सुप्रीम कोर्ट ने एआईबीई परीक्षा की फीस पर याचिका खारिज की, बीसीआई को मिली बड़ी राहत
एआईबीई परीक्षा के लिए फीस के खिलाफ याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की
नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन (AIBE) से जुड़ी एक अहम याचिका पर फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि इस परीक्षा के लिए ली जाने वाली फीस अनुचित नहीं है। अदालत ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) द्वारा निर्धारित 3500 रुपये की परीक्षा फीस को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया।
न्यायालय की टिप्पणी
जस्टिस जेबी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि—
- बीसीआई को इस परीक्षा के आयोजन में काफी खर्च उठाना पड़ता है।
- परीक्षा का संचालन करने के लिए व्यवस्थाएं, तकनीकी ढांचा और प्रशासनिक संसाधनों पर भारी लागत आती है।
- ऐसे में परीक्षा शुल्क लेना अनुचित या असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता।
याचिका किसने दायर की थी
यह याचिका वकील संयम गांधी ने दायर की थी। उन्होंने दलील दी थी कि—
- बीसीआई पहले से ही कई अवसरों पर वकीलों से अलग-अलग रूप में फीस लेती है।
- परीक्षा के लिए 3500 रुपये का शुल्क लेना अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 19(1)(जी) (पेशा चुनने का अधिकार) का उल्लंघन है।
- इसके अलावा यह प्रावधान एडवोकेट एक्ट की धारा 24(1)(एफ) के भी खिलाफ है।

बीसीआई का पक्ष
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने अपनी ओर से कहा कि—
- एआईबीई परीक्षा वकीलों की कानूनी योग्यता और पेशेवर दक्षता सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है।
- परीक्षा के आयोजन पर भारी वित्तीय और प्रशासनिक बोझ पड़ता है, जिसे फीस से ही संतुलित किया जा सकता है।
- बिना उचित शुल्क के परीक्षा की गुणवत्ता और पारदर्शिता प्रभावित होगी।
सुप्रीम कोर्ट का पुराना रुख
इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने साफ कहा था कि—
- बीसीआई को एआईबीई आयोजित करने का पूरा अधिकार है।
- यह तय करना भी बीसीआई के अधिकार क्षेत्र में है कि परीक्षा वकील के रजिस्ट्रेशन से पहले होगी या बाद में।
क्यों महत्वपूर्ण है एआईबीई परीक्षा
एआईबीई एक राष्ट्रीय स्तर की अनिवार्य परीक्षा है जिसे पास करने के बाद ही नए वकील अदालतों में प्रैक्टिस कर सकते हैं। इसका उद्देश्य है कि:
- वकीलों की कानूनी जानकारी और दक्षता की जांच हो।
- अदालतों में केवल वही पेशेवर वकालत करें जिनके पास आवश्यक योग्यता और समझ हो।
अब आगे की स्थिति
इस फैसले के बाद बीसीआई द्वारा तय 3500 रुपये फीस पर कोई सवाल नहीं रहेगा। सुप्रीम कोर्ट के रुख से यह साफ हो गया है कि वकालत के पेशे में आने के इच्छुक उम्मीदवारों को यह शुल्क भरना ही होगा।
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