अरावली पर्वत श्रृंखलाएं भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में गिनी जाती हैं और इनका इतिहास लाखों वर्षों पुराना माना जाता है। ये पर्वत सिर्फ पत्थर और चट्टानों का ढेर नहीं हैं, बल्कि उत्तर भारत के पर्यावरण को संतुलित रखने की एक मजबूत प्राकृतिक दीवार हैं। राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात तक फैली अरावली पर्वत श्रृंखलाएं रेगिस्तान को आगे बढ़ने से रोकने में अहम भूमिका निभाती हैं और पूरे क्षेत्र के मौसम को संतुलित बनाए रखने में सहायक हैं। बारिश के पानी को जमीन में रोकना, भूजल स्तर बनाए रखना और हरियाली को सहारा देना भी अरावली की बड़ी जिम्मेदारी है।
आज जब यह सवाल उठ रहा है कि क्या अरावली पर्वत श्रृंखलाएं खतरे में हैं, तो इसके पीछे कारण भी उतने ही गंभीर और चिंताजनक हैं। बीते कुछ दशकों में विकास के नाम पर अरावली पर लगातार दबाव बढ़ा है। पहाड़ों की प्राकृतिक बनावट से छेड़छाड़ की गई है, जिससे इनकी मजबूती कमजोर पड़ती जा रही है।
पिछले कुछ वर्षों में अरावली को लेकर लगातार विवाद सामने आए हैं। कहीं अवैध खनन की खबरें सामने आईं, तो कहीं पहाड़ों को काटकर बड़े निर्माण कार्य किए जाने के आरोप लगे। कई इलाकों में जंगलों की अंधाधुंध कटाई भी देखने को मिली है।
अरावली पर्वत श्रृंखलाएं इतनी महत्वपूर्ण क्यों हैं ?
अरावली पर्वत श्रृंखलाएं प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में बड़ी भूमिका निभाती हैं। ये पर्वत बारिश के पानी को रोककर जमीन के अंदर पहुंचाने में मदद करते हैं, जिससे भूजल स्तर बना रहता है। इसके अलावा अरावली जंगलों में कई तरह के पेड़, जानवर और पक्षी पाए जाते हैं, जो जैव विविधता को मजबूत करते हैं।
दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों के लिए अरावली पर्वत श्रृंखलाएं प्रदूषण से बचाव की दीवार की तरह काम करती हैं। अगर ये पहाड़ कमजोर पड़ते हैं, तो हवा में धूल और प्रदूषण तेजी से बढ़ सकता है।
अरावली पर्वत श्रृंखलाएं खतरे में क्यों आईं
समय के साथ अरावली पर दबाव बढ़ता गया। पहले जहां ये पहाड़ प्राकृतिक रूप से सुरक्षित थे, वहीं अब मानवीय गतिविधियों ने इन्हें नुकसान पहुंचाया है।
अवैध खनन सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। पत्थर और खनिज निकालने के लिए पहाड़ों को खोखला किया जा रहा है। इसके अलावा तेजी से बढ़ता निर्माण, सड़कें, फार्म हाउस और अन्य ढांचे अरावली क्षेत्र में फैलते जा रहे हैं। जंगलों की कटाई ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है।
क्यों मचा है अरावली को लेकर बवाल
अरावली पर्वत श्रृंखलाओं को लेकर बवाल इसलिए मचा है क्योंकि इसका असर दूरगामी है। अगर ये पर्वत कमजोर होते हैं, तो जल संकट गहराएगा, तापमान बढ़ेगा और प्रदूषण का स्तर खतरनाक हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अरावली के नुकसान से पूरे उत्तर भारत का मौसम प्रभावित होगा।
कई सामाजिक संगठनों और पर्यावरण प्रेमियों ने सरकार और प्रशासन से सवाल पूछे हैं कि नियमों के बावजूद अरावली को क्यों नहीं बचाया जा पा रहा।
अरावली को नुकसान पहुंचने के दुष्परिणाम
अरावली पर्वत श्रृंखलाओं के नष्ट होने से सबसे बड़ा असर पानी पर पड़ेगा। ये पहाड़ जल संरक्षण में मदद करते हैं। इनके कमजोर होने से जल स्रोत सूख सकते हैं।
इसके साथ ही वन्यजीवों का घर उजड़ जाएगा। पेड़ों की कमी से मिट्टी का कटाव बढ़ेगा और गर्मी का असर ज्यादा महसूस होगा। दिल्ली और आसपास के इलाकों में प्रदूषण और धूल भरी आंधियां बढ़ सकती हैं।
सरकार और कानून की स्थिति
अरावली संरक्षण के लिए कानून मौजूद हैं, लेकिन उनका पालन पूरी सख्ती से नहीं हो पा रहा। कई बार अदालतों को हस्तक्षेप करना पड़ा है। इसके बावजूद जमीनी स्तर पर हालात ज्यादा नहीं बदले।
क्या अरावली को बचाया जा सकता है?
हां, अगर समय रहते ठोस कदम उठाए जाएं तो अरावली पर्वत श्रृंखलाओं को बचाया जा सकता है।
जरूरी उपाय
- अवैध खनन पर पूरी तरह रोक
- निर्माण कार्यों पर सख्त नियंत्रण
- बड़े स्तर पर वृक्षारोपण
- स्थानीय लोगों की भागीदारी
- नियमों का सख्त पालन
- नियमित निगरानी और कार्रवाई
आम लोगों की जिम्मेदारी
अरावली को बचाने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की नहीं है। आम लोगों को भी जागरूक होना होगा। पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर आवाज उठाना और प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग करना जरूरी है।
निष्कर्ष :
क्या खतरे में हैं अरावली पर्वत श्रृंखलाएं, इस सवाल का जवाब अब साफ नजर आता है। अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में इसका नुकसान हर किसी को झेलना पड़ेगा। अरावली को बचाना मतलब अपने भविष्य को सुरक्षित करना है।
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