उपराष्ट्रपति चुनाव 2025: I.N.D.I.A ने उतारे पूर्व जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी, NDA से सीपी राधाकृष्णन का मुकाबला
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति पद का चुनाव इस बार बेहद दिलचस्प होने जा रहा है। विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। दूसरी ओर, सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) पहले ही भाजपा के वरिष्ठ नेता और तमिलनाडु के पूर्व राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतर चुका है। इस प्रकार अब उपराष्ट्रपति की कुर्सी को लेकर सीधा और कड़ा मुकाबला तय हो गया है।
I.N.D.I.A की रणनीति: न्यायपालिका से चेहरा चुनने का संदेश
विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A ने लंबे विचार-विमर्श के बाद बी. सुदर्शन रेड्डी पर दांव लगाया। न्यायपालिका से आने वाले व्यक्तित्व को उम्मीदवार बनाने के पीछे विपक्ष का उद्देश्य साफ है – वह जनता को यह संदेश देना चाहता है कि वह लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूती और निष्पक्षता के लिए प्रतिबद्ध है। जस्टिस रेड्डी की छवि एक कड़े और निष्पक्ष न्यायाधीश के रूप में रही है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में रहते हुए कई ऐतिहासिक फैसलों में अपनी भूमिका निभाई और विधि-व्यवस्था की मजबूती पर जोर दिया।
विपक्ष का मानना है कि राजनीति से परे रहकर काम करने वाले व्यक्ति को उतारना जनता और सांसदों के बीच एक सकारात्मक संदेश देगा। यह कदम विशेष रूप से उन वर्गों को साधने की कोशिश भी माना जा रहा है जो मानते हैं कि लोकतंत्र के भीतर संतुलन बनाए रखने में न्यायपालिका की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
NDA का दांव: दक्षिण भारत से अनुभवी नेता
दूसरी ओर, भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए ने अपने उम्मीदवार के रूप में सीपी राधाकृष्णन को चुना है। राधाकृष्णन तमिलनाडु के अनुभवी नेता रहे हैं और पार्टी संगठन में उनकी मजबूत पकड़ है। वह तमिलनाडु के भाजपा अध्यक्ष रह चुके हैं और दक्षिण भारत में भाजपा के विस्तार के लिए लंबे समय तक काम करते रहे हैं। उन्हें केंद्र सरकार ने अरुणाचल प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों का राज्यपाल बनाकर भी जिम्मेदारियां सौंपी थीं।
एनडीए ने राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाकर यह संकेत दिया है कि दक्षिण भारत को वह राजनीतिक दृष्टि से नजरअंदाज नहीं कर रहा है। उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद पर दक्षिण भारत से नेता को लाना भाजपा की उस रणनीति का हिस्सा है जिसके तहत वह दक्षिणी राज्यों में अपनी पकड़ को मजबूत करना चाहती है।
उपराष्ट्रपति चुनाव का महत्व
भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का सभापति भी होता है। ऐसे में यह चुनाव केवल औपचारिकता नहीं बल्कि संसद की कार्यवाही और संसदीय लोकतंत्र के संचालन से भी जुड़ा होता है। उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों के सांसदों द्वारा किया जाता है। निर्वाचक मंडल में लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचित एवं मनोनीत सदस्य शामिल होते हैं।
यही वजह है कि यह चुनाव राजनीतिक ताकत के प्रदर्शन का मंच भी बन जाता है। एनडीए के पास लोकसभा में बहुमत है और राज्यसभा में भी उसका प्रभाव लगातार बढ़ा है, ऐसे में उसके उम्मीदवार की जीत आसान मानी जा रही है। लेकिन विपक्ष के उम्मीदवार का उतारना केवल चुनाव जीतने की संभावना से अधिक राजनीतिक संदेश देने का प्रयास है।
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चुनावी समीकरण और संभावनाएँ
संसदीय गणित देखें तो भाजपा और उसके सहयोगियों की संख्या विपक्ष से कहीं अधिक है। 2022 में हुए उपराष्ट्रपति चुनाव में भी एनडीए के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ ने बड़ी जीत दर्ज की थी। इस बार भी आंकड़े एनडीए के पक्ष में झुके हुए हैं। फिर भी विपक्षी गठबंधन ने जिस तरह एक न्यायाधीश को मैदान में उतारा है, उससे राजनीतिक विमर्श का स्तर ऊँचा हुआ है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि बी. सुदर्शन रेड्डी भले ही चुनाव में जीत न पाएँ, लेकिन उनकी उम्मीदवारी विपक्ष के लिए नैतिक और वैचारिक आधार मजबूत कर सकती है। दूसरी ओर, सीपी राधाकृष्णन की जीत लगभग तय मानी जा रही है, लेकिन उनके चयन से भाजपा यह भी दिखाना चाहती है कि वह क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व को महत्व देती है।
दोनों उम्मीदवारों की प्रोफ़ाइल
- बी. सुदर्शन रेड्डी – आंध्र प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रह चुके हैं। अपनी ईमानदार और सख्त छवि के लिए जाने जाते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद भी उन्होंने सामाजिक और शैक्षणिक गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभाई है।
- सीपी राधाकृष्णन – तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष रह चुके हैं। भाजपा संगठन में लंबे समय तक काम किया। दो बार लोकसभा सांसद रहे। उन्हें राज्यपाल पद का अनुभव भी है। सरल और सुलझे हुए राजनेता के तौर पर उनकी पहचान है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनावी मैदान में किसका पलड़ा भारी पड़ता है। आंकड़ों के लिहाज से एनडीए मजबूत है और उसकी जीत लगभग तय मानी जा रही है। लेकिन विपक्ष ने जस्टिस रेड्डी को उतारकर इस चुनाव को मात्र औपचारिकता न रहने देकर लोकतांत्रिक विमर्श का नया आयाम दिया है। संसद और देश की राजनीति में यह चुनाव सत्ता और विपक्ष दोनों के लिए अपनी-अपनी विचारधारा और रणनीति को जनता के सामने रखने का अवसर बन गया है।
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