सुप्रीम कोर्ट का निर्देश: तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष तीन माह में करें बीआरएस विधायकों की अयोग्यता पर फैसला
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उच्चतम न्यायालय ने तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष को सख्त निर्देश देते हुए कहा है कि वे बीआरएस के 10 विधायकों की अयोग्यता को लेकर लंबित याचिकाओं पर तीन महीने के भीतर निर्णय लें। ये विधायक बीआरएस के टिकट पर चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने चेताया कि इस तरह की देरी लोकतंत्र की मूल भावना को ठेस पहुंचाती है और दलबदल विरोधी कानून की प्रभावशीलता को कमजोर करती है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: लोकतंत्र को खतरा है देरी
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि विधायकों की अयोग्यता से संबंधित याचिकाओं पर फैसला लेने में अनावश्यक देरी लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है। अदालत ने कहा कि इस तरह की जानबूझकर देरी से दलबदल करने वाले विधायकों के खिलाफ कार्रवाई अप्रभावी हो जाती है।

मामला क्या है?
बीआरएस पार्टी की ओर से याचिका दाखिल की गई थी जिसमें आरोप लगाया गया कि पार्टी के टिकट पर 2023 में विधानसभा चुनाव जीतने वाले 10 विधायक बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए। बीआरएस ने इन विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की याचिकाएं विधानसभा अध्यक्ष के पास दाखिल की थीं, लेकिन उन पर फैसला नहीं लिया गया।
फरवरी में भी दी थी सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी
इससे पहले 10 फरवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि लोकतंत्र में राजनीतिक दलों के अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती। तब भी अदालत ने विधानसभा अध्यक्ष से कहा था कि वे एक निर्धारित समय सीमा में इन याचिकाओं पर निर्णय लें।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या पूछा?
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष के वकील से स्पष्ट समयसीमा की मांग की। अदालत ने सवाल उठाया कि क्या ‘उचित समय’ का मतलब विधानसभा सत्र की समाप्ति तक प्रतीक्षा करना है? कोर्ट ने कहा कि संसद द्वारा बनाए गए कानूनों की आत्मा को निष्क्रिय नहीं किया जा सकता।
उच्च न्यायालय का भी निर्देश
तेलंगाना उच्च न्यायालय ने भी पहले विधानसभा अध्यक्ष को निर्देश दिया था कि वे इन विधायकों की अयोग्यता की याचिकाओं पर शीघ्र फैसला लें, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष को कड़ा संदेश देते हुए कहा है कि दलबदल जैसे संवेदनशील मामलों में फैसला समय पर होना चाहिए। बीआरएस से कांग्रेस में गए 10 विधायकों की अयोग्यता पर 3 महीने के भीतर निर्णय लेना अनिवार्य कर दिया गया है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि इस तरह की देरी लोकतंत्र की भावना और दलबदल विरोधी कानून को कमजोर करती है। यह फैसला आने वाले समय में ऐसे मामलों में मिसाल बनेगा।
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