प्रधानमंत्री मोदी और क्रिस्टोफर लक्सन की बातचीत के बाद ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौते की घोषणा
नई दिल्ली। भारत और न्यूजीलैंड के बीच आर्थिक संबंधों में एक नया और ऐतिहासिक अध्याय जुड़ गया है। दोनों देशों ने मुक्त व्यापार समझौते यानी एफटीए पर औपचारिक रूप से मुहर लगा दी है। इस महत्वपूर्ण समझौते की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सन के बीच हुई टेलीफोन वार्ता के बाद की गई। इस एफटीए के तहत दोनों देशों के बीच शुरुआती तौर पर 20 मिलियन डॉलर के निवेश का मार्ग प्रशस्त होगा, जबकि दीर्घकालिक रूप से निवेश और व्यापार के आंकड़े कहीं अधिक बड़े स्तर पर पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है।
भारत का सातवां बड़ा एफटीए, वैश्विक व्यापार में मजबूत कदम
ओमान, ब्रिटेन, ईएफटीए देशों, यूएई, ऑस्ट्रेलिया और मॉरीशस के बाद यह भारत का पिछले कुछ वर्षों में सातवां मुक्त व्यापार समझौता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह एफटीए भारत की वैश्विक व्यापार रणनीति का एक अहम हिस्सा है, जिससे भारत को एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपनी आर्थिक मौजूदगी मजबूत करने में मदद मिलेगी। दोनों नेताओं ने इस बात पर सहमति जताई कि यह समझौता केवल व्यापार तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि निवेश, नवाचार और साझा विकास के नए अवसर भी पैदा करेगा।
पांच साल में व्यापार दोगुना करने का लक्ष्य
बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री लक्सन ने अगले पांच वर्षों में भारत और न्यूजीलैंड के बीच द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करने का लक्ष्य तय किया। इसके साथ ही अगले 15 वर्षों में न्यूजीलैंड से भारत में 20 बिलियन डॉलर तक के निवेश का भरोसा भी जताया गया। यह संकेत देता है कि एफटीए को केवल एक औपचारिक समझौते के रूप में नहीं, बल्कि दीर्घकालिक आर्थिक साझेदारी के आधार के रूप में देखा जा रहा है।
रिकॉर्ड नौ महीने में पूरा हुआ समझौता
प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से जारी बयान के अनुसार, भारत–न्यूजीलैंड एफटीए पर बातचीत इस वर्ष मार्च में शुरू हुई थी और केवल नौ महीनों के रिकॉर्ड समय में इसे अंतिम रूप दिया गया। यह दोनों देशों के बीच मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और आपसी भरोसे को दर्शाता है। पीएमओ के बयान में कहा गया कि यह समझौता दोनों देशों के संबंधों को नई ऊंचाई पर ले जाने की साझा महत्वाकांक्षा का प्रमाण है।
टैरिफ में ऐतिहासिक रियायतें
यह एफटीए टैरिफ रियायतों के लिहाज से भी ऐतिहासिक माना जा रहा है। समझौते के तहत न्यूजीलैंड के लगभग 95 प्रतिशत निर्यात पर या तो टैरिफ पूरी तरह समाप्त कर दिया जाएगा या फिर उसमें बड़ी कटौती की जाएगी। यह अब तक किसी भी भारतीय एफटीए में दी गई सबसे बड़ी टैरिफ रियायत मानी जा रही है।
समझौते के लागू होते ही करीब 57 प्रतिशत उत्पादों को पहले ही दिन ड्यूटी-फ्री पहुंच मिल जाएगी। आगे चलकर, जब एफटीए पूरी तरह लागू होगा, तब यह आंकड़ा बढ़कर 82 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। शेष 13 प्रतिशत उत्पादों पर भी टैरिफ में उल्लेखनीय कमी की जाएगी, जिससे व्यापार लागत में भारी गिरावट आएगी।
किसानों, एमएसएमई और युवाओं को होगा सीधा लाभ
पीएमओ के बयान में कहा गया है कि एफटीए से दोनों देशों के बीच आर्थिक जुड़ाव गहराएगा, बाजार तक पहुंच बढ़ेगी और निवेश का प्रवाह तेज होगा। इसका सीधा लाभ भारत और न्यूजीलैंड के किसानों, उद्यमियों, एमएसएमई सेक्टर, स्टार्टअप्स, छात्रों और युवाओं को मिलेगा। नए बाजार खुलने से कृषि उत्पादों, डेयरी, शिक्षा, तकनीक और नवाचार से जुड़े क्षेत्रों में रोजगार और व्यापार के अवसर बढ़ेंगे।
रणनीतिक और सामाजिक सहयोग भी होगा मजबूत
एफटीए केवल आर्थिक सहयोग तक सीमित नहीं है। दोनों प्रधानमंत्रियों ने रक्षा, खेल, शिक्षा और लोगों के बीच संपर्क जैसे क्षेत्रों में भी बढ़ते सहयोग का स्वागत किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मजबूत आर्थिक साझेदारी से रणनीतिक और सामाजिक रिश्ते भी और गहरे होंगे।
न्यूजीलैंड के लिए भी बड़े अवसर
न्यूजीलैंड सरकार की ओर से जारी आधिकारिक बयान में कहा गया है कि यह समझौता न्यूजीलैंड के निर्यातकों को कई क्षेत्रों में अपने वैश्विक प्रतिद्वंदियों के बराबर या उनसे बेहतर स्थिति में लाएगा। साथ ही, यह भारत के तेजी से बढ़ते मध्यम वर्ग के विशाल बाजार तक पहुंच के नए दरवाजे खोलेगा। बयान में यह भी कहा गया कि भारतीय अर्थव्यवस्था के 2030 तक 12 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। ऐसे में भारत–न्यूजीलैंड एफटीए न्यूजीलैंड के निर्यातकों के लिए अभूतपूर्व संभावनाएं पैदा करेगा और अगले 10 वर्षों में निर्यात मूल्य को दोगुना करने के न्यूजीलैंड के लक्ष्य को हासिल करने में तेजी लाएगा।
दोनों देशों के रिश्तों में नया मोड़
कुल मिलाकर, भारत और न्यूजीलैंड के बीच हुआ यह मुक्त व्यापार समझौता दोनों देशों के रिश्तों को केवल आर्थिक ही नहीं, बल्कि रणनीतिक और सामाजिक स्तर पर भी नई दिशा देने वाला कदम माना जा रहा है। आने वाले वर्षों में इसका असर व्यापार आंकड़ों से कहीं आगे जाकर दोनों देशों के बीच भरोसे और साझेदारी को मजबूत करने में दिखाई देगा।
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