नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा रामचरितमानस पर की गई विवादित टिप्पणी के मामले में उनकी याचिका पर सुनवाई अगले सप्ताह के लिए टाल दी है। मौर्य ने इस मामले में दर्ज आपराधिक केस को निरस्त करने की मांग की थी। सर्वोच्च न्यायालय ने 25 जनवरी 2024 को इस मामले में कोई भी निरोधात्मक कार्रवाई पर अंतरिम रोक लगा दी थी, जिससे मौर्य के खिलाफ किसी भी तरह की कानूनी कार्रवाई को कुछ समय के लिए रोक दिया गया है।
स्वामी प्रसाद मौर्य की विवादित टिप्पणी
स्वामी प्रसाद मौर्य, जो कि उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के रहने वाले हैं, ने रामचरितमानस पर एक विवादित टिप्पणी की थी। मौर्य का कहना था कि रामचरितमानस में कुछ ऐसे अंश हैं, जो समाज में असहिष्णुता और भेदभाव को बढ़ावा देते हैं। मौर्य ने इसे अपनी व्यक्तिगत राय बताते हुए कहा था कि इस पर बहस की जा सकती है। उनके इस बयान के बाद देशभर में प्रतिक्रिया हुई थी और कई धार्मिक संगठनों ने इस पर आपत्ति जताई थी।
आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद मामला दर्ज
मौर्य की टिप्पणी के बाद उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में उनके खिलाफ एक आपराधिक केस दर्ज किया गया था। इसके बाद मौर्य ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने इस आपराधिक केस को निरस्त करने की मांग की थी। उनका कहना था कि उनकी टिप्पणी किसी अपराध के दायरे में नहीं आती, बल्कि यह उनकी व्यक्तिगत राय थी, जो उन्होंने समाज में धार्मिक विषयों पर विचार करने के रूप में दी थी।
सर्वोच्च न्यायालय की प्रतिक्रिया
सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि रामचरितमानस पर स्वामी प्रसाद मौर्य की विवादित टिप्पणी उनके निजी विचार हो सकते हैं, और यह किसी भी तरह से अपराध नहीं बन सकती। कोर्ट ने इस मुद्दे पर विचार करते हुए कहा कि अगर किसी व्यक्ति ने अपनी व्यक्तिगत राय दी है, तो इसे अपराध के रूप में कैसे माना जा सकता है? अदालत ने मौर्य के खिलाफ दर्ज मामले में किसी भी तरह की तात्कालिक कार्रवाई से भी रोक लगा दी और मामले की सुनवाई एक हफ्ते के लिए टाल दी।
मौर्य का पक्ष
स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपनी याचिका में दावा किया कि उनके बयान का उद्देश्य किसी धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाना नहीं था। उनका कहना था कि रामचरितमानस के कुछ अंश को लेकर उनके विचार थे, जिन्हें उन्होंने समाज के बीच साझा किया था। मौर्य ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा बताया और कहा कि उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक केस की कोई आवश्यकता नहीं है।
मामले की अगली सुनवाई
सर्वोच्च न्यायालय ने मौर्य की याचिका पर अब अगले सप्ताह सुनवाई करने का फैसला लिया है। इस दौरान अदालत यह तय करेगी कि क्या मौर्य के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामला निरस्त किया जा सकता है या नहीं।
निष्कर्ष
स्वामी प्रसाद मौर्य की रामचरितमानस पर की गई टिप्पणी को लेकर देशभर में विवाद पैदा हो गया था। यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक संवेदनाओं के बीच संतुलन बनाने के प्रश्न पर केंद्रित है। सर्वोच्च न्यायालय का यह कदम यह स्पष्ट करता है कि व्यक्तित्वों को अपनी राय रखने का अधिकार है, लेकिन यह सुनिश्चित किया जाएगा कि किसी के बयान से किसी धर्म या समाज को नुकसान न पहुंचे। अब इस मामले की अगली सुनवाई 2024 के जनवरी महीने में होगी, जिसमें अदालत को इस मुद्दे पर अपना निर्णय सुनाना है।
रामचरितमानस पर विवादित टिप्पणी: स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ मामले की सुनवाई अगले सप्ताह
नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा रामचरितमानस पर की गई विवादित टिप्पणी के मामले में उनकी याचिका पर सुनवाई अगले सप्ताह के लिए टाल दी है। मौर्य ने इस मामले में दर्ज आपराधिक केस को निरस्त करने की मांग की थी। सर्वोच्च न्यायालय ने 25 जनवरी 2024 को इस मामले में कोई भी निरोधात्मक कार्रवाई पर अंतरिम रोक लगा दी थी, जिससे मौर्य के खिलाफ किसी भी तरह की कानूनी कार्रवाई को कुछ समय के लिए रोक दिया गया है।
स्वामी प्रसाद मौर्य की विवादित टिप्पणी
स्वामी प्रसाद मौर्य, जो कि उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के रहने वाले हैं, ने रामचरितमानस पर एक विवादित टिप्पणी की थी। मौर्य का कहना था कि रामचरितमानस में कुछ ऐसे अंश हैं, जो समाज में असहिष्णुता और भेदभाव को बढ़ावा देते हैं। मौर्य ने इसे अपनी व्यक्तिगत राय बताते हुए कहा था कि इस पर बहस की जा सकती है। उनके इस बयान के बाद देशभर में प्रतिक्रिया हुई थी और कई धार्मिक संगठनों ने इस पर आपत्ति जताई थी।
आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद मामला दर्ज
मौर्य की टिप्पणी के बाद उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में उनके खिलाफ एक आपराधिक केस दर्ज किया गया था। इसके बाद मौर्य ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने इस आपराधिक केस को निरस्त करने की मांग की थी। उनका कहना था कि उनकी टिप्पणी किसी अपराध के दायरे में नहीं आती, बल्कि यह उनकी व्यक्तिगत राय थी, जो उन्होंने समाज में धार्मिक विषयों पर विचार करने के रूप में दी थी।
सर्वोच्च न्यायालय की प्रतिक्रिया
सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि रामचरितमानस पर स्वामी प्रसाद मौर्य की विवादित टिप्पणी उनके निजी विचार हो सकते हैं, और यह किसी भी तरह से अपराध नहीं बन सकती। कोर्ट ने इस मुद्दे पर विचार करते हुए कहा कि अगर किसी व्यक्ति ने अपनी व्यक्तिगत राय दी है, तो इसे अपराध के रूप में कैसे माना जा सकता है? अदालत ने मौर्य के खिलाफ दर्ज मामले में किसी भी तरह की तात्कालिक कार्रवाई से भी रोक लगा दी और मामले की सुनवाई एक हफ्ते के लिए टाल दी।
मौर्य का पक्ष
स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपनी याचिका में दावा किया कि उनके बयान का उद्देश्य किसी धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाना नहीं था। उनका कहना था कि रामचरितमानस के कुछ अंश को लेकर उनके विचार थे, जिन्हें उन्होंने समाज के बीच साझा किया था। मौर्य ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा बताया और कहा कि उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक केस की कोई आवश्यकता नहीं है।
मामले की अगली सुनवाई
सर्वोच्च न्यायालय ने मौर्य की याचिका पर अब अगले सप्ताह सुनवाई करने का फैसला लिया है। इस दौरान अदालत यह तय करेगी कि क्या मौर्य के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामला निरस्त किया जा सकता है या नहीं।
निष्कर्ष
स्वामी प्रसाद मौर्य की रामचरितमानस पर की गई टिप्पणी को लेकर देशभर में विवाद पैदा हो गया था। यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक संवेदनाओं के बीच संतुलन बनाने के प्रश्न पर केंद्रित है। सर्वोच्च न्यायालय का यह कदम यह स्पष्ट करता है कि व्यक्तित्वों को अपनी राय रखने का अधिकार है, लेकिन यह सुनिश्चित किया जाएगा कि किसी के बयान से किसी धर्म या समाज को नुकसान न पहुंचे। अब इस मामले की अगली सुनवाई 2024 के जनवरी महीने में होगी, जिसमें अदालत को इस मुद्दे पर अपना निर्णय सुनाना है।
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