September 17, 2025 6:21 AM

स्टील स्लैग रोड तकनीक ने रचा नया इतिहास: भारत की देन अमेरिका-ओमान तक पहुंची, पर्यावरण संरक्षण और रोज़गार सृजन में बड़ी भूमिका

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स्टील स्लैग रोड तकनीक: भारत की सड़क क्रांति जो पहुंची अमेरिका और ओमान तक

भारत की वैज्ञानिक क्षमता और नवाचार ने एक बार फिर दुनिया को दिशा दिखाई है। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) और सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीआरआरआई) द्वारा विकसित स्टील स्लैग रोड तकनीक अब भारत की सीमाओं से निकलकर अमेरिका के शिकागो और ओमान तक पहुंच गई है। यह तकनीक सड़क निर्माण में क्रांतिकारी बदलाव लाने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण और अर्थव्यवस्था में अहम योगदान देने जा रही है।


क्या है स्टील स्लैग रोड तकनीक?

स्टील स्लैग, स्टील निर्माण के दौरान बचने वाला एक ठोस अपशिष्ट पदार्थ होता है। सामान्यतः इसे बेकार मानकर फेंक दिया जाता है, लेकिन सीएसआईआर और सीआरआरआई ने इसे एक अमूल्य संसाधन में बदल दिया है। वैज्ञानिक प्रक्रिया से इसे सड़क निर्माण में उपयोग योग्य बनाकर प्राकृतिक संसाधनों की निर्भरता को कम करने का रास्ता खोजा गया है।

मुख्य वैज्ञानिक डॉ. सतीश पांडे बताते हैं कि इस तकनीक से निर्मित सड़कें न केवल पारंपरिक सड़कों से तीन गुना अधिक मज़बूत होती हैं, बल्कि 30 से 40 प्रतिशत तक अधिक किफायती भी हैं। पारंपरिक बिटुमिनस सड़कों की तुलना में स्टील स्लैग से बनी सड़कें 12 वर्षों तक बिना मरम्मत के चल सकती हैं


पर्यावरण के लिए वरदान

भारत में हर साल सड़क निर्माण के लिए करीब 1.2 बिलियन टन नेचुरल एग्रीगेट्स (रोड़ी-बजरी) की खपत होती है, जिसके लिए बड़े पैमाने पर खनन करना पड़ता है। इससे न केवल जंगल उजड़ते हैं बल्कि जल-स्रोतों और जैव विविधता पर भी गंभीर खतरे उत्पन्न होते हैं। स्टील स्लैग तकनीक इन खतरों से बचने का रास्ता खोलती है।

इस तकनीक के ज़रिए अब बेकार समझे जाने वाले स्लैग को प्रोसेस कर सड़क निर्माण में उपयोग किया जा रहा है। देश में हर साल करीब 19 मिलियन टन स्टील स्लैग उत्पन्न होता है, जिसे यदि सही तरीके से प्रोसेस कर उपयोग में लाया जाए तो यह भारत के सर्कुलर इकोनॉमी के लक्ष्य में मील का पत्थर साबित हो सकता है।


‘वेस्ट टू वेल्थ’ की दिशा में बड़ा कदम

भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन काम करने वाली इस संस्था ने अब इस तकनीक का लाइसेंस एएम/एनएस इंडिया को दिया है। यह वही कंपनी है जिसने गुजरात के हजीरा में देश की पहली ऑल स्टील स्लैग रोड का निर्माण किया था। अब कंपनी इसे बड़े पैमाने पर निर्माण, विपणन और विक्रय के लिए तैयार कर रही है।

एएम/एनएस इंडिया के वरिष्ठ अधिकारी रंजन धर के अनुसार, यह तकनीक ‘वेस्ट टू वेल्थ’ की नीति का जीवंत उदाहरण है। स्टील स्लैग रोड तकनीक न केवल प्राकृतिक संसाधनों की बचत करती है, बल्कि इससे पर्यावरणीय प्रभाव भी न्यूनतम होता है और निर्माण की गुणवत्ता भी बेहतर होती है।


रोज़गार और अर्थव्यवस्था को नई दिशा

डॉ. सतीश पांडे के अनुसार, इस तकनीक से 2050 तक करीब \$2 ट्रिलियन डॉलर का बाजार तैयार हो सकता है और लगभग एक करोड़ से अधिक नए रोज़गार सृजित हो सकते हैं। यह भारत की आर्थिक विकास यात्रा में एक मजबूत इंजन का काम करेगा।

भारत के स्टील मंत्रालय ने वर्ष 2030-31 तक स्टील उत्पादन क्षमता को 300 मिलियन टन तक पहुंचाने का लक्ष्य तय किया है, जिससे स्टील स्लैग की मात्रा भी 60 मिलियन टन तक पहुंच सकती है। ऐसे में स्टील स्लैग का पुनः उपयोग सड़क निर्माण में बड़े पैमाने पर किया जा सकता है।


अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता और सहयोग

अभी हाल ही में शिकागो (अमेरिका) और ओमान जैसे देशों ने भारत की इस नवाचार तकनीक को अपनाना शुरू किया है। यह भारत के वैज्ञानिक कौशल और टिकाऊ विकास के प्रति समर्पण का प्रतीक है। इन देशों में स्टील स्लैग आधारित सड़कों का निर्माण किया जा रहा है, जो वैश्विक मंच पर भारत की विश्वसनीयता को और बढ़ाता है।

इसके साथ ही भारतीय तकनीक अब IRCTC के माध्यम से डिजिटल बुकिंग, स्पिरिचुअल टूरिज्म प्रोजेक्ट्स, और ‘मेक माय ट्रिप’ जैसी निजी कंपनियों के साथ साझेदारी के ज़रिए पर्यटन क्षेत्र में भी बदलाव लाने की दिशा में काम कर रही है।


स्टील स्लैग रोड तकनीक भारत के ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट’, ‘नेट ज़ीरो टारगेट’, और ‘सर्कुलर इकोