October 15, 2025 8:26 PM

पटाखों पर रोक दिल्ली-एनसीआर तक ही क्यों हो, पूरे देश में क्यों नहीं?

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पटाखों पर रोक: सर्वोच्च न्यायालय ने पूछा सिर्फ दिल्ली-एनसीआर क्यों, पूरे देश में क्यों नहीं?

  • सर्वोच्च न्यायालय का वायु गुणवत्ता नियंत्रण आयोग को नोटिस
  • अनुच्छेद 21 के तहत स्वास्थ्य के अधिकार को बताया अनिवार्य
  • आदेश नहीं मानने पर होगी अवमानना की कार्रवाई

नई दिल्ली।
सर्वोच्च न्यायालय ने पटाखों पर रोक के मसले पर शुक्रवार को महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए सवाल उठाया कि यह प्रतिबंध केवल दिल्ली-एनसीआर तक सीमित क्यों है, पूरे देश में क्यों नहीं। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यदि दिल्ली-एनसीआर के लोगों को स्वच्छ हवा में सांस लेने का अधिकार है, तो देश के अन्य शहरों के लोगों को यह अधिकार क्यों न मिले। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि प्रदूषण नियंत्रण से जुड़ी नीतियां और प्रतिबंध पूरे भारत में लागू होने चाहिए, ताकि सभी नागरिक समान रूप से इसका लाभ उठा सकें।

दिल्ली-एनसीआर के आदेश पर सवाल

दरअसल, 3 अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री और भंडारण पर पूरी तरह से रोक लगाने का आदेश दिया था। इस आदेश के खिलाफ एक याचिका दायर की गई, जिस पर शुक्रवार को सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान पीठ ने वायु गुणवत्ता नियंत्रण आयोग (CAQM) को नोटिस जारी कर दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।

अनुच्छेद 21 और प्रदूषण मुक्त जीवन का अधिकार

प्रधान न्यायाधीश गवई ने सुनवाई के दौरान अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए कहा कि संविधान हर नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है। इसमें प्रदूषण मुक्त वातावरण में जीने का अधिकार भी शामिल है। उन्होंने याद दिलाया कि वर्ष 2024 की सर्दियों में जब वे अमृतसर गए थे, तो वहां प्रदूषण की स्थिति दिल्ली से भी खराब थी। ऐसे में यह तर्कसंगत नहीं है कि केवल दिल्ली-एनसीआर में ही पटाखों पर रोक हो और देश के अन्य हिस्सों को इससे बाहर रखा जाए।

आदेश लागू न करने पर अवमानना की चेतावनी

सर्वोच्च न्यायालय ने 6 मई को अपने आदेश में दिल्ली-एनसीआर में पटाखों पर रोक जारी रखने के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा की सरकारों को निर्देश दिया था कि वे इस रोक को कड़ाई से लागू करें। अदालत ने चेतावनी दी थी कि यदि आदेश का पालन नहीं हुआ तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाएगी। न्यायालय ने साफ किया था कि जनहित और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर किसी भी तरह की ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

पुराने आदेश पर कायम है अदालत

सुनवाई के दौरान अदालत ने 3 अप्रैल को दिए गए अपने आदेश का भी उल्लेख किया। उस आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा था कि जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि तथाकथित ‘ग्रीन पटाखों’ से प्रदूषण नगण्य स्तर तक होता है, तब तक पहले से लागू पूर्ण प्रतिबंध में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। अदालत का कहना था कि प्रदूषण के मामले में जोखिम उठाना नागरिकों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने जैसा होगा।

व्यापक स्तर पर नीति बनाने की जरूरत

सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी सिर्फ पटाखों तक सीमित नहीं मानी जा रही, बल्कि इसे पूरे प्रदूषण नियंत्रण ढांचे से जोड़कर देखा जा रहा है। अदालत ने इशारा दिया कि प्रदूषण से निपटने के लिए किसी क्षेत्र विशेष पर केंद्रित नीति पर्याप्त नहीं है। पूरे देश के लिए एक समान और ठोस नीति बनाना जरूरी है। विशेष रूप से त्योहारों के समय बढ़ते वायु प्रदूषण को देखते हुए एक राष्ट्रीय स्तर की गाइडलाइन आवश्यक है।

विशेषज्ञों की राय

पर्यावरणविदों का कहना है कि पटाखों पर रोक केवल दिल्ली-एनसीआर में लगाने से समस्या का स्थायी समाधान नहीं होगा। देश के अन्य महानगरों जैसे मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, लखनऊ, पटना और अमृतसर में भी वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंचता है। ऐसे में एक समग्र राष्ट्रीय नीति ही व्यावहारिक समाधान साबित होगी।

लोगों की प्रतिक्रिया

सामान्य नागरिकों का मानना है कि स्वास्थ्य सभी का मूल अधिकार है और प्रदूषण से बचाव की जिम्मेदारी भी सरकार की है। दिल्ली-एनसीआर में प्रतिबंध लागू करने से आंशिक राहत तो मिल सकती है, लेकिन जब तक पूरे देश में समान नियम नहीं होंगे, तब तक इसका प्रभाव सीमित रहेगा।

सर्वोच्च न्यायालय की यह सख्त टिप्पणी आने वाले दिनों में पटाखों पर रोक की नीति को राष्ट्रीय स्तर तक ले जाने का रास्ता खोल सकती है। अदालत ने साफ कर दिया है कि केवल कुछ क्षेत्रों तक सीमित कदम उठाकर प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या से नहीं निपटा जा सकता। अब देखना यह होगा कि वायु गुणवत्ता नियंत्रण आयोग अदालत के नोटिस का क्या जवाब देता है और क्या केंद्र सरकार इस दिशा में कोई नई राष्ट्रीय नीति बनाने की पहल करती है।


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