भोपाल में मुख्यमंत्री निवास पर लगेगी विक्रमादित्य वैदिक घड़ी, उद्घाटन कल
भोपाल। मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री निवास अब एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक बनने जा रहा है। यहां प्रवेश द्वार पर विक्रमादित्य वैदिक घड़ी स्थापित की गई है, जिसका उद्घाटन कल होने जा रहा है। यह घड़ी पूरी तरह भारतीय कालगणना पर आधारित है और इसे दुनिया की पहली वैदिक घड़ी माना जा रहा है।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहल पर इस विशेष घड़ी को निवास के मुख्य द्वार पर लगाया गया है। इसके साथ ही एक मोबाइल ऐप भी तैयार किया गया है, जिसमें 40 भाषाओं में जानकारी उपलब्ध होगी। इस ऐप की मदद से लोग 7 हजार साल पुराने पंचांग भी देख सकेंगे।
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वैदिक घड़ी की खासियत
विक्रमादित्य वैदिक घड़ी सिर्फ समय बताने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह भारतीय कालगणना की प्राचीन और सटीक पद्धति पर आधारित है। इस पद्धति को उज्जैन से जोड़ा जाता है, जिसे हिंदू पंचांग और ज्योतिष का केंद्र माना जाता है।
- इस घड़ी का पहला लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 29 फरवरी 2024 को उज्जैन में किया था।
- यह घड़ी भारतीय संस्कृति और समय की अवधारणा को आधुनिक स्वरूप में प्रस्तुत करती है।
- घड़ी में सूर्योदय और सूर्यास्त, नक्षत्र, योग, वार और तिथि जैसी पारंपरिक गणनाओं को भी देखा जा सकेगा।
समय की भारतीय अवधारणा बनाम पाश्चात्य प्रणाली
अंग्रेज़ों के शासनकाल में भारत में दो टाइम जोन प्रचलित थे—कोलकाता समय और मुंबई समय। बाद में इसे समाप्त कर पूरे देश के लिए आईएसटी (इंडियन स्टैंडर्ड टाइम) लागू किया गया, जो ग्रीनविच मीन टाइम (GMT) से 5 घंटे 30 मिनट आगे है।
ग्रीनविच इंग्लैंड का एक गांव है, जहां से समय की गणना की इकाई तय की गई। वर्ष 1884 में इसे अंतरराष्ट्रीय मानक के रूप में मान्यता मिली और 1972 तक यह अंतर्राष्ट्रीय सिविल टाइम का आधार बना रहा।
लेकिन भारतीय परंपरा में समय की अवधारणा सिर्फ घड़ी की सूइयों तक सीमित नहीं थी। यहां न केवल घंटे-मिनट बल्कि तिथि, नक्षत्र, ग्रह-योग और ऋतु चक्र के आधार पर समय की गणना की जाती रही है। विक्रमादित्य वैदिक घड़ी इसी परंपरा को आधुनिक तकनीक के साथ पुनर्जीवित करती है।
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सांस्कृतिक धरोहर और आधुनिक तकनीक का संगम
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का कहना है कि वैदिक घड़ी भारत की वैज्ञानिक और सांस्कृतिक परंपराओं का आधुनिक स्वरूप है। इसके माध्यम से नई पीढ़ी को भारतीय समय-गणना प्रणाली की जानकारी मिलेगी और देश के गौरवशाली इतिहास से उनका जुड़ाव और गहरा होगा।
यह पहल सिर्फ धार्मिक या ज्योतिषीय महत्व की नहीं है, बल्कि यह भारत की कालगणना प्रणाली की वैश्विक स्वीकार्यता की दिशा में भी एक कदम है।
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