभ समय रहेगा –

  • पुण्यकाल: सुबह 05:36 मिनट से दोपहर 11:44 मिनट तक।
  • महापुण्यकाल: सुबह 05:36 मिनट से 07:39 मिनट तक।
  • पूजा का शुभ मुहूर्त: सुबह 07:50 मिनट से दोपहर 12:26 मिनट तक।

इस दौरान भगवान विश्वकर्मा की पूजा करना बेहद फलदायी माना गया है।


विश्वकर्मा पूजा का महत्व

इस दिन विशेष रूप से मशीनों, औजारों और वाहनों की पूजा की जाती है। कारखानों, दुकानों, फैक्ट्रियों और कार्यस्थलों पर कर्मचारी और मालिक मिलकर भगवान विश्वकर्मा की आराधना करते हैं।

  • कार, बाइक, मशीनरी और अन्य औद्योगिक उपकरणों पर कलावा बांधा जाता है।
  • औजारों को साफ करके उन पर रोली और अक्षत चढ़ाए जाते हैं।
  • पूजा के बाद मिठाई बांटी जाती है और “ॐ विश्वकर्मणे नमः” मंत्र का जाप किया जाता है।

मान्यता है कि ऐसा करने से मशीनों में खराबी नहीं आती, व्यापार में उन्नति होती है और कामकाज में निरंतर वृद्धि होती है।

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भगवान विश्वकर्मा कौन हैं?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विश्वकर्मा प्रजापति ब्रह्मा के सातवें पुत्र थे और उन्हें सृष्टि का सबसे बड़ा शिल्पकार माना जाता है। वे पहले वास्तुकार, अभियंता और शिल्प विशेषज्ञ थे।

  • कहा जाता है कि स्वर्गलोक, इंद्रपुरी, लंका, द्वारका, हस्तिनापुर और जगन्नाथपुरी जैसी अद्भुत नगरीयों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था।
  • उन्होंने ही भगवान विष्णु के लिए सुदर्शन चक्र, भगवान शिव का त्रिशूल, और देवताओं का पुष्पक विमान तथा इंद्र का वज्र बनाया था।

इसी कारण से उन्हें देवताओं का निर्माणकर्ता और शिल्पकार कहा जाता है।


पूजा विधि

विश्वकर्मा जयंती के दिन भक्त सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं।

  1. पूजा स्थल पर भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा या चित्र स्थापित किया जाता है।
  2. औजारों और मशीनों को साफ कर उन पर रोली, अक्षत और पुष्प अर्पित किए जाते हैं।
  3. कलावा बांधकर मिठाई चढ़ाई जाती है।
  4. अंत में भगवान विश्वकर्मा की आरती उतारी जाती है और “ॐ विश्वकर्मणे नमः” मंत्र का जाप किया जाता है।

इस दिन मजदूर, इंजीनियर, आर्किटेक्ट, कलाकार और औद्योगिक क्षेत्र से जुड़े लोग विशेष श्रद्धा से पूजा करते हैं।


सामाजिक और आर्थिक महत्व

विश्वकर्मा जयंती न केवल धार्मिक महत्व रखती है बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

  • इस दिन उद्योगों और व्यवसायों में नई ऊर्जा आती है।
  • कर्मचारी और मालिक साथ मिलकर काम की शुरुआत करते हैं जिससे आपसी सहयोग और विश्वास बढ़ता है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में किसान भी अपने हल-बैल और कृषि उपकरणों की पूजा करते हैं।

मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा की कृपा से व्यक्ति के कामकाज में तरक्की होती है, नई संभावनाओं के द्वार खुलते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।