इस्लामिक आतंकवाद के बाद भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती कम्युनिस्ट आतंकवाद है, जो नक्सलवाद एवं माओवाद के रूप में भारत के कुछ हिस्सों में गहरी जड़ें जमाकर बैठा है। जम्मू-कश्मीर में जब भारत सरकार ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति एवं विकासपरक दृष्टकोण से इस्लामिक आतंकवाद पर बहुत हद तक नियंत्रण प्राप्त कर लिया, तब मोदी सरकार से अपेक्षा बढ़ गई कि वह लाल आतंक को भी समाप्त करे। रणनीति बनाने में कुशल राजनेता अमित शाह ने जब 2019 में केंद्रीय गृह मंत्री का पदभार संभाला था, तब उन्होंने लाल आतंक को समाप्त करने की चुनौती को स्वीकार किया। नक्सलवाद एवं माओवाद के नेटवर्क का अध्ययन करने के बाद केंद्रीय गृहमंत्री ने दावा किया था कि मार्च 2026 तक देश नक्सली आतंक से पूरी तरह मुक्त हो जाएगा। उनका दावा सत्य सिद्ध होगा, इसके संकेत लगातार मिल रहे हैं। नक्सली हिंसा से आम लोगों के जीवन को सुरक्षित करने के लिए सुरक्षा बलों को खुली छूट मिली हुई है, जिसके परिणाम भी अच्छे आ रहे हैं। बीते दिन ही छत्तीसगढ़ के बीजापुर में जवानों की बड़ी सफलता मिली है। नक्सलियों के बड़े गिरोह को जवानों ने नेस्तनाबूद कर दिया है। सुरक्षा जवानों ने इस कार्यवाही में लगभग 30 नक्सली आतंकियों को मार गिराया है। यहाँ यह बात अवश्य याद रखें कि भारत सरकार ने नक्सलियों को आत्मसमर्पण करने और हिंसा का रास्ता छोड़ने का प्रस्ताव भी दे रखा है। यानी सरकार की पहली प्राथमिकता शांतिपूर्ण तरीके से नक्सलियों की मुख्यधारा में वापसी कराना है। पिछले दस वर्षों में बड़ी संख्या में नक्सलियों ने हिंसा का रास्ता छोड़ा भी है लेकिन अब भी कुछ लोग हैं जिन्होंने लाल आतंक को अपनी आजीविका बना लिया है। उनके लिए नक्सलवाद धन उगाही का धंधा बन गया है और इसके लिए वे कई बार निर्दोष नागरिकों की जान लेने से भी नहीं चूकते। विकास कार्यों में भी बाधा पहुँचाते हैं। लाल आतंक के कारण जनजातीय समुदाय का बड़ा हिस्सा आधुनिक समय में मुख्यधारा से पीछे छूट गया है। मानवता की रक्षा और शांति बहाली के साथ-साथ देश-समाज की प्रगति के लिए भी नक्सलवाद एवं माओवाद को पूरी तरह समाप्त करना आवश्यक हो गया है। केंद्र सरकार ने वर्ष 2026 तक नक्सलियों का संपूर्ण सफाया करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए विष्णुदेव साय सरकार के साथ मिलकर नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन तेज कर दिया है। इस वर्ष जनवरी से लेकर अब तक प्रदेश में हुए दस मुठभेड़ में 119 नक्सली मारे गए हैं। पिछले वर्ष भी 100 से अधिक अभियान में 239 नक्सलियों को मार गिराया गया था, जिसमें 219 नक्सलियों के शव और बड़ी संख्या में हथियार पुलिस को मिले थे। अन्य नक्सलियों के मारे जाने की बात नक्सलियों ने पर्चा जारी कर स्वीकार किया गया था। कहना होगा कि डबल इंजन की सरकार में 14 माह में 358 नक्सली मारे जा चुके हैं। नक्सलियों के पास अभी भी हथियार छोड़कर शांतिपूर्ण ढंग से जीवन जीने का विकल्प मौजूद है। सरकार की इच्छाशक्ति को देखते हुए उनकी भलाई भी इसी में है कि आतंक का रास्ता छोड़ दें। कहना होगा कि प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार को इसी प्रकार की दृढ़ इच्छाशक्ति के लिए जाना जाता है।