प्रधानमंत्री मोदी, राहुल गांधी सहित शीर्ष नेताओं ने संविधान सदन में दी श्रद्धांजलि
नई दिल्ली। आज देश ने संसद पर हुए आतंकी हमले की 24वीं बरसी पर अपने वीर शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। 13 दिसंबर 2001 का वह दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है, जब आतंकवादियों ने देश की सर्वोच्च लोकतांत्रिक संस्था संसद को निशाना बनाने की कोशिश की थी। इस हमले में सुरक्षा बलों के कई जांबाज जवानों ने अपने प्राणों की आहुति देकर संसद और देश की संप्रभुता की रक्षा की थी।
संविधान सदन में श्रद्धांजलि समारोह
इस अवसर पर आज संविधान सदन, यानी पुराने संसद भवन परिसर में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन ने सबसे पहले शहीद जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने शहीदों की तस्वीरों के सामने पुष्प अर्पित कर उन्हें नमन किया। समारोह के दौरान पूरे परिसर में गंभीर और भावुक माहौल देखने को मिला।
सीआईएसएफ ने दिया सम्मान गार्ड, मौन रखकर किया नमन
श्रद्धांजलि कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के जवानों ने ‘सम्मान गार्ड’ दिया। इसके बाद शहीदों की स्मृति में कुछ मिनट का मौन रखा गया। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2023 तक इस अवसर पर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल द्वारा ‘सलामी शस्त्र’ दी जाती थी, लेकिन अब यह जिम्मेदारी सीआईएसएफ निभा रही है। जवानों का अनुशासित और गरिमामय सम्मान देश के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता नजर आया।
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राजनीतिक दलों से ऊपर उठकर नेताओं ने दी श्रद्धांजलि
श्रद्धांजलि देने वालों में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ कई अन्य वरिष्ठ नेता भी शामिल रहे। केंद्रीय मंत्रियों किरेन रिजिजू, जीतेंद्र सिंह और अर्जुन राम मेघवाल ने भी शहीद जवानों को नमन किया। वहीं लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने महाराष्ट्र के लातूर में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में भाग लेकर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। यह अवसर ऐसा रहा, जब राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर सभी दलों के नेताओं ने देश के वीरों को एक स्वर में नमन किया।
13 दिसंबर 2001: जब संसद पर हुआ था हमला
13 दिसंबर 2001 को हथियारों से लैस पांच आतंकी संसद भवन परिसर में घुसने में सफल हो गए थे। उस समय संसद सत्र चल रहा था और कई सांसद परिसर में मौजूद थे। सुरक्षा बलों ने तत्काल मोर्चा संभालते हुए आतंकियों को आगे बढ़ने से रोका। इस दौरान दिल्ली पुलिस के छह जवान, संसद सुरक्षा बल के दो जवान और एक टीवी पत्रकार शहीद हो गए। सुरक्षा बलों की तत्परता और साहस के कारण आतंकियों का मंसूबा नाकाम हो गया और लोकतंत्र के मंदिर की रक्षा हो सकी।
लोकतंत्र की रक्षा का प्रतीक बना बलिदान
संसद हमला केवल एक आतंकी घटना नहीं था, बल्कि यह भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सीधा हमला था। शहीद जवानों का बलिदान आज भी यह याद दिलाता है कि देश की सुरक्षा और लोकतंत्र की रक्षा के लिए कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। 24 साल बाद भी देश उनके साहस, कर्तव्यनिष्ठा और सर्वोच्च बलिदान को नमन कर रहा है।
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