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April 25, 2025 8:26 AM

तमिलनाडु में ‘₹’ चिन्ह हटाने पर विवाद: स्टालिन सरकार के फैसले से उठे सवाल

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तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन एक बार फिर विवादों में घिर गए हैं। इस बार मामला सिर्फ हिंदी विरोध तक सीमित नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय मुद्रा प्रतीक ‘₹’ को तमिलनाडु सरकार के बजट दस्तावेज से हटाने से जुड़ा है। यह मुद्दा अब राष्ट्र विरोध और क्षेत्रीय राजनीति के दायरे में पहुंच चुका है, जहां सत्तारूढ़ डीएमके (DMK) सरकार की मंशा पर सवाल उठाए जा रहे हैं।

तमिलनाडु सरकार ने ‘₹’ चिन्ह क्यों हटाया?

हाल ही में तमिलनाडु सरकार ने अपने राज्य बजट दस्तावेजों में ‘₹’ के बजाय तमिल भाषा में ‘ரூ’ (रू) का उपयोग किया, जिससे राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया। बजट की प्रस्तुति के बाद से ही यह सवाल उठने लगे कि क्या यह सिर्फ भाषाई अस्मिता का मामला है या फिर इसके पीछे कोई गहरी राजनीतिक सोच छिपी हुई है?

हिंदू और हिंदी विरोधी राजनीति के लिए पहचानी जाने वाली डीएमके सरकार का यह कदम विपक्ष के निशाने पर आ गया है। विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने इस मुद्दे को राष्ट्रविरोधी करार देते हुए कहा कि, “स्टालिन सरकार हिंदी और हिंदू विरोध की राजनीति करते-करते अब राष्ट्र विरोध तक उतर आई है।”

₹ चिन्ह हटाने पर उठे गंभीर सवाल

यह विवाद इसलिए भी गहरा गया क्योंकि भारतीय रुपये (₹) का यह प्रतीक तमिलनाडु के ही एक प्रतिभाशाली युवा, उदय कुमार धर्मलिंगम द्वारा डिजाइन किया गया था। उदय कुमार, जो तमिलनाडु के पूर्व डीएमके विधायक एन. धर्मलिंगम के पुत्र हैं, ने इस प्रतीक को 2010 में भारत सरकार द्वारा आयोजित एक राष्ट्रीय प्रतियोगिता में विजेता के रूप में डिजाइन किया था।

डीएमके के इस फैसले पर उठे कुछ प्रमुख सवाल:

  1. तमिलनाडु के गौरव को क्यों ठुकराया?
    स्टालिन सरकार को तो इस बात पर गर्व होना चाहिए था कि भारतीय रुपये का आधिकारिक प्रतीक चिन्ह तमिलनाडु के एक प्रतिभाशाली युवा द्वारा डिजाइन किया गया। फिर इसे हटाने की जरूरत क्यों पड़ी?
  2. क्या राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान नहीं करना चाहिए?
    भारतीय रुपये का यह चिन्ह सिर्फ एक सांकेतिक चिह्न नहीं, बल्कि भारत की संप्रभुता और आर्थिक पहचान का प्रतीक है। इसे हटाने का मतलब क्या राष्ट्रीय अस्मिता का अपमान नहीं?
  3. क्या सरकार भारतीय रुपये का उपयोग करना बंद कर देगी?
    यदि स्टालिन सरकार को इस प्रतीक चिन्ह से इतनी आपत्ति है, तो क्या वे हर उस मुद्रा नोट को भी अस्वीकार करेंगे, जिस पर ‘₹’ का चिन्ह अंकित है? क्या वे तमिलनाडु में भारतीय रुपये का उपयोग बंद कर सकते हैं?
  4. क्या यह पिता करुणानिधि के विचारों का भी अपमान नहीं?
    दिवंगत करुणानिधि, जो डीएमके के संस्थापक नेताओं में से एक थे, उन्होंने भी इस रुपये के चिन्ह का समर्थन किया था। अब उनके पुत्र और तमिलनाडु के वर्तमान मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन इस चिह्न को हटाकर अपने ही पिता की विरासत का अपमान नहीं कर रहे हैं?
  5. सनातन और हिंदी विरोध से राष्ट्रविरोध तक?
    पहले सनातन धर्म और हिंदी भाषा का विरोध करने वाली डीएमके सरकार अब भारतीय मुद्रा के राष्ट्रीय प्रतीक को हटाने तक पहुंच गई है। क्या यह सिर्फ भाषाई अस्मिता का मामला है, या फिर इसके पीछे राष्ट्रवाद को कमजोर करने की कोई योजना है?

राजनीतिक हलकों में बढ़ी नाराजगी

तमिलनाडु में इस मुद्दे को लेकर विपक्षी दलों और हिंदू संगठनों में काफी रोष है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और विश्व हिंदू परिषद (विहिप) समेत कई संगठन डीएमके सरकार के इस कदम को राष्ट्र विरोधी करार दे रहे हैं। भाजपा नेताओं ने कहा कि यह सिर्फ हिंदी विरोध नहीं, बल्कि पूरे भारत की सांस्कृतिक और आर्थिक एकता को तोड़ने की साजिश का हिस्सा है।

इस मुद्दे पर विहिप प्रवक्ता विनोद बंसल ने तीखा बयान देते हुए कहा, “डीएमके सरकार राष्ट्रविरोधी राजनीति की चैंपियन बनने की कोशिश कर रही है। तमिलनाडु की जनता इस छल-प्रपंच को अब और बर्दाश्त नहीं करेगी।”

तमिलनाडु में डीएमके की राजनीति का प्रभाव

तमिलनाडु में डीएमके की राजनीति हमेशा से केंद्र सरकार और राष्ट्रीय प्रतीकों के विरोध के इर्द-गिर्द घूमती रही है। हिंदी विरोध, हिंदू धर्म विरोध और अब राष्ट्रीय मुद्रा के प्रतीक को हटाने जैसी घटनाएं यह दिखाती हैं कि राज्य सरकार केंद्र से टकराव की नीति पर चल रही है।

क्या जनता जवाब देगी?

तमिलनाडु की जनता अब इस मुद्दे पर जागरूक हो रही है। डीएमके सरकार द्वारा अपनाई जा रही अलगाववादी नीतियों और राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान से लोग नाराज हैं। आने वाले चुनावों में जनता इसका क्या जवाब देगी, यह देखने वाली बात होगी।

तमिलनाडु सरकार का यह कदम सिर्फ एक प्रतीक को हटाने का मामला नहीं है, बल्कि यह भारत की एकता और अखंडता को चुनौती देने वाला फैसला साबित हो सकता है। स्टालिन सरकार को यह समझना चाहिए कि भाषाई अस्मिता के नाम पर राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान करने से उनकी छवि और भी खराब होगी। तमिलनाडु की जनता इस बात को बखूबी समझती है और आने वाले समय में वह इसका उचित उत्तर भी देगी।

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