उदयपुर फाइल्स पर केंद्र का हस्तक्षेप: दिल्ली हाईकोर्ट ने उठाए कानूनी अधिकारों पर सवाल
नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय में बुधवार को फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ को लेकर एक अहम सुनवाई हुई, जिसमें यह सवाल प्रमुखता से उठाया गया कि क्या केंद्र सरकार को किसी फिल्म में संशोधन या कट लगाने का कानूनी अधिकार है। मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार सिनेमैटोग्राफिक एक्ट, 1952 की धारा 6 के अंतर्गत पुनर्विचार कर सकती है, लेकिन कानून के दायरे से बाहर जाकर कोई आदेश पारित नहीं किया जा सकता।

केंद्र की भूमिका पर अदालत की तल्ख टिप्पणी
सुनवाई के दौरान अदालत ने केंद्र से सीधे तौर पर पूछा कि वह किन आधारों पर फिल्म में बदलाव की बात कर रही है। केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने दलील दी कि उच्च न्यायालय के 10 जुलाई के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इस पर अदालत ने कहा कि यदि पहले ही अदालत द्वारा एक आदेश जारी किया जा चुका है, तो उसके बाद केंद्र द्वारा अलग से आदेश जारी करने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

फिल्म पर रोक की मांग
सुनवाई के दौरान कन्हैयालाल हत्याकांड के मुख्य आरोपी मोहम्मद जावेद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि यह फिल्म एक अभी तक अधूरी न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि:
- इस केस में अब तक 160 गवाहों के बयान दर्ज नहीं हो सके हैं।
- यदि यह फिल्म रिलीज होती है, तो लगभग 1800 सिनेमाघरों में दिखाई जाएगी।
- इसका प्रभाव न्यायाधीश, कोर्ट मास्टर, आम नागरिक और गवाहों पर पड़ेगा, जिससे निष्पक्ष सुनवाई खतरे में पड़ सकती है।
निष्पक्ष न्याय बनाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निष्पक्ष न्याय के अधिकार के बीच संतुलन बनाने की चुनौती से जुड़ा हुआ है। एक ओर फिल्म निर्माता रचनात्मक स्वतंत्रता की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर वकील मेनका गुरुस्वामी का तर्क है कि फिल्म की रिलीज से समाज में एकतरफा सोच को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे न्याय प्रक्रिया पर सीधा असर पड़ेगा।
सिनेमैटोग्राफिक एक्ट की धारा 6 क्या कहती है?
सिनेमैटोग्राफिक एक्ट की धारा 6 के अंतर्गत सरकार केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) के फैसले पर पुनर्विचार कर सकती है। हालांकि, इस पुनर्विचार की प्रक्रिया भी स्पष्ट और सीमित दायरे में होनी चाहिए। अदालत ने स्पष्ट किया कि सरकार को यह समझना होगा कि वह कानून से ऊपर नहीं है, और कोई भी निर्णय संवैधानिक मर्यादाओं के भीतर ही लिया जाना चाहिए।
आगे की सुनवाई 1 अगस्त को
कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 1 अगस्त को निर्धारित की है, जिसमें यह तय किया जाएगा कि क्या ‘उदयपुर फाइल्स’ को लेकर सरकार की दखलंदाजी वैधानिक है या नहीं।
स्वदेश ज्योति के द्वारा | और भी दिलचस्प खबरें आपके लिए… सिर्फ़ स्वदेश ज्योति पर!