सुप्रीम कोर्ट का आदेश: सड़कों से आवारा कुत्तों और पशुओं को हटाएं, राज्यों और नगरपालिकाओं को सख्त निर्देश


देशभर के राज्यों, नगरपालिकाओं और एनएचएआई को सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देश

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने देश में बढ़ते आवारा कुत्तों के हमलों और सड़क सुरक्षा को लेकर एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया है। न्यायालय ने सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों, नगरपालिकाओं और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) को सख्त आदेश देते हुए कहा है कि सड़कों, राज्य राजमार्गों और राष्ट्रीय राजमार्गों से आवारा कुत्तों और पशुओं को तत्काल हटाया जाए।
कोर्ट ने साफ कहा कि सड़कें मानव और वाहन यातायात के लिए हैं, न कि पशुओं के आश्रय स्थल के लिए।


तीन अलग-अलग आदेश जारी, हर राज्य को जवाबदेह बनाया गया

7 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर तीन अलग-अलग आदेश पारित किए। अदालत ने कहा कि राज्य सरकारें और नगर निगम यह सुनिश्चित करें कि सभी आवारा पशु और कुत्ते शेल्टर होम में रखे जाएं, ताकि सड़कों और गलियों में इनके कारण होने वाली दुर्घटनाओं और हमलों पर रोक लग सके।
न्यायालय ने नगरपालिकाओं को निर्देश दिया कि वे सतत पेट्रोलिंग टीमों का गठन करें, जो नियमित रूप से सड़कों की निगरानी कर आवारा पशुओं को पकड़कर सुरक्षित केंद्रों तक पहुंचाएं।


राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश को पूरे देश में लागू करने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में राजस्थान हाईकोर्ट के उस पुराने निर्णय का हवाला दिया, जिसमें सड़कों से आवारा पशुओं को हटाने और उनकी देखरेख के लिए विशेष व्यवस्था करने को कहा गया था। अब सर्वोच्च न्यायालय ने इस आदेश को पूरे देश में लागू करने का निर्देश दिया है।
साथ ही, अदालत ने सभी राज्यों से कहा है कि वे एफिडेविट दाखिल करें, जिसमें यह स्पष्ट किया जाए कि—

  • क्या पशुओं की नसबंदी (Sterilization) की जा रही है,
  • क्या उनका टीकाकरण (Vaccination) और डीवर्मिंग (De-worming) किया गया है,
  • और इन कार्यों के लिए क्या स्थायी व्यवस्था की गई है।

एनएचएआई और नगर निगमों को सक्रिय भूमिका निभाने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) और नगरपालिकाओं को सख्त शब्दों में कहा है कि वे सड़कों पर पशुओं की उपस्थिति के लिए किसी भी प्रकार की लापरवाही न करें।
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि राजमार्गों और शहरी सड़कों पर पेट्रोलिंग वाहन, कैमरे और आपातकालीन हेल्पलाइन नंबर उपलब्ध कराए जाएं, ताकि नागरिक आवारा पशुओं की सूचना तत्काल दे सकें और दुर्घटनाओं से बचा जा सके।


बच्चों पर हमलों और रेबीज़ के मामलों पर अदालत की चिंता

अदालत ने यह निर्णय दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में बच्चों पर कुत्तों के हमलों और रेबीज़ संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए दिया। अदालत ने कहा कि इस प्रकार के हादसे केवल व्यक्तिगत नहीं बल्कि सार्वजनिक सुरक्षा का प्रश्न हैं।
न्यायमूर्ति पीठ ने कहा, “सड़कें पशुओं की नहीं, जनता की सुरक्षा के लिए बनी हैं। जब नागरिक सड़कों पर भयभीत हों, तो यह प्रशासन की विफलता है।”


आदेश की अवहेलना पर मुख्य सचिवों को तलब किया जाएगा

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को चेतावनी दी है कि यदि इस आदेश का पालन नहीं किया गया, तो संबंधित राज्य के मुख्य सचिवों को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होना पड़ेगा।
कोर्ट ने कहा कि यह मुद्दा केवल व्यवस्था का नहीं, बल्कि जनजीवन और स्वास्थ्य सुरक्षा से जुड़ा है। अदालत ने साफ कहा कि अगली सुनवाई में उन सभी राज्यों की जवाबदेही तय की जाएगी, जिन्होंने अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।


नागरिकों के लिए हेल्पलाइन जारी करने के निर्देश

अदालत ने यह भी कहा कि सभी नगरपालिकाएँ और जिला प्रशासन हेल्पलाइन नंबर जारी करें, जिन पर नागरिक आवारा कुत्तों और पशुओं की सूचना दे सकें।
इन सूचनाओं के आधार पर स्थानीय प्रशासन त्वरित कार्रवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “जनसहभागिता के बिना यह समस्या खत्म नहीं होगी। हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह अपने क्षेत्र को सुरक्षित बनाए।”


अगली सुनवाई में विस्तृत रिपोर्ट मांगी

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्यों द्वारा जमा की गई रिपोर्टों और कार्ययोजनाओं की समीक्षा के बाद ही इस मामले में अंतिम आदेश पारित किया जाएगा। अदालत ने कहा कि यह केवल एक कानूनी मामला नहीं, बल्कि सामाजिक दायित्व का विषय है, जिसमें सभी प्रशासनिक इकाइयों को गंभीरता से काम करना होगा।