October 30, 2025 12:57 PM

ट्रंप ने चीन पर 10% टैरिफ घटाया, सियोल में शी जिनपिंग से मुलाकात के बाद बने सकारात्मक संकेत

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  • एपेक शिखर सम्मेलन में दोनों नेताओं की 2019 के बाद पहली मुलाकात, व्यापार और सुरक्षा संबंधों पर हुई गहन चर्चा

सियोल। अमेरिका और चीन के बीच लंबे समय से जारी व्यापारिक तनाव के बीच एक बड़ा मोड़ सामने आया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर लगाए गए टैरिफ में 10 प्रतिशत की कमी की घोषणा की है। यह फैसला सियोल में हुए एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (एपेक) शिखर सम्मेलन के दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात के बाद आया है। दोनों नेताओं की यह मुलाकात वर्ष 2019 के बाद पहली बार हुई है, जिसे वैश्विक व्यापारिक संबंधों में एक अहम पड़ाव माना जा रहा है।

सियोल में हुई ऐतिहासिक मुलाकात

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग दक्षिण कोरिया के बुसान शहर में आयोजित एपेक शिखर सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे थे। इसी दौरान उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की। इस मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं ने न केवल व्यापारिक विवादों पर चर्चा की, बल्कि सुरक्षा, आपसी सहयोग और भविष्य के संबंधों पर भी विचार-विमर्श किया। ट्रंप ने मुलाकात के बाद कहा, “हमारी वार्ता बहुत सफल रहने वाली है। शी जिनपिंग एक कठोर वार्ताकार हैं, लेकिन वे एक महान देश के महान नेता भी हैं। हमारे बीच हमेशा से अच्छे संबंध रहे हैं और मुझे विश्वास है कि यह रिश्ता लंबे समय तक शानदार रहेगा।”

वहीं, शी जिनपिंग ने भी ट्रंप की सराहना करते हुए कहा कि अमेरिका और चीन, दोनों विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ हैं, और कभी-कभी मतभेद होना स्वाभाविक है। उन्होंने कहा कि चीन का विकास अमेरिका की ‘अमेरिका को फिर से महान बनाओ’ नीति के समानांतर चलता है और दोनों देशों के सहयोग से एक स्थिर वैश्विक आर्थिक ढांचा बनाया जा सकता है।

157% टैरिफ की धमकी से 10% राहत तक

ट्रंप ने कुछ सप्ताह पहले ही चीन पर लगाए गए टैरिफ को 157 प्रतिशत तक बढ़ाने की चेतावनी दी थी। उन्होंने कहा था कि यदि चीन ने अपने व्यापारिक व्यवहार में सुधार नहीं किया तो 1 नवंबर से यह टैरिफ लागू हो जाएंगे। हालांकि, सियोल में हुई इस मुलाकात के बाद ट्रंप ने टैरिफ दर को 10 प्रतिशत घटाने का ऐलान किया, जिससे बाजारों में सकारात्मक प्रतिक्रिया देखी गई।

विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम ट्रंप प्रशासन की ओर से चीन के प्रति एक ‘सॉफ्ट सिग्नल’ है, जो दोनों देशों के बीच व्यापारिक संवाद को पुनः शुरू करने का संकेत देता है।

रेयर अर्थ विवाद से बढ़ा तनाव

टैरिफ विवाद के पीछे एक प्रमुख कारण चीन का रेयर अर्थ तत्वों के निर्यात पर नियंत्रण था। चीन ने हाल ही में इन दुर्लभ खनिजों के निर्यात के नियम कड़े कर दिए थे, जिससे अमेरिका की उच्च-तकनीकी उद्योगों पर असर पड़ा। इसके जवाब में ट्रंप प्रशासन ने चीन पर टैरिफ बम फोड़ा था।

हालांकि, अब दोनों देशों के बीच माहौल में नरमी दिख रही है। बीते हफ्ते मलेशिया में दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने एक रूपरेखा समझौते (फ्रेमवर्क एग्रीमेंट) पर हस्ताक्षर किए थे, जिसने इस शिखर बैठक के लिए रास्ता तैयार किया।

दोनों देशों के बीच नई दिशा की उम्मीद

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने कहा कि दोनों नेता अमेरिका-चीन संबंधों से जुड़े रणनीतिक और दीर्घकालिक मुद्दों पर गहन चर्चा कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि यह बैठक न केवल व्यापारिक मतभेदों को दूर करने के लिए बल्कि वैश्विक स्थिरता और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में संतुलन स्थापित करने के लिए भी महत्वपूर्ण है।

अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने भी इस दिशा में सकारात्मक संकेत दिए। उन्होंने कहा कि अब “100 प्रतिशत टैरिफ की धमकी प्रभावी रूप से विचाराधीन नहीं है।” इससे स्पष्ट है कि दोनों देशों के बीच वार्ता का माहौल फिर से बन रहा है और भविष्य में व्यापारिक नीतियों में स्थिरता देखने को मिल सकती है।

वैश्विक बाजारों में राहत की लहर

ट्रंप के टैरिफ कम करने के निर्णय के बाद वैश्विक शेयर बाजारों में तेजी देखी गई। एशियाई बाजारों में सुबह के कारोबार में ही बढ़त दर्ज की गई, वहीं डॉलर के मुकाबले युआन में भी मजबूती आई। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि दोनों देश आगे भी सहयोग बनाए रखते हैं, तो इससे वैश्विक व्यापारिक संतुलन बहाल होगा और मंदी के खतरे में कमी आएगी।

भविष्य के संबंधों की नई नींव

विशेषज्ञों के अनुसार, यह मुलाकात केवल व्यापारिक मुद्दों तक सीमित नहीं रही, बल्कि दोनों नेताओं ने सुरक्षा, प्रौद्योगिकी, निवेश और एशियाई सहयोग पर भी चर्चा की। शी जिनपिंग की यह यात्रा बीजिंग, सियोल और वाशिंगटन के बीच भविष्य के संबंधों की नई नींव रख सकती है।

सियोल में यह संवाद एक बार फिर साबित करता है कि दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ जब सहयोग की दिशा में कदम बढ़ाती हैं, तो उसका असर न केवल उनके द्विपक्षीय संबंधों पर, बल्कि पूरे वैश्विक आर्थिक ढांचे पर पड़ता है।

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