सर्वोच्च न्यायालय का बड़ा फैसला: जांच एजेंसियां मनमाने तरीके से वकीलों को समन नहीं भेज सकतीं

सीजेआई बीआर गवई की पीठ का निर्देश — समन केवल अपवाद मामलों में, एसपी रैंक की अनुमति आवश्यक

नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने वकालत पेशे की स्वतंत्रता को एक बार फिर सशक्त करते हुए स्पष्ट कहा है कि जांच एजेंसियां किसी वकील को मनमाने ढंग से समन जारी नहीं कर सकतीं। अदालत ने कहा कि मुवक्किल को कानूनी सेवा दे रहे वकील को केवल उन मामलों में ही पूछताछ के लिए बुलाया जा सकता है, जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 132 के अपवादों में आते हैं।

प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वकीलों के खिलाफ समन की प्रक्रिया कानून के दायरे में रहकर ही की जानी चाहिए, अन्यथा यह वकालत पेशे की स्वायत्तता को प्रभावित करेगा।


⚖️ “कानूनी सेवा देना अपराध नहीं” — सुप्रीम कोर्ट

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि किसी मुवक्किल को कानूनी सलाह देना या उसका पक्ष रखना अपराध नहीं हो सकता।
वकीलों को केवल उन मामलों में ही समन भेजा जा सकता है, जहां यह साबित हो कि मुवक्किल ने वकील से किसी आपराधिक गतिविधि में सहयोग मांगा हो या वकील स्वयं उस अपराध का हिस्सा रहा हो।

पीठ ने यह भी कहा कि समन जारी करने से पहले जांच एजेंसियों को एसपी रैंक के अधिकारी की अनुमति लेना अनिवार्य होगा, ताकि वकीलों को बिना पर्याप्त कारण परेशान न किया जा सके।


📜 भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 132 का हवाला

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 132 के तहत वकील अपने मुवक्किल से जुड़ी जानकारी, दस्तावेज या संचार साझा करने के लिए बाध्य नहीं हैं।
यह जानकारी “क्लाइंट-लॉयर प्रिविलेज” के अंतर्गत आती है और इसका खुलासा केवल उन्हीं मामलों में किया जा सकता है, जो धारा 132 के “अपवाद” के दायरे में आते हैं।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा —

“वकील और उसके मुवक्किल के बीच संवाद न्याय प्रक्रिया का पवित्र हिस्सा है। यदि इसे जांच एजेंसियां बाधित करने लगें, तो न्यायिक स्वतंत्रता पर सीधा आघात होगा।”


🚫 इन-हाउस वकीलों को नहीं मिलेगी धारा 132 की सुरक्षा

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि कॉर्पोरेट या इन-हाउस वकील, जो अदालत में प्रैक्टिस नहीं करते, उन्हें धारा 132 के तहत यह विशेष सुरक्षा प्राप्त नहीं होगी।
उनका संबंध नियोक्ता से “नौकरी” के रूप में होता है, न कि “वकालत” के रूप में, इसलिए उन्हें समान सुरक्षा नहीं दी जा सकती।

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🧾 मामले की पृष्ठभूमि

सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर स्वतः संज्ञान (Suo Motu) लेते हुए सुनवाई शुरू की थी।
यह मामला तब चर्चा में आया जब प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अरविंद दातार को पूछताछ के लिए समन जारी किया था।

इस कार्रवाई की कई बार एसोसिएशनों ने आलोचना की थी और कहा था कि वकीलों को इस तरह बुलाना वकालत पेशे की स्वायत्तता और गोपनीयता पर हमला है।
विवाद बढ़ने के बाद ईडी ने समन वापस ले लिया, लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।


📣 ईडी ने भी बदले नियम, अब डायरेक्टर की अनुमति जरूरी

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर सख्त टिप्पणी की, जिसके बाद ईडी ने अपने स्तर पर दिशा-निर्देश जारी किए।
इन निर्देशों के अनुसार, किसी भी वकील को समन जारी करने से पहले ईडी के डायरेक्टर से अनुमति लेना अनिवार्य होगा।

अदालत ने कहा कि यह कदम सही दिशा में है, लेकिन भविष्य में किसी भी एजेंसी को बिना पर्याप्त कारण वकीलों को पूछताछ के लिए बुलाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।


⚖️ “वकालत की स्वायत्तता न्याय प्रणाली की नींव है”

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा —

“वकालत का पेशा न्याय प्रणाली की आत्मा है। वकील स्वतंत्र होकर काम न कर सकें तो मुवक्किल का निष्पक्ष बचाव असंभव हो जाएगा। इसलिए यह अदालत किसी भी ऐसी प्रवृत्ति को अस्वीकार करती है, जो इस स्वतंत्रता को सीमित करती है।”


🧑‍⚖️ वरिष्ठ वकीलों की प्रतिक्रिया

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, हरीश साल्वे और प्रशांत भूषण ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह निर्णय “वकीलों की गरिमा और न्याय की स्वतंत्रता” की रक्षा करेगा।
उनके अनुसार, यह आदेश जांच एजेंसियों को यह याद दिलाता है कि वकील अदालत के अधिकारी होते हैं, अपराधी नहीं।