July 5, 2025 3:06 AM

चुनाव के नियमों में संशोधन पर निर्वाचन आयोग से तीन सप्ताह में मांगा जवाब

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा—जनता की राय के बिना पारदर्शिता खत्म करने वाला निर्णय नहीं चल सकता

नई दिल्ली। देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पारदर्शिता को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। चुनाव प्रक्रिया से जुड़े इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को जनता की पहुंच से बाहर करने के निर्वाचन आयोग के फैसले पर अब सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले में निर्वाचन आयोग को तीन सप्ताह में जवाब देने का आदेश दिया है।

यह निर्देश कांग्रेस नेता जयराम रमेश द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया गया, जिसमें कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स में हालिया संशोधन को चुनौती दी गई है। रमेश ने याचिका में कहा है कि इस संशोधन से आम लोगों को चुनाव से संबंधित महत्वपूर्ण रिकॉर्ड्स—जैसे वीडियो फुटेज, सीसीटीवी कैमरे और वेबकास्ट की रिकॉर्डिंग—तक पहुंच नहीं रह जाएगी, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही को कमजोर करता है।

जनता की राय के बिना नहीं हो सकते बदलाव: याचिका

याचिका में तर्क दिया गया कि निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक संस्था है, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की ज़िम्मेदार है। ऐसे में किसी भी तरह का बड़ा नियम परिवर्तन जनता की राय के बिना नहीं किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि यह संशोधन जनता के सूचना के अधिकार को प्रभावित करता है और चुनावी प्रक्रिया से विश्वास हटाने का कारण बन सकता है।

नियम 93 में हुआ संशोधन और उसका प्रभाव

विवाद की जड़ है कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स का नियम 93, जिसमें संशोधन कर सीसीटीवी, वीडियो और वेबकास्ट फुटेज को सार्वजनिक सूचना की श्रेणी से हटा दिया गया। निर्वाचन आयोग ने इस बदलाव को यह कहकर सही ठहराया कि इससे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के दुरुपयोग का खतरा बना रहता है।

यह संशोधन उस समय लाया गया जब पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा में एक मतदान केंद्र की वीडियो रिकॉर्डिंग की प्रति वकील महमूद प्राचा को देने का आदेश दिया था। इसके कुछ ही दिनों बाद निर्वाचन आयोग ने अपने दिशा-निर्देशों में बदलाव कर दिया, जिससे चुनावी रिकॉर्ड्स आम नागरिकों की पहुंच से बाहर हो गए।

सुप्रीम कोर्ट की सख्ती और आगे की राह

सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग के इस कदम को गंभीरता से लिया है और स्पष्ट किया कि जनता की भागीदारी और पारदर्शिता लोकतंत्र के मूल स्तंभ हैं। तीन सप्ताह बाद मामले की अगली सुनवाई के दौरान आयोग को यह स्पष्ट करना होगा कि इस संशोधन की प्रक्रिया और मंशा क्या थी, और कैसे यह पारदर्शिता को प्रभावित नहीं करता।

अब निगाहें निर्वाचन आयोग की प्रतिक्रिया पर टिकी हैं, जो यह तय करेगी कि क्या चुनावी पारदर्शिता को लेकर कोई नई दिशा मिलेगी या फिर मौजूदा बदलाव कायम रहेंगे।

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