July 10, 2025 7:16 PM

आरक्षण बन गया है रेलवे के डिब्बे जैसा: सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी, ओबीसी कोटे पर उठे सवाल

नई दिल्ली।
देश में आरक्षण व्यवस्था को लेकर एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी चर्चा में है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान आरक्षण की तुलना रेलवे के डिब्बे से करते हुए कहा— “जो लोग एक बार इसमें घुस जाते हैं, वे दूसरों को उसमें घुसने नहीं देते।” यह टिप्पणी महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की गई।

“सिर्फ कुछ परिवारों तक सीमित न रहे आरक्षण का लाभ”

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे ऐसे और वर्गों की पहचान करें जो सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक रूप से वंचित हैं। आरक्षण का लाभ सीमित परिवारों और समूहों तक सिमट कर रह गया है, जबकि कई अन्य ज़रूरतमंद तबके अब भी इससे वंचित हैं। कोर्ट ने इशारा किया कि आरक्षण नीति में सुधार और समावेश की ज़रूरत है, ताकि हर ज़रूरतमंद को इसका लाभ मिल सके।

अदालत में क्या हुआ?

कोर्ट में वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार के पास पहले से ओबीसी समुदाय की पहचान से जुड़ा आंकड़ा है, लेकिन वह इसका उपयोग स्थानीय निकाय चुनावों में आरक्षण तय करने में नहीं कर रही। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार मनचाहे अधिकारियों के जरिए स्थानीय निकाय चला रही है।

दूसरी ओर, वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकर नारायणन ने कोर्ट में कहा कि ओबीसी वर्ग के भीतर भी ऐसे समूह हैं जो राजनीतिक और सामाजिक रूप से अधिक वंचित हैं। इसलिए जरूरी है कि आरक्षण का लाभ सही मायनों में जरूरतमंदों को मिले।

जातीय जनगणना पर भी पड़ी चर्चा की छाया

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब केंद्र सरकार ने अगली जनगणना में जातीय आंकड़ों को शामिल करने का फैसला किया है। भाजपा और उसके सहयोगी दलों का मानना है कि यह निर्णय वास्तविक वंचित वर्गों की पहचान में मदद करेगा और नीतियों के लाभों का समान वितरण सुनिश्चित कर सकेगा। वहीं विपक्ष पहले से ही जातीय जनगणना की पुरजोर मांग करता रहा है।

जब भावी मुख्य न्यायाधीश ने भी की थी यही तुलना

गौरतलब है कि हाल ही में भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश बनने जा रहे जस्टिस बीआर गवई ने भी एससी/एसटी उपवर्गीकरण के फैसले में आरक्षण की तुलना ट्रेन के जनरल डिब्बे से की थी। उन्होंने कहा था कि “जो लोग एक बार राष्ट्रपति की सूची में शामिल हो जाते हैं, वे अब किसी और को शामिल नहीं होने देना चाहते।” यह टिप्पणी भी आरक्षण व्यवस्था के भीतर सत्ता और अवसर के केंद्रीकरण की ओर इशारा करती है।

क्यों अहम है यह बहस?

भारत में आरक्षण को लेकर सामाजिक और राजनीतिक बहस दशकों से चलती रही है। सुप्रीम कोर्ट की यह ताजा टिप्पणी न केवल मौजूदा प्रणाली की सीमाओं को उजागर करती है, बल्कि आरक्षण की समीक्षा, विस्तार और पुनर्संशोधन की मांग को भी बल देती है। यह संकेत भी मिलता है कि न्यायपालिका अब इस संवेदनशील मुद्दे पर मूल्यांकन और पारदर्शिता के पक्ष में खड़ी हो रही है।



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