अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने पेंटागन को परमाणु परीक्षण शुरू करने का आदेश दिया, 33 साल बाद अमेरिका फिर करेगा न्यूक्लियर टेस्ट

1992 के बाद पहली बार पेंटागन को परमाणु हथियारों की टेस्टिंग शुरू करने का निर्देश, विशेषज्ञों में मचा हड़कंप

वॉशिंगटन। अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और हथियार नियंत्रण की दिशा में एक बड़ा मोड़ लेते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने रक्षा मंत्रालय (पेंटागन) को तुरंत प्रभाव से परमाणु हथियारों की टेस्टिंग शुरू करने का आदेश दिया है। ट्रम्प ने स्पष्ट कहा कि अमेरिका की परमाणु क्षमता अब चीन और रूस के बराबर या उससे आगे होनी चाहिए।

यह कदम न केवल विश्व राजनीति में नई हलचल पैदा कर रहा है, बल्कि यह अमेरिका की उस नीति से भी बड़ा बदलाव है, जो पिछले तीन दशकों से परमाणु परीक्षणों पर रोक रखे हुए थी।

33 साल बाद फिर गूंजेगा अमेरिका का भूमिगत धमाका

अमेरिका ने आखिरी बार 23 सितंबर 1992 को परमाणु परीक्षण किया था।
यह परीक्षण अमेरिका की 1,030वीं टेस्टिंग थी, जिसे नेवादा टेस्ट साइट के रेनियर मेसा पहाड़ी क्षेत्र में जमीन के 2300 फीट नीचे अंजाम दिया गया था।

इसका कोडनेम “डिवाइडर” रखा गया था। विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि नीचे की चट्टानें पिघल गईं और जमीन की सतह लगभग एक फुट ऊपर उठने के बाद धंस गई। आज भी वहां 150 मीटर चौड़ा और 10 मीटर गहरा गड्ढा मौजूद है, जो उस ऐतिहासिक विस्फोट का साक्षी है।


1996 की परमाणु परीक्षण रोक संधि के बावजूद आदेश

गौरतलब है कि 1996 में ‘कम्प्रिहेंसिव न्यूक्लियर टेस्ट बैन ट्रीटी (CTBT)’ पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसके तहत भूमिगत या किसी भी प्रकार के परमाणु परीक्षणों पर वैश्विक स्तर पर प्रतिबंध लगाया गया था।

हालांकि, अमेरिका और चीन दोनों ने इस संधि पर हस्ताक्षर तो किए थे, लेकिन आज तक इसे औपचारिक रूप से मंजूरी (ratify) नहीं दी गई।
अब ट्रम्प का यह कदम अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए एक स्पष्ट संदेश माना जा रहा है कि अमेरिका अब किसी भी स्थिति में रक्षा और तकनीकी प्रभुत्व बनाए रखने के लिए तैयार है।


बुश ने लगाई थी रोक, ट्रम्प ने तोड़ी परंपरा

1992 में आखिरी परीक्षण के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज एच. डब्ल्यू. बुश ने भूमिगत परमाणु परीक्षणों पर रोक की घोषणा की थी।
यह कदम पर्यावरणीय और कूटनीतिक कारणों से उठाया गया था, क्योंकि उस समय परमाणु परीक्षणों से निकलने वाले रेडिएशन ने वैश्विक स्तर पर विरोध को जन्म दिया था।

इसके बाद अमेरिका ने अपनी परमाणु नीति को “सुरक्षित और साइलेंट” मोड में रखा — यानी बिना विस्फोट वाले sub-critical tests और कंप्यूटर सिमुलेशन के जरिए परमाणु हथियारों की जांच जारी रखी।

अब ट्रम्प के आदेश से यह परंपरा समाप्त होती दिख रही है।

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रूस और चीन की बढ़ती गतिविधियों से चिंतित अमेरिका

