July 14, 2025 10:33 PM

भारत में टेस्ला की एंट्री: 15 जुलाई को मुंबई में पहला शोरूम लॉन्च करेगी दुनिया की सबसे बड़ी EV कंपनी

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भारत में टेस्ला की एंट्री: 15 जुलाई को मुंबई में पहला शोरूम खोलेगी EV दिग्गज

नई दिल्ली।

भारत में टेस्ला की एंट्री: 15 जुलाई को मुंबई में पहला शोरूम लॉन्च करेगी दुनिया की सबसे बड़ी EV कंपनी

मुंबई।
दुनिया की सबसे बड़ी इलेक्ट्रिक व्हीकल कंपनी टेस्ला अब भारत में आधिकारिक रूप से कदम रखने जा रही है। कंपनी 15 जुलाई 2025 को मुंबई में अपना पहला शोरूम लॉन्च करने जा रही है। यह शोरूम भारत में टेस्ला की मौजूदगी का पहला सार्वजनिक केंद्र होगा, जहां ग्राहक कंपनी की गाड़ियां देख सकेंगे, टेस्ट ड्राइव ले सकेंगे और बुकिंग भी कर सकेंगे।

भारत में EV बाजार में क्रांति लाने की तैयारी

टेस्ला की भारत में एंट्री को यहां के तेजी से बढ़ते इलेक्ट्रिक व्हीकल बाजार के लिए बड़ा मोड़ माना जा रहा है। भारत सरकार भी इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए नीति समर्थन और सब्सिडी दे रही है, जिससे विदेशी कंपनियों को यहां आने के लिए आकर्षण बढ़ा है।

मस्क का पुराना सपना हो रहा पूरा

टेस्ला के सीईओ इलॉन मस्क कई सालों से भारत में कंपनी की एंट्री की योजना बना रहे थे, लेकिन आयात शुल्क और सरकारी मंजूरी जैसे मुद्दों के चलते अब तक लॉन्च टलता रहा। हाल ही में मस्क और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात के बाद टेस्ला के भारत में शोरूम और मैन्युफैक्चरिंग यूनिट खोलने की दिशा में तेजी आई।

भारत में बनाए जा सकते हैं वाहन और बैटरियां

माना जा रहा है कि टेस्ला आने वाले समय में भारत में अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट और बैटरी असेंबली प्लांट भी स्थापित कर सकती है। इससे टेस्ला की गाड़ियां भारत में सस्ती हो सकती हैं और कंपनी को लोकल मार्केट में प्रतिस्पर्धा में बढ़त मिलेगी।

टेस्ला के संभावित मॉडल्स

टेस्ला भारत में शुरुआती तौर पर अपनी प्रीमियम कारें जैसे Model 3 और Model Y लॉन्च कर सकती है। इनकी कीमतें फिलहाल इम्पोर्ट ड्यूटी के चलते ज्यादा होंगी, लेकिन लोकल मैन्युफैक्चरिंग शुरू होने पर दाम घटने की उम्मीद है।
आज जब हम टेस्ला को दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे इनोवेटिव इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) कंपनी के रूप में जानते हैं, तो शायद यह अंदाजा लगाना मुश्किल हो कि 2008 में यह कंपनी दीवालिया होने की कगार पर पहुंच चुकी थी। उस दौर में जब दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाएं मंदी से जूझ रही थीं, तब इलॉन मस्क की यह कंपनी कर्मचारियों को सैलरी देने लायक भी नहीं बची थी।

मस्क ने अपनी निजी संपत्तियां गिरवी रखकर और दोस्तों से उधार लेकर कंपनी को जिंदा रखा। हालत यह थी कि उन्होंने ग्राहकों से लिए एडवांस अमाउंट तक खर्च कर दिया था। मानसिक दबाव इतना ज्यादा था कि वे नींद में भी चिल्लाते थे। उनकी पार्टनर तालुलाह रिले के मुताबिक मस्क खुद से बातें करते और गुस्से में दीवारों पर हाथ पटकते थे।

लेकिन आज वही टेस्ला मार्केट कैप के मामले में दुनिया की सबसे बड़ी EV कंपनी है और अब 15 जुलाई को भारत में पहला शोरूम मुंबई में खोलने जा रही है। आइए जानते हैं टेस्ला की इस रोमांचक यात्रा की कहानी, जो शुरू होती है दो इंजीनियर्स से और परवान चढ़ती है एक जुनूनी इनोवेटर के हाथों।


दो इंजीनियर्स का सपना

मार्टिन एबरहार्ड और मार्क टारपेनिंग ने 2003 में टेस्ला मोटर्स की शुरुआत की। ये दोनों पहले एक ई-बुक रीडर कंपनी न्यूवोमीडिया में साथ काम कर चुके थे। मार्टिन को स्पोर्ट्स कार का शौक था, लेकिन पेट्रोल से चलने वाली कारों से होने वाला पर्यावरणीय नुकसान उन्हें परेशान करता था।

