बैतूल के लॉ छात्र को बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने रासुका के तहत हिरासत को बताया ‘पूरी तरह गलत’
– कोर्ट ने कहा, जब छात्र पहले से जेल में था तो एनएसए लगाने का औचित्य नहीं
– मध्यप्रदेश पुलिस को तत्काल रिहाई के निर्देश
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के रहने वाले कानून के छात्र अनु उर्फ अनिकेत को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका/NSA) के तहत की गई हिरासत को अवैध और असंगत करार देते हुए तुरंत रिहा करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने साफ कहा कि छात्र की एहतियाती हिरासत के लिए जो तर्क दिए गए, वे कानून की धारा 3(2) के तहत उचित नहीं हैं।
अनिकेत को 11 जुलाई 2024 को एनएसए के तहत हिरासत में लिया गया था, जबकि वह पहले से ही एक झगड़े के मामले में जेल में बंद था। इस घटना से पहले विश्वविद्यालय परिसर में एक प्रोफेसर से झगड़े को लेकर हत्या की कोशिश सहित कई धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई थी।
"जब पहले से जेल में था तो एहतियाती हिरासत क्यों?" – सुप्रीम कोर्ट
न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां और के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि,
“जब व्यक्ति पहले से ही हिरासत में है, तो उसकी गतिविधियों से समाज को तत्काल खतरे का कोई तर्क नहीं बचता, जिससे एनएसए लगाने की आवश्यकता हो।”
पीठ ने यह भी उल्लेख किया कि छात्र की एनएसए के खिलाफ की गई अपील को जिला कलेक्टर ने ही खारिज कर दिया, जबकि नियमों के अनुसार यह अपील राज्य सरकार को भेजी जानी चाहिए थी।
मामले में दर्ज थे 9 केस, लेकिन अधिकांश में राहत
राज्य सरकार के रिकॉर्ड के अनुसार अनु पर 9 आपराधिक मामले दर्ज हैं,
- इनमें से 5 मामलों में वह बरी हो चुका है
- 1 केस में सिर्फ जुर्माना लगाया गया है
- 2 मामले लंबित हैं, जिनमें वह जमानत पर बाहर है
- ताज़ा मामला (2024) में भी उसे 28 जनवरी 2025 को जमानत मिल चुकी है
यानी वह केवल एनएसए के तहत ही जेल में बंद था। सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार को भी कमजोर मानते हुए कहा कि सिर्फ पुराने मामलों का हवाला देकर एहतियाती कार्रवाई उचित नहीं मानी जा सकती।
हाईकोर्ट ने कहा था आदतन अपराधी, सुप्रीम कोर्ट ने पलटा फैसला
इससे पहले पीड़ित प्रोफेसर के पिता ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में हबीयस कॉर्पस याचिका दाखिल की थी, जिसे 25 फरवरी को खारिज कर दिया गया था।
हाईकोर्ट ने छात्र को "आदतन अपराधी" बताया था और कहा था कि उसकी मौजूदगी से सार्वजनिक शांति को खतरा है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल पूर्व मामलों के आधार पर एनएसए नहीं लगाया जा सकता, खासकर तब जब व्यक्ति पहले से ही न्यायिक हिरासत में हो।
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