नई दिल्ली: मेटा (फेसबुक) के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग द्वारा भारत के राजनीतिक परिदृश्य को लेकर दी गई गलत जानकारी के बाद, संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़ी संसदीय समिति के अध्यक्ष निशिकांत दुबे ने मंगलवार को कहा कि उनकी समिति मेटा को बुलाकर इस मामले पर स्पष्टीकरण मांगेगी। समिति मेटा से इस गलत बयान के लिए भारतीय संसद और भारतीय जनता से माफी की मांग करेगी।
जुकरबर्ग ने हाल ही में एक साक्षात्कार में कहा था कि कोविड-19 के बाद से भारत सहित दुनियाभर में सरकारों का परिवर्तन हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत समेत कई देशों में मौजूदा सरकारें कोविड के बाद हार गईं। इस बयान को गलत बताते हुए सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में 64 करोड़ मतदाताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर विश्वास जताया है।
वैष्णव ने जुकरबर्ग के इस बयान को तथ्यात्मक रूप से गलत करार दिया और कहा कि भारत सरकार ने कोविड महामारी के दौरान 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दिया और 2 अरब से ज्यादा मुफ्त टीके लगाए। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के निर्णयों के कारण भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गई है, और उनका तीसरा कार्यकाल उनकी अच्छी सरकार और जनता के विश्वास का प्रमाण है।
मंत्री वैष्णव ने मेटा को टैग करते हुए कहा कि जुकरबर्ग की ओर से दी गई गलत जानकारी निराशाजनक है। उन्होंने कहा कि हमें तथ्यों और विश्वसनीयता को बनाए रखना चाहिए।
यह बयान और उस पर उठे विवाद ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि सोशल मीडिया और तकनीकी कंपनियों को अपनी जानकारी के स्रोत और सत्यता की अधिक जिम्मेदारी निभानी चाहिए। भारत सरकार ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया है कि वह अपनी राष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचाने वाली गलत जानकारी को सहन नहीं करेगी और मेटा से इस पर माफी की उम्मीद कर रही है।
इस मामले में, मेटा को अब भारतीय संसद में बुलाया जाएगा और इस पर जवाब देना होगा। यह घटना इस बात की ओर इशारा करती है कि वैश्विक तकनीकी कंपनियों को अपनी बयानबाजी में अधिक सावधानी बरतनी चाहिए, खासकर जब वह किसी देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया या सरकार के बारे में गलत जानकारी प्रसारित करें।