पंचगनी सहित सात प्राकृतिक स्थल यूनेस्को की विश्व विरासत संभावित सूची में शामिल, भारत की संख्या बढ़कर 69
नई दिल्ली, 18 सितंबर (हि.स.)।
भारत की सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर को वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम बढ़ा है। यूनेस्को (UNESCO) ने देश के सात नए प्राकृतिक स्थलों को अपनी विश्व विरासत स्थलों की संभावित सूची (Tentative List) में शामिल कर लिया है। इनमें महाराष्ट्र का पंचगनी-महाबलेश्वर स्थित डेक्कन ट्रैप, कर्नाटक का सेंट मैरी द्वीप समूह, नागालैंड की नागा हिल ओफियोलाइट, आंध्र प्रदेश का एर्रा मट्टी डिब्बालु (लाल रेत की पहाड़ियां) और तिरुमाला पहाड़ियां, केरल की वर्कला चट्टानें तथा मेघालय की मेघालय युग की गुफाएं शामिल हैं।

इनके जुड़ने से भारत के पास यूनेस्को की संभावित सूची में कुल 69 स्थल हो गए हैं, जिनमें 49 सांस्कृतिक, 17 प्राकृतिक और 3 मिश्रित विरासत स्थल शामिल हैं।
क्यों महत्वपूर्ण है यह सूची?
यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में किसी भी स्थल को शामिल करने से पहले उसे संभावित सूची में डाला जाता है। यह अनिवार्य प्रक्रिया है, जिसके बाद विशेषज्ञ उस स्थल के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक महत्व का मूल्यांकन करते हैं। केवल इस सूची में शामिल होने के बाद ही किसी स्थल को आधिकारिक विश्व विरासत का दर्जा मिल सकता है।
कौन-कौन से स्थल शामिल हुए?
- महाराष्ट्र का पंचगनी और महाबलेश्वर स्थित डेक्कन ट्रैप
- इसे दुनिया के सबसे अच्छे संरक्षित और अध्ययन किए गए लावा प्रवाहों में गिना जाता है।
- यह विशाल डेक्कन ट्रैप का हिस्सा है और कोयना वन्यजीव अभयारण्य के भीतर स्थित है, जो पहले से ही यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में है।

- कर्नाटक का सेंट मैरी द्वीप समूह
- यह अपनी दुर्लभ स्तंभाकार बेसाल्टिक चट्टान संरचनाओं के लिए प्रसिद्ध है।
- इसका निर्माण लगभग 85 मिलियन वर्ष पूर्व (उत्तर क्रेटेशियस काल) में हुआ था।
- यह द्वीप समूह भारत की अनोखी भूवैज्ञानिक विरासत का प्रतीक है।

- मेघालय की मेघालय युग की गुफाएं
- इनमें खासकर माव्लुह गुफा का महत्व अत्यधिक है।
- यह गुफाएं होलोसीन युग की जलवायु और भूवैज्ञानिक परिवर्तनों की जानकारी देती हैं।
- इन्हें वैश्विक स्तर पर मेघालय युग (Meghalayan Age) का संदर्भ बिंदु माना जाता है।

- नागालैंड की नागा हिल ओफियोलाइट
- यह स्थल ओफियोलाइट चट्टानों का दुर्लभ उदाहरण है।
- यह चट्टानें महाद्वीपीय प्लेटों पर उभरी महासागरीय परत का प्रतिनिधित्व करती हैं।
- टेक्टोनिक गतिविधियों और महासागरीय रिज की गतिशीलता को समझने के लिए यह स्थल बेहद अहम है।

- आंध्र प्रदेश का एर्रा मट्टी डिब्बालु (लाल रेत की पहाड़ियां)
- यह विशाखापत्तनम के पास स्थित है।
- इसकी लाल रेत की संरचनाएं पृथ्वी के जलवायु इतिहास और तटीय भू-आकृति विज्ञान की अनूठी झलक देती हैं।
- यह स्थल पुरा-जलवायु अनुसंधान के लिए महत्वपूर्ण है।

- आंध्र प्रदेश की तिरुमाला पहाड़ियां
- यह स्थल अपने एपार्चियन नादुरुस्ती (Unconformity) और सिलाथोरनम (प्राकृतिक मेहराब) के लिए जाना जाता है।
- यहां की चट्टान संरचनाएं पृथ्वी के 1.5 अरब वर्षों से अधिक के भूवैज्ञानिक इतिहास को दर्शाती हैं।
- इसे वैज्ञानिक और धार्मिक, दोनों दृष्टियों से अहम माना जाता है।

- केरल की वर्कला चट्टानें
- यह सुंदर चट्टानें समुद्र तट के किनारे स्थित हैं और अपने प्राकृतिक झरनों के लिए भी जानी जाती हैं।
- ये मायो-प्लियोसीन युग की संरचनाओं को प्रदर्शित करती हैं।
- यह स्थल वैज्ञानिक महत्व के साथ-साथ पर्यटन की दृष्टि से भी अत्यधिक लोकप्रिय है।

भारत की विरासत धरोहर को बढ़ावा
संस्कृति मंत्रालय का कहना है कि यह उपलब्धि भारत के प्राकृतिक धरोहर स्थलों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर नई पहचान दिलाएगी। इन स्थलों के संभावित सूची में शामिल होने से भारत के पर्यटन और अनुसंधान क्षेत्र को भी नया प्रोत्साहन मिलेगा।
भारत की विविधता केवल संस्कृति और परंपरा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसकी प्राकृतिक धरोहर भी उतनी ही समृद्ध है। पंचगनी के डेक्कन ट्रैप से लेकर मेघालय की गुफाओं तक, यह सात स्थल न केवल भूवैज्ञानिक और पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि विश्व के लिए प्रकृति और इतिहास की अनूठी धरोहर भी हैं। यदि भविष्य में इन्हें यूनेस्को की आधिकारिक विश्व विरासत सूची में शामिल किया जाता है तो यह भारत के लिए गर्व का विषय होगा और वैश्विक मानचित्र पर देश की पहचान को और मजबूत करेगा।
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