सर्वोच्च न्यायालय ने जस्टिस नागरत्ना की आपत्ति को दबाया, कॉलेजियम के फैसले पर उठे सवाल
नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय में जजों की नियुक्ति को लेकर एक बार फिर विवाद गहराया है। इस बार सवाल उठे हैं कॉलेजियम के 25 अगस्त को लिए गए उस फैसले पर, जिसमें पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश विपुल मनुभाई पंचोली को सर्वोच्च न्यायालय का जज नियुक्त करने की सिफारिश की गई थी। यह निर्णय 4:1 के बहुमत से लिया गया था, लेकिन इसमें दर्ज की गई असहमति—जो देश की पहली महिला होने की संभावना रखने वाली जस्टिस बीवी नागरत्ना की ओर से थी—को सर्वोच्च न्यायालय की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं किया गया।

संगठन ने उठाए सवाल
इस मामले को लेकर कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स (CJAR) नामक संगठन ने गहरी आपत्ति जताई है। संगठन का कहना है कि कॉलेजियम के फैसले से असहमति जताने वाले जज का नोट सार्वजनिक किया जाना चाहिए था, लेकिन उसे जानबूझकर दबा दिया गया। सीजेएआर ने इसे पारदर्शिता की गंभीर कमी और न्यायपालिका की जवाबदेही पर चोट बताया है।
नागरत्ना की आपत्ति – “न्याय प्रशासन के लिए हानिकारक”
जस्टिस नागरत्ना ने अपने असहमति नोट में साफ लिखा कि जस्टिस पंचोली की नियुक्ति “न्याय प्रशासन के लिए प्रतिकारक” सिद्ध होगी। उनके अनुसार, इस तरह की सिफारिशें न केवल कॉलेजियम सिस्टम की विश्वसनीयता को नुकसान पहुँचाती हैं, बल्कि न्यायपालिका की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े करती हैं। उन्होंने कहा कि वरिष्ठता की अनदेखी कर किसी अपेक्षाकृत जूनियर जज को तरजीह देना न्यायिक परंपराओं और संतुलन के लिए उचित नहीं है।
वरिष्ठ जजों की अनदेखी पर सवाल
नागरत्ना के अनुसार, जस्टिस पंचोली अखिल भारतीय वरिष्ठता सूची में 57वें स्थान पर हैं। उनकी सिफारिश करते समय कई मेधावी और वरिष्ठ जजों की अनदेखी की गई। उन्होंने स्पष्ट कहा कि इस तरह की नियुक्तियाँ न केवल योग्य जजों के साथ अन्याय हैं, बल्कि इससे न्यायपालिका की कार्यप्रणाली पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है।
तबादले की प्रक्रिया भी संदेह के घेरे में
जस्टिस नागरत्ना ने जस्टिस पंचोली के तबादले की प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि जिस तरह से उन्हें स्थानांतरित किया गया, वह पारदर्शी नहीं था और उस पर गंभीर संदेह खड़े होते हैं। इसके अलावा उन्होंने यह आशंका भी जताई कि भविष्य में जस्टिस पंचोली के प्रधान न्यायाधीश बनने की संभावना न्यायपालिका के हित में नहीं होगी।
सीजेएआर का आरोप – पारदर्शिता पर सवाल
सीजेएआर ने सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड किए गए कॉलेजियम के बयान को अधूरा और निराशाजनक बताया है। संगठन ने कहा कि पहले की तरह इसमें उम्मीदवारों के बैकग्राउंड, कार्यप्रदर्शन और योग्यताओं की विस्तृत जानकारी नहीं दी गई। साथ ही इसमें यह भी नहीं बताया गया कि वरिष्ठता में 57वें स्थान पर होने के बावजूद जस्टिस पंचोली को प्राथमिकता क्यों दी गई।
न्यायपालिका में पारदर्शिता की बहस
यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब न्यायपालिका की पारदर्शिता और कॉलेजियम प्रणाली पर पहले से ही प्रश्नचिह्न लगते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम देश में सर्वोच्च न्यायिक नियुक्तियों का निर्णय करता है, लेकिन उसकी कार्यप्रणाली को लेकर समय-समय पर आलोचना होती रही है। खासकर पारदर्शिता, जवाबदेही और मेरिट के सवाल उठाए जाते रहे हैं।
न्यायपालिका की साख पर असर
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि असहमति नोट जैसे दस्तावेज सार्वजनिक नहीं किए जाएंगे तो न्यायपालिका की साख पर गंभीर असर पड़ेगा। लोगों के मन में यह धारणा बन सकती है कि नियुक्तियाँ निष्पक्षता के बजाय व्यक्तिगत पसंद और प्रभाव के आधार पर हो रही हैं। वहीं, यह भी कहा जा रहा है कि जस्टिस नागरत्ना जैसे वरिष्ठ जज की आपत्ति को छिपाना न्यायपालिका के अंदर भी असंतोष पैदा कर सकता है।
आगे की राह
अब देखना यह होगा कि सर्वोच्च न्यायालय इस मामले पर क्या रुख अपनाता है और क्या कॉलेजियम अपनी कार्यप्रणाली में बदलाव करता है। फिलहाल इस प्रकरण ने एक बार फिर यह बहस तेज कर दी है कि क्या न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए कॉलेजियम प्रणाली में बड़े सुधार की आवश्यकता है।
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