July 4, 2025 4:18 AM

उपराष्ट्रपति धनखड़ का सुप्रीम कोर्ट पर तीखा प्रहार: कहा – ‘सुपर संसद’ न बने न्यायपालिका, राष्ट्रपति को निर्देश देना संविधान के विरुद्ध

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भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक बार फिर न्यायपालिका पर कड़े शब्दों में टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति को दिए गए आदेश को लोकतांत्रिक मर्यादाओं के खिलाफ बताया है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को अपने अधिकारों की सीमाएं पहचाननी चाहिए और उसे ‘सुपर संसद’ बनने का प्रयास नहीं करना चाहिए।

‘न्यायपालिका नहीं बना सकती सुपर संसद’

धनखड़ ने कहा कि संविधान में शक्ति पृथक्करण का स्पष्ट उल्लेख है और कानून बनाना केवल संसद का अधिकार है, न कि न्यायपालिका का। उन्होंने कहा कि सरकार जनता के प्रति चुनावों में जवाबदेह होती है, लेकिन न्यायपालिका उस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं है। ऐसे में उसे विधायी और कार्यकारी भूमिका निभाने से बचना चाहिए।

राष्ट्रपति को आदेश देने पर आपत्ति

धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश पर सीधा सवाल उठाया, जिसमें तमिलनाडु के एक मामले में अदालत ने राष्ट्रपति और राज्यपाल को विधेयकों पर तीन महीने के भीतर फैसला लेने की समयसीमा दी थी। उन्होंने कहा कि भारत के लोकतंत्र में यह पहली बार हो रहा है कि राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च संवैधानिक पद को किसी तय समयसीमा के भीतर फैसला लेने के निर्देश दिए जा रहे हैं, जो संविधान की भावना के खिलाफ है।

अनुच्छेद 142 बना ‘न्यूक्लियर मिसाइल’?

उपराष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 142 का भी उल्लेख करते हुए कहा कि यह प्रावधान अब चौबीसों घंटे चलने वाली न्यूक्लियर मिसाइल जैसा बन गया है। इसका उद्देश्य विशेष परिस्थितियों में न्याय देना था, लेकिन अब इसके माध्यम से न्यायपालिका सर्वोच्च सत्ता की तरह व्यवहार करने लगी है।

यशवंत वर्मा प्रकरण: न्यायपालिका की गिरती साख पर चिंता

धनखड़ ने जस्टिस यशवंत वर्मा से जुड़े एक हालिया प्रकरण को लेकर भी गहरी नाराज़गी जताई। उन्होंने बताया कि नई दिल्ली में एक जज के आवास से बड़ी मात्रा में नकदी बरामद हुई, लेकिन एक महीने बीत जाने के बाद भी कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या न्यायपालिका भी कानून के समान अनुपालन से ऊपर है?

उन्होंने कहा,

“अगर यही मामला किसी आम व्यक्ति के साथ होता, तो अब तक एफआईआर दर्ज हो चुकी होती। लेकिन जब बात न्यायपालिका की आती है, तो सन्नाटा छा जाता है।”

धनखड़ ने इसे सार्वजनिक भरोसे पर गंभीर आघात बताया और कहा कि “अलमारी में छिपे कंकाल और कीड़े अब बाहर निकालने का समय आ गया है।” उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को जवाबदेह बनाना ही लोकतंत्र को मज़बूत बनाने की दिशा में पहला कदम है।

हाईकोर्ट ने खारिज की जनहित याचिका

उधर, दिल्ली हाईकोर्ट ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की जनहित याचिका को ‘असामयिक’ बताते हुए खारिज कर दिया है। इससे आम जनता और कानून के जानकारों में भी नाराजगी देखने को मिल रही है।

सर्वे से भी जाहिर हुआ गिरता भरोसा

उपराष्ट्रपति ने एक सर्वे का हवाला देते हुए बताया कि देश में लोगों का न्यायपालिका पर विश्वास लगातार घट रहा है। उन्होंने कहा कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका — तीनों को पारदर्शिता और कानून के समक्ष समानता के सिद्धांत का पालन करना होगा।

“लोकतंत्र की आत्मा तभी सुरक्षित रह सकती है जब सभी संस्थाएँ अपनी-अपनी मर्यादाओं में रहते हुए कार्य करें।”

निष्कर्ष नहीं, लेकिन संदेश स्पष्ट

धनखड़ के इस बयान ने एक बार फिर संविधानिक शक्तियों के संतुलन को लेकर बहस छेड़ दी है। यह साफ है कि भारत की लोकतांत्रिक संस्थाओं को अपनी सीमाओं का सम्मान करते हुए एक-दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप से बचना होगा।

स्वदेश ज्योति के द्वारा
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