उत्पन्ना एकादशी पर सरसंघचालक ने किए ठाकुर श्रीराधा गोविंद देवजी के दर्शन, समाज और संस्कृति की एकता पर दिया विशेष संदेश

जयपुर। उत्पन्ना एकादशी के पावन अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत शनिवार को जयपुर स्थित ठाकुर श्रीराधा गोविंद देवजी मंदिर पहुंचे। यहां उन्होंने राजभोग झांकी में ठाकुर श्रीजी के दर्शन किए। मंदिर पहुंचने पर महंत अंजन कुमार गोस्वामी महाराज ने उनका चौखट पूजन करवाया और उन्हें सम्मान स्वरूप शॉल, दुपट्टा, प्रसाद, ठाकुर श्रीजी की छवि तथा श्री गोविंद धाम शिव मंदिर का लघु स्वरूप भेंट किया।

मंदिर परिसर में हुए इस विशेष आयोजन के दौरान महंत अंजन कुमार गोस्वामी महाराज ने सरसंघचालक द्वारा सनातन धर्म, समाज और संस्कृति के लिए किए जा रहे कार्यों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने उन्हें आशीर्वाद देते हुए हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना को सुदृढ़ करने के संदेश पर भी जोर दिया। श्रद्धालुओं की भीड़ इस विशेष अवसर पर मंदिर परिसर में उपस्थित रही और माहौल पूर्णत: आध्यात्मिक और उत्साहपूर्ण दिखाई दिया।

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समुदायों को मजबूत बनाने की राह धार्मिक संरक्षण और समाज सेवा दोनों

दर्शन के बाद सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि किसी भी समाज को मजबूत बनाने के लिए धार्मिक स्थलों का संरक्षण भी उतना ही आवश्यक है जितनी समाज सेवा। उन्होंने स्पष्ट किया कि मंदिर केवल पूजा स्थलों का रूप नहीं रखते, बल्कि ये समाज की सांस्कृतिक जड़ों को जोड़ने वाले महत्वपूर्ण केंद्र हैं। उनके अनुसार धार्मिक स्थल शिक्षा, प्रेरणा और सामाजिक एकजुटता के केंद्र होते हैं, इसलिए इनका संरक्षण और संवर्धन समाज की स्थिरता और मजबूती के लिए आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि यदि समाज अपने सांस्कृतिक केंद्रों को सुरक्षित रखे और साथ ही सेवा कार्यों को नियमित रूप से आगे बढ़ाए तो सर्वसमाज समर्थवान बन सकता है। धार्मिक स्थल समाज को जोड़ते हैं और सेवा समाज को दिशा देते हैं। दोनों का संतुलन समाज के विकास के लिए अनिवार्य है।

सांस्कृतिक चेतना और मंदिरों की भूमिका पर विस्तृत विचार

डॉ. भागवत ने आगे कहा कि मंदिर केवल आस्था का नहीं, बल्कि सांस्कृतिक जागरूकता का भी केंद्र होते हैं। यहां परंपराएं जीवित रहती हैं और समाज को अपनी जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा मिलती है। उन्होंने कहा कि समय बदलता है, पीढ़ियां बदलती हैं, पर संस्कृति तभी सुरक्षित रह सकती है जब उसके केंद्र सुरक्षित और सक्रिय रूप से जीवंत रहें।

उन्होंने मंदिरों में बढ़ती गतिविधियों की सराहना करते हुए कहा कि धार्मिक संस्थान समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की क्षमता रखते हैं। ये स्थल लोगों को जोड़ते हैं, सहयोग की भावना विकसित करते हैं और समाज में एकता का भाव मजबूत करते हैं।

युवाओं से समाज और राष्ट्र के लिए सक्रिय भूमिका निभाने का आह्वान

डॉ. भागवत ने युवाओं से आग्रह किया कि वे अपने सांस्कृतिक मूल्यों को समझें और सामाजिक जिम्मेदारियों को स्वीकार करें। उन्होंने कहा कि हर युवा अपने गांव, शहर और देश के विकास में छोटा या बड़ा योगदान दे सकता है। उन्होंने युवाओं से कहा कि जीवन में केवल व्यक्तिगत सफलता ही नहीं, बल्कि समाज में अपना सकारात्मक योगदान देना भी उतना ही आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि संघ का उद्देश्य समाज में सकारात्मक बदलाव लाना है और युवाओं को नैतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति जागरूक बनाना है। उन्होंने जोर दिया कि यदि युवा अपने संस्कार, जिम्मेदारी और राष्ट्रप्रेम को समझ लें तो भारत का भविष्य और अधिक उज्ज्वल होगा।

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मंदिर परिसर में हुआ आध्यात्मिक संवाद और श्रद्धालुओं की उपस्थिति

इस अवसर पर मंदिर में उपस्थित श्रद्धालुओं ने सरसंघचालक से आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा की। कई लोगों ने धार्मिक स्थलों के संरक्षण, समाज सेवा तथा सांस्कृतिक जागरूकता से जुड़े प्रश्न पूछे, जिन पर डॉ. भागवत ने विस्तार से मार्गदर्शन दिया।

मंदिर परिसर में आए श्रद्धालुओं ने भी यह कहा कि सरसंघचालक के विचारों ने उन्हें अपनी संस्कृति के प्रति और अधिक सजग बनाया है। उनके अनुसार समाज तभी मजबूत बन सकता है जब हर व्यक्ति अपनी संस्कृति, धर्म और समाज के प्रति उत्तरदायी भूमिका निभाए।

इस पूरे आयोजन ने मंदिर परिसर को आध्यात्मिक ऊर्जा और सामुदायिक एकजुटता की भावना से भर दिया।

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