June 8, 2025 12:57 AM

राष्ट्रपति की विधेयकों पर समय सीमा तय करने के मुद्दे पर बढ़ा विवाद, निशिकांत दुबे बोले- “CJI की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं”

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सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति को विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय सीमा तय करने के सुझाव को लेकर देश की राजनीति और संवैधानिक संस्थाओं के बीच नया विवाद खड़ा हो गया है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा इस मुद्दे पर नाराज़गी ज़ाहिर करने के बाद अब भाजपा सांसद निशिकांत दुबे भी खुलकर सामने आए हैं। उन्होंने कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, ऐसे में न्यायपालिका को राष्ट्रपति के अधिकारों की सीमाओं को समझना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से मचा सियासी हलचल

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह कहा था कि विधायिका द्वारा पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति को लंबे समय तक निर्णय नहीं टालना चाहिए और इसके लिए कोई निश्चित समयसीमा होनी चाहिए। कोर्ट की यह टिप्पणी राष्ट्रपति के संवैधानिक दायित्वों और अधिकारों की व्याख्या के संदर्भ में थी।

इस टिप्पणी के बाद से ही यह सवाल उठने लगे कि क्या न्यायपालिका, कार्यपालिका के दायरे में हस्तक्षेप कर रही है?

उपराष्ट्रपति और अब सांसद दुबे की प्रतिक्रिया

इस विषय पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पहले ही नाराज़गी जताते हुए कहा था कि यह संविधान के मूल ढांचे को प्रभावित कर सकता है। अब निशिकांत दुबे ने इस बहस को और तेज़ कर दिया है। उन्होंने कहा,

“भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति भी राष्ट्रपति करते हैं। न्यायपालिका को संविधान के अन्य स्तंभों की गरिमा को भी समझना होगा। न्यायपालिका का काम कानून की व्याख्या करना है, न कि संविधानिक पदों के अधिकारों में बदलाव करना।”

क्या कहता है संविधान?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 111 के अनुसार, राष्ट्रपति को किसी विधेयक पर हस्ताक्षर करके उसे कानून बनाने या उसे पुनर्विचार के लिए वापस भेजने का अधिकार है। लेकिन इसमें किसी विशेष समयसीमा का उल्लेख नहीं किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां इस बात पर केंद्रित थीं कि निर्णय में अनावश्यक देरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है।

विपक्ष की राय

विपक्ष इस विवाद को लेकर मिलाजुला रुख रख रहा है। कुछ दलों ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का समर्थन करते हुए पारदर्शिता और समयबद्धता की बात कही, जबकि कुछ ने इसे संवैधानिक दायरे से बाहर बताया।

निष्कर्ष की ओर बढ़ता विवाद

यह विवाद अब केवल एक कानूनी बहस नहीं, बल्कि कार्यपालिका और न्यायपालिका के संबंधों की संवेदनशीलता को भी उजागर कर रहा है। संसद के आगामी सत्र में इस विषय को लेकर और गर्मा-गर्मी देखने को मिल सकती है।



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