उनका मानना था कि लीथियम-आयन बैटरियों से चलने वाली कारें भविष्य हो सकती हैं। उन्होंने AC Propulsion नाम की कंपनी के साथ मिलकर एक इलेक्ट्रिक स्पोर्ट्स कार का प्रोटोटाइप बनाया, जो आगे चलकर टेस्ला रोडस्टर का आधार बनी।


जब आए इलॉन मस्क

इलॉन मस्क टेस्ला के संस्थापक नहीं, बल्कि पहले निवेशक थे। 2004 में उन्होंने टेस्ला में 6.5 मिलियन डॉलर (लगभग ₹56 करोड़) का निवेश किया और चेयरमैन बन गए। उस वक्त वे स्पेसएक्स के शुरुआती दिनों में व्यस्त थे, लेकिन इलेक्ट्रिक गाड़ियों में उनकी दिलचस्पी गहरी थी।

मस्क को tZero नाम की एक टेस्ट कार बेहद पसंद आई, लेकिन जब उसकी निर्माता कंपनी ने उसे बनाने से इनकार किया, तो उन्होंने टेस्ला का रुख किया। यहीं से टेस्ला में उनकी सक्रिय भागीदारी शुरू हुई।


पहली कार — टेस्ला रोडस्टर

टेस्ला की पहली कार रोडस्टर थी, जिसे लोटस एलिस की चेसिस पर डिजाइन किया गया था।

  • कंपनी का मकसद था कि मौजूदा पार्ट्स का इस्तेमाल कर कार सस्ती और जल्दी बनाई जाए,
  • लेकिन मस्क की नजरें परफेक्शन और प्रीमियम क्वालिटी पर थीं।

उन्होंने कार की डिजाइन से लेकर हेडलाइट, दरवाजे, सीट्स और बॉडी तक में कई बड़े बदलाव करवाए —

  1. दरवाजे को तीन इंच नीचे किया गया, जिससे चेसिस का पूरा स्ट्रक्चर बदलना पड़ा।
  2. सीट्स को चौड़ा करवाया गया ताकि महिलाएं भी आराम से बैठ सकें।
  3. हेडलाइट्स को स्टाइलिश कवर के साथ बदला गया।
  4. फाइबरग्लास की जगह कार्बन फाइबर बॉडी लगवाई गई, जिससे कार हल्की और मजबूत बनी।
  5. इलेक्ट्रिक टच हैंडल्स जो टेस्ला की फ्यूचरिस्टिक छवि का हिस्सा बन गए।

इन सभी बदलावों ने रोडस्टर की लागत और लॉन्च में काफी देरी की, लेकिन मस्क को फर्क नहीं पड़ा। वे चाहते थे कि यह कार एक स्टेटमेंट बने, और ऐसा हुआ भी।


चैप्टर 4: 2008 की आर्थिक मंदी और टेस्ला का संकट

जब रोडस्टर लॉन्च होने की कगार पर थी, उसी वक्त आई वैश्विक आर्थिक मंदी। लेहमन ब्रदर्स जैसे बैंक बंद हो रहे थे, जनरल मोटर्स दिवालिया होने को थी और टेस्ला के पास भी नकदी खत्म हो चुकी थी

  • मस्क ने कर्मचारियों की सैलरी देने के लिए पर्सनल लोन लिया,
  • कंपनी के लिए एडवांस बुकिंग का पैसा भी खर्च हो चुका था,
  • मस्क लगातार तनाव में रहते और शारीरिक रूप से भी टूटने लगे थे।

लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
उन्होंने टेस्ला को बचाने के लिए हर दरवाजा खटखटाया, और आखिरकार रोडस्टर लॉन्च हुआ।
यह कार 0 से 100 किमी प्रति घंटे की स्पीड सिर्फ 3.9 सेकंड में पकड़ती थी और इसकी डिजाइन ने ऑटोमोबाइल जगत में हलचल मचा दी।


आज की टेस्ला: इनोवेशन और विस्तार की नई कहानी

आज टेस्ला सिर्फ कार बनाने वाली कंपनी नहीं है। यह एक टेक इनोवेशन पावरहाउस है, जो

  • सेल्फ-ड्राइविंग टेक्नोलॉजी,
  • बैटरी स्टोरेज सिस्टम,
  • एनर्जी सॉल्यूशन,
  • और अब भारत जैसे उभरते बाजारों में भी कदम रख चुकी है।

15 जुलाई 2025 को टेस्ला अपना पहला शोरूम मुंबई में खोलेगी, और यह भारत में उसके सफर की शुरुआत होगी।


टेस्ला की कहानी हमें सिखाती है कि बड़े सपनों को पूरा करने के लिए साहस, जुनून और धैर्य जरूरी है। एक दौर था जब ये कंपनी खत्म होने के कगार पर थी, लेकिन आज यह दुनिया को इलेक्ट्रिक फ्यूचर की ओर ले जा रही है।




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