ट्रम्प प्रशासन के करीबी सूत्रों का कहना है कि राष्ट्रपति यह निर्णय रूस और चीन की बढ़ती परमाणु सक्रियता के जवाब में ले रहे हैं।
हाल ही में रूस ने दो परमाणु मिसाइल परीक्षण किए थे। हालांकि ये पूर्ण विस्फोटक परीक्षण नहीं थे, बल्कि मिसाइल सिस्टम टेस्ट थे — जिनमें इंजन, दिशा, रेंज और डिलीवरी क्षमता की जांच की जाती है।

इसी तरह, चीन ने भी पिछले कुछ महीनों में हाइपरसोनिक मिसाइलों और नई परमाणु तकनीक पर प्रयोग किए हैं।
इन दोनों देशों की गतिविधियों ने अमेरिकी रक्षा तंत्र में चिंता बढ़ा दी है।


क्या यह “वास्तविक विस्फोट” होगा या केवल संकेत?

अमेरिकी रक्षा मंत्रालय (पेंटागन) ने अब तक स्पष्ट नहीं किया है कि राष्ट्रपति ट्रम्प का आदेश पूर्ण विस्फोटक परीक्षण से जुड़ा है या बिना विस्फोट वाले तकनीकी परीक्षण से।
कई विशेषज्ञों का मानना है कि फिलहाल यह सिर्फ एक संकेतात्मक या तैयारी चरण का कदम है, न कि तत्कालिक विस्फोट।

परमाणु विशेषज्ञों का कहना है कि यदि अमेरिका अब वास्तविक परीक्षण करता है, तो इससे CTBT जैसी अंतरराष्ट्रीय संधियों की विश्वसनीयता पर गहरा असर पड़ेगा और वैश्विक हथियार प्रतिस्पर्धा (Arms Race) एक बार फिर तेज़ हो सकती है।


विशेषज्ञों की चिंता: नई हथियार होड़ की शुरुआत

अमेरिकी परमाणु नीति विशेषज्ञ जॉन वुल्फस्टाल ने कहा कि “यदि अमेरिका ने परीक्षण शुरू किया, तो रूस, चीन और अन्य परमाणु देशों पर भी दबाव बढ़ेगा कि वे अपनी क्षमताएं दिखाएं। यह दुनिया को एक नई ‘शीत युद्ध स्थिति’ की ओर धकेल सकता है।”

पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि भूमिगत परीक्षणों से निकलने वाला रेडिएशन भूजल प्रदूषण और भूकंपीय अस्थिरता पैदा कर सकता है।
इसलिए यदि अमेरिका फिर से टेस्टिंग करता है, तो इसका असर केवल रक्षा क्षेत्र तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पर्यावरण और वैश्विक राजनीति दोनों पर पड़ेगा।


ट्रम्प का संदेश: “कमज़ोरी नहीं, शक्ति दिखाने का समय”

व्हाइट हाउस से जुड़े सूत्रों के अनुसार, ट्रम्प ने अपने आदेश में कहा कि
“अमेरिका अब किसी भी देश से पीछे नहीं रहेगा। यदि रूस और चीन अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन कर सकते हैं, तो अमेरिका भी करेगा — और उनसे बेहतर करेगा।”

उनका यह बयान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शक्ति संतुलन की दिशा में एक कठोर रणनीतिक संकेत माना जा रहा है।


परमाणु राजनीति का नया दौर शुरू

ट्रम्प के इस आदेश ने स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले महीनों में परमाणु नीति और वैश्विक हथियार नियंत्रण अंतरराष्ट्रीय राजनीति का केंद्र बनने जा रहा है।
जहां अमेरिका इसे अपनी सुरक्षा और ताकत के प्रतीक के रूप में देखता है, वहीं कई देश इसे वैश्विक अस्थिरता का संकेत मान रहे हैं।

अब पूरी दुनिया की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि पेंटागन इस आदेश को कैसे लागू करता है — क्या यह वास्तविक विस्फोटक परीक्षण होगा, या फिर प्रतीकात्मक वैज्ञानिक प्रदर्शन?