September 17, 2025 4:20 AM

‘वैसे भी हम पर कार्यपालिका में अतिक्रमण करने का आरोप है’ – बंगाल मामले में सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी

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नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती और आपातकाल जैसे हालात की पृष्ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम टिप्पणी की। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की पीठ के समक्ष वकील विष्णु शंकर जैन ने पश्चिम बंगाल में कथित अराजक स्थिति का हवाला देते हुए याचिका मेंशन की, जिसमें राज्य में अर्धसैनिक बलों की तत्काल तैनाती और आपातकाल जैसे उपायों की मांग की गई है।

जैसे ही वकील जैन ने याचिका में कुछ नए तथ्यों को जोड़ते हुए कहा कि उन्होंने इस विषय में एक और अर्जी दायर की है, तब पीठ ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा — “आप चाहते हैं कि हम राष्ट्रपति को आदेश दें? वैसे भी हम पर कार्यपालिका में अतिक्रमण करने का आरोप लग रहा है।” यह टिप्पणी स्पष्ट रूप से हाल के राजनीतिक माहौल और न्यायपालिका पर लगते आरोपों को लेकर थी, जिसमें यह दावा किया जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट अपने दायरे से बाहर जाकर कार्यपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप कर रहा है।

न्यायपालिका बनाम कार्यपालिका की खींचतान?

यह मामला उस व्यापक बहस का हिस्सा है जिसमें भारत की तीन प्रमुख संस्थाओं — विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका — के अधिकार क्षेत्रों को लेकर सवाल उठते रहे हैं। हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक समारोह में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट “सुपर संसद” बन गई है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 142 का प्रयोग “परमाणु मिसाइल” की तरह कर रहा है।

धनखड़ की यह टिप्पणी उस समय आई जब सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल की ओर से विधानसभा द्वारा पारित करीब 10 विधेयकों को लंबे समय तक रोके जाने पर तीखा रुख अपनाया और यह कहा कि राज्यपालों को अपनी संवैधानिक सीमाओं के भीतर काम करना चाहिए। कोर्ट के निर्देश के बाद राज्यपाल को विधेयकों पर निर्णय देना पड़ा, जिसने न्यायपालिका बनाम कार्यपालिका के तनाव को और अधिक उजागर किया।

बंगाल की स्थिति पर गंभीर नजर

वकील विष्णु शंकर जैन द्वारा पेश की गई याचिका में दावा किया गया है कि पश्चिम बंगाल में कानून-व्यवस्था की स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि आपातकाल जैसे कदम उठाना आवश्यक हो गया है। उन्होंने केंद्रीय सुरक्षा बलों की तत्काल तैनाती की मांग की है ताकि राज्य में शांति और सामान्य जीवन बहाल हो सके।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इस पर कोई अंतिम टिप्पणी नहीं की और कहा कि यह मामला मंगलवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है। लेकिन कोर्ट की टिप्पणी — “हम राष्ट्रपति को आदेश दे दें?” — ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया कि न्यायपालिका खुद भी इस बहस को लेकर सजग और संवेदनशील है।

अब देखना यह होगा कि मंगलवार को सुनवाई में अदालत क्या रुख अपनाती है — क्या यह मामला संवैधानिक सीमाओं के भीतर रहकर हल किया जाएगा, या फिर न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच टकराव की लकीर और गहरी होगी?


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