- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनका इस्तीफा औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया
नई दिल्ली। देश के 14वें उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से अचानक इस्तीफा देकर पूरे राजनीतिक गलियारे को चौंका दिया है। मंगलवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनका इस्तीफा औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया। इसके साथ ही धनखड़ का साढ़े तीन साल शेष कार्यकाल अचानक समाप्त हो गया। राज्यसभा में आज इसकी जानकारी पीठासीन अधिकारी घनश्याम तिवाड़ी ने दी।
संसद में नहीं दिखे धनखड़, विदाई कार्यक्रम से भी दूरी
धनखड़ आज संसद के उच्च सदन राज्यसभा की कार्यवाही में शामिल नहीं हुए। सुबह 11 बजे कार्यवाही की शुरुआत जेडीयू सांसद हरिवंश ने की। यह भी स्पष्ट हो गया कि वह विदाई समारोह में भी भाग नहीं लेंगे। यह निर्णय उनके इस्तीफे को और रहस्यमय बना रहा है, क्योंकि आमतौर पर इतने उच्च पद से जाने वाले नेता औपचारिक विदाई में हिस्सा लेते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने दी शुभकामनाएं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उपराष्ट्रपति के इस्तीफे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा— “मैं श्रीमान धनखड़ के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूं। उन्होंने अपने कार्यकाल में संविधान और लोकतंत्र के मूल्यों का पालन किया।” मोदी का यह वक्तव्य औपचारिक था लेकिन उनके इस्तीफे के समय को लेकर राजनीतिक हलकों में सवाल उठ रहे हैं।
अचानक इस्तीफा और पिछले बयान में विरोधाभास
धनखड़ ने 21 जुलाई की रात अपने पद से इस्तीफा दिया था, जबकि 10 जुलाई को एक सार्वजनिक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था— “ईश्वर की कृपा रही तो अगस्त 2027 में रिटायर हो जाऊंगा।” उनके इस बयान से किसी भी तरह के जल्द इस्तीफे की संभावना नहीं लग रही थी। ऐसे में उनका अचानक इस्तीफा देना और बाद में विदाई कार्यक्रम से दूरी बनाना, इस घटनाक्रम को और अधिक महत्वपूर्ण और रहस्यमय बनाता है।
74 वर्षीय धनखड़ का राजनीतिक और संवैधानिक सफर
74 वर्षीय जगदीप धनखड़ एक वरिष्ठ वकील, राजनीतिज्ञ और पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल रह चुके हैं। वे अगस्त 2022 में भारत के 14वें उपराष्ट्रपति चुने गए थे। अपने कार्यकाल में उन्होंने कई बार विपक्षी दलों से टकराव के चलते सुर्खियाँ बटोरीं, विशेषकर राज्यसभा की कार्यवाही में उनके सख्त रवैये के लिए। धनखड़ का जन्म झुंझुनू (राजस्थान) में हुआ था। वे छात्र जीवन में ही कानून की पढ़ाई के दौरान राजनीति में सक्रिय हो गए थे। इसके बाद वे जनसंघ और जनता दल से होते हुए भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए। संसद सदस्य और मंत्री के रूप में भी उन्होंने सेवाएं दीं। उनके संवैधानिक कार्यकाल को प्रभावशाली और मुखर माना जाता है।