नई दिल्ली।
वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सुनवाई टाल दी गई। अब इस मामले में अगली सुनवाई 20 मई को होगी। प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि पहले दिए गए अंतरिम आदेश तब तक प्रभावी रहेंगे। कोर्ट ने 1995 के वक्फ अधिनियम को अब चुनौती देने पर सवाल उठाते हुए याचिकाकर्ताओं से स्पष्टीकरण भी मांगा है।
क्या है मामला?
वक्फ एक्ट 1995 में किए गए संशोधनों को लेकर कुछ याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इनका आरोप है कि ये संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 25-26 (धार्मिक स्वतंत्रता) और संपत्ति संबंधी अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। याचिका में यह भी कहा गया है कि वक्फ बोर्ड को दी गई असीमित शक्तियां भूमि और संपत्ति पर नागरिकों के मौलिक अधिकारों का अतिक्रमण करती हैं।
कोर्ट की टिप्पणी
सुनवाई के दौरान जब याचिकाकर्ताओं ने 1995 के वक्फ कानून को चुनौती दी, तो प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई ने कहा,
“1995 में बना कानून अब 2025 में चुनौती देने की अनुमति कैसे दी जा सकती है? क्या इतनी देरी के बावजूद इसे सुनवाई योग्य माना जाएगा?”
इस पर अदालत ने कोई अंतिम निर्णय नहीं दिया, लेकिन अगली सुनवाई तक पुराने अंतरिम आदेश जारी रखने का निर्देश दिया।
केंद्र सरकार का रुख
केंद्र सरकार ने इन याचिकाओं का विरोध करते हुए हलफनामा दाखिल किया है। सरकार का कहना है कि
“वक्फ अधिनियम में संशोधन किसी भी नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता। यह कानून केवल धार्मिक संपत्तियों के प्रभावी और धर्मनिरपेक्ष प्रबंधन के लिए बनाया गया है। इसमें किसी की व्यक्तिगत संपत्ति या धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप नहीं किया गया है।”
सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि वक्फ अधिनियम के तहत केवल उन संपत्तियों को शामिल किया गया है, जो पहले से वक्फ के तहत घोषित हैं या जिनके ऐतिहासिक और धार्मिक दस्तावेज हैं। यदि किसी को लगता है कि उनकी जमीन को गलत तरीके से वक्फ संपत्ति घोषित किया गया है, तो उसके लिए न्यायिक प्रक्रिया उपलब्ध है।
विपक्ष और सामाजिक संगठनों की आपत्ति
हाल के वर्षों में वक्फ कानून को लेकर कई राज्य और सामाजिक संगठन खुलकर विरोध कर चुके हैं। आरोप है कि वक्फ बोर्ड के पास इतनी असीमित शक्तियाँ हैं कि वह सार्वजनिक या निजी जमीन को भी ‘वक्फ संपत्ति’ घोषित कर सकता है, जिससे विवादों और संपत्ति विवादों में बढ़ोतरी हुई है।
विरोध करने वालों का यह भी कहना है कि यह कानून देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर सवाल खड़ा करता है और अन्य धर्मों के लिए इस प्रकार की समान संस्थागत संरचना नहीं है।
अगली सुनवाई पर निगाहें
अब सभी की निगाहें 20 मई को होने वाली अगली सुनवाई पर टिकी हैं। सुप्रीम कोर्ट के सामने यह तय करना है कि क्या इतने साल पुराने कानून को वर्तमान में चुनौती देने का संवैधानिक आधार है, और क्या वक्फ कानून के हालिया संशोधन नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन करते हैं।
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