नई दिल्ली। न्यायपालिका की जवाबदेही और लोकपाल की शक्तियों की सीमा से जुड़े एक संवेदनशील मामले में अब निर्णायक मोड़ आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि वह जुलाई 2025 में यह तय करेगा कि क्या लोकपाल को उच्च न्यायालय के जजों के खिलाफ शिकायतों की सुनवाई का अधिकार है या नहीं। इस अहम संवैधानिक सवाल पर देशभर की निगाहें टिकी हैं।
यह मामला उस वक्त सामने आया जब 27 जनवरी 2025 को लोकपाल की बेंच, जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एएम खानविलकर कर रहे थे, ने एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत की जांच का आदेश दिया। शिकायत में आरोप था कि एक निजी फर्म, जो पहले उस जज की क्लाइंट रह चुकी थी, उनके न्यायिक कार्यों से लाभान्वित हो रही है।
इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान में लेते हुए 20 फरवरी 2025 को स्थगित कर दिया। कोर्ट ने चिंता जताई कि यह फैसला न केवल “परेशान करने वाला” है, बल्कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए भी गंभीर प्रश्न खड़े करता है। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि शिकायतकर्ता संबंधित न्यायाधीश का नाम सार्वजनिक न करें।
सुनवाई के दौरान, केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि लोकपाल ने “कानून की गलत व्याख्या” की है। उन्होंने तर्क दिया कि लोकपाल अधिनियम के तहत उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को इसकी परिधि में नहीं लाया गया है। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने भी लोकपाल के फैसले की तीखी आलोचना करते हुए सुप्रीम कोर्ट से उस पर रोक लगाने की मांग की थी।
इस बीच, सर्वोच्च न्यायालय ने वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार को एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) नियुक्त करते हुए उनसे जुलाई में होने वाली सुनवाई के लिए कानूनी राय देने को कहा है। जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह भी संकेत दिया है कि यह मामला किसी अन्य बेंच को ट्रांसफर हो सकता है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि मामला बेहद संवेदनशील और न्यायिक व्यवस्था की जड़ों से जुड़ा हुआ है।
यह मामला केवल एक शिकायत तक सीमित नहीं, बल्कि यह तय करेगा कि न्यायपालिका के शीर्ष पदों पर बैठे अधिकारियों की जवाबदेही तय करने की प्रक्रिया क्या होगी और क्या कोई बाहरी निगरानी तंत्र जैसे कि लोकपाल, न्यायिक स्वतंत्रता की सीमा लांघ रहा है।
अब सभी की निगाहें जुलाई की सुनवाई पर टिकी हैं, जहां सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि देश के लोकतांत्रिक ढांचे में न्यायपालिका की जवाबदेही किस तरह तय की जाएगी और लोकपाल का अधिकार क्षेत्र कहां तक सीमित रहेगा।
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