ड्रग्स केस में पांच साल से जेल में बंद आरोपी को मिली जमानत
नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा शुरू हुए लंबे समय तक जेल में रखना कानून की मूल भावना के खिलाफ है और इसे सजा मान लेना गलत होगा। अदालत ने उत्तर प्रदेश के एक ड्रग्स केस में पांच साल से अधिक समय से जेल में बंद आरोपी को जमानत देने का आदेश दिया।
न्याय में देरी को सुप्रीम कोर्ट ने बताया चिंताजनक
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि आरोपी जनवरी 2019 से जेल में है और अब तक मुकदमा शुरू भी नहीं हुआ। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में न्याय में देरी ही न्याय से इनकार है। यह टिप्पणी उस याचिका की सुनवाई के दौरान की गई, जिसमें आरोपी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा मार्च 2023 में जमानत खारिज किए जाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
सह-आरोपी कोर्ट में पेश नहीं हो रहा, लेकिन यह वजह पर्याप्त नहीं
उत्तर प्रदेश सरकार के वकील ने दलील दी कि इसी मामले में एक सह-आरोपी को जमानत दी गई थी, लेकिन वह अब कोर्ट में पेश नहीं हो रहा। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सिर्फ इस आधार पर दूसरे आरोपी की जमानत को खारिज नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार चाहे तो उस सह-आरोपी की जमानत रद्द करवाने की प्रक्रिया अपनाए, लेकिन यह दूसरा मामला है।
आरोपी को तय शर्तों के साथ जमानत
अदालत ने आदेश दिया कि ग्रेटर नोएडा में दर्ज इस मादक पदार्थ अधिनियम (NDPS) से संबंधित केस में आरोपी को निचली अदालत द्वारा तय की जाने वाली शर्तों के आधार पर जमानत दी जाए। आरोपी की ओर से यह भी कहा गया था कि उसे उस स्थान से गिरफ्तार नहीं किया गया था, जहां से 150 किलोग्राम गांजा बरामद किया गया था।
समानता का अधिकार भी बना आधार
वकील ने दलील दी कि इस केस में बाकी सभी सह-आरोपियों को पहले ही जमानत मिल चुकी है, ऐसे में समानता के अधिकार के तहत याचिकाकर्ता को भी जमानत मिलनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इसे भी स्वीकार करते हुए कहा कि न्यायिक प्रक्रिया में समान व्यवहार जरूरी है।
स्वदेश ज्योति के द्वारा
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