ट्रंप का बड़ा फैसला: H-1B वीजा फीस 1 लाख डॉलर, भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स पर गहरा असर
वॉशिंगटन/नई दिल्ली। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार सुबह एच-1बी वीजा की फीस में अभूतपूर्व बढ़ोतरी का ऐलान किया। पहले जहां इस वीजा के लिए 5.5 से 6.7 लाख रुपए लगते थे, अब आवेदन शुल्क सीधे 1 लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपए) कर दिया गया है। इस फैसले से न केवल भारतीय आईटी कंपनियों पर असर पड़ेगा, बल्कि लाखों पेशेवर और उनके परिवार भी प्रभावित होंगे।
व्हाइट हाउस का स्पष्टीकरण
निर्णय के कुछ घंटों बाद देर रात व्हाइट हाउस ने स्थिति स्पष्ट की। प्रेस सेक्रेटरी कैरोलिन लेविट ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा कि यह फीस केवल वन टाइम एप्लिकेशन फीस होगी। इसका भुगतान आवेदन करते समय करना होगा। हालांकि यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि तीन साल बाद वीजा रिन्युअल कराने पर यह शुल्क फिर लगेगा या नहीं।
लेविट ने बताया कि यह नई फीस केवल 21 सितंबर 2025 के बाद दाखिल होने वाले आवेदनों पर लागू होगी। मौजूदा वीजा धारक और उनके रिन्युअल आवेदन पुराने नियमों के तहत ही रहेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा H-1B वीजा धारक बिना किसी दिक्कत के देश से बाहर आ-जा सकते हैं।
अमेरिकी नौकरियों की सुरक्षा का तर्क

व्हाइट हाउस ने इस फैसले को सही ठहराने के लिए एक “फैक्ट शीट” भी जारी की। इसमें कहा गया कि विदेशी कर्मचारियों की वजह से अमेरिकी युवाओं की नौकरियां प्रभावित हो रही हैं।
- 2003 में अमेरिकी टेक इंडस्ट्री में H-1B धारकों की हिस्सेदारी 32% थी, जो अब बढ़कर 65% हो गई है।
- कंप्यूटर साइंस ग्रेजुएट्स की बेरोजगारी दर 6.1% और कंप्यूटर इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स की दर 7.5% है, जो अन्य विषयों के छात्रों से दोगुना है।
- 2000 से 2019 तक विदेशी STEM वर्कर्स की संख्या दोगुनी हो गई, जबकि कुल STEM नौकरियों में केवल 44.5% वृद्धि हुई।
- कई कंपनियों ने हजारों H-1B कर्मचारियों को रखते हुए अमेरिकी कर्मचारियों को नौकरी से निकाला। उदाहरण के लिए, 2025 में एक कंपनी को 5,189 वीजा मिले और उसने 16,000 अमेरिकी कर्मचारियों को हटाया।
एयरपोर्ट्स पर अफरा-तफरी
ट्रम्प के इस ऐलान के बाद अमेरिकी और भारतीय एयरपोर्ट्स पर अफरा-तफरी का माहौल देखने को मिला। माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन और मेटा जैसी कंपनियों ने अपने विदेशी कर्मचारियों को सलाह दी कि वे तुरंत अमेरिका लौट आएं, ताकि रविवार से पहले प्रवेश कर सकें। कई कर्मचारियों ने वॉशिंगटन और न्यूयॉर्क एयरपोर्ट्स पर टिकट रद्द कराए, वहीं दिल्ली एयरपोर्ट पर भी अमेरिका लौटने के लिए लंबी कतारें देखी गईं।
कुछ भारतीय मूल के कर्मचारी जो दिवाली पर भारत आने की योजना बना रहे थे, उन्होंने भी टिकट रद्द करा दिए। इमिग्रेशन अटॉर्नियों ने चेतावनी दी थी कि तय समय के बाद आने-जाने पर कर्मचारियों और उनके परिवारों को भारी मुश्किलें झेलनी पड़ सकती हैं।
भारत सरकार की प्रतिक्रिया
भारत ने इस फैसले पर चिंता जताई है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा,
“इस कदम का मानवीय असर पड़ेगा। हजारों भारतीय परिवार प्रभावित होंगे। भारत सरकार को उम्मीद है कि अमेरिका बातचीत के जरिए इसका समाधान निकालेगा।”
H-1B वीजा क्या है?
- H-1B एक नॉन-इमिग्रेंट वीजा है, जो तकनीकी और विशेष कौशल वाले लोगों (IT, इंजीनियरिंग, स्वास्थ्य, आर्किटेक्चर आदि) को दिया जाता है।
- हर साल अमेरिका 85,000 H-1B वीजा जारी करता है।
- 2024 में इस वीजा के तहत सबसे ज्यादा लाभ भारतीयों को मिला, जिनकी संख्या 2,07,000 तक पहुंच गई।
- अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट, मेटा, इंफोसिस, टीसीएस, विप्रो और एचसीएल जैसी कंपनियां हर साल हजारों कर्मचारियों को H-1B वीजा पर अमेरिका भेजती हैं।
भारतीयों पर असर
- नए नियमों से लगभग 2 लाख से ज्यादा भारतीय पेशेवर प्रभावित होंगे।
- पहले H-1B वीजा पर अमेरिका में 6 साल रहने का खर्च 11 से 13 लाख रुपए तक होता था, अब यह सीधा 88 लाख रुपए हो जाएगा।
- औसत H-1B कर्मचारी का वेतन अमेरिका में 70 लाख रुपए सालाना है, यानी नई फीस एक साल के वेतन से भी ज्यादा है।
- कंपनियां शायद इतने महंगे वीजा पर एंट्री-लेवल या मिड-लेवल भारतीय कर्मचारियों को भेजने से हिचकेंगी।
- नौकरियां आउटसोर्स होने की संभावना बढ़ जाएगी, जिससे अमेरिका में भारतीय पेशेवरों के अवसर सीमित हो सकते हैं।
क्या यह फीस हर साल लगेगी?
व्हाइट हाउस के अनुसार यह फीस एक बार देनी होगी। यानी आवेदन करते समय ही पूरी रकम देनी होगी। नवीनीकरण (renewals) पर यह लागू नहीं होगी। हालांकि, भविष्य में इसमें बदलाव की संभावना से इनकार नहीं किया गया है।
आगे क्या?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम अमेरिकी चुनावी राजनीति से जुड़ा है। इससे अल्पावधि में अमेरिकी युवाओं को संदेश मिलेगा कि सरकार उनकी नौकरियां बचाने के लिए सख्त कदम उठा रही है। लेकिन लंबे समय में यह निर्णय अमेरिकी कंपनियों को नुकसान पहुंचा सकता है, क्योंकि उन्हें भारतीय और एशियाई टैलेंट पर काफी हद तक निर्भर रहना पड़ता है।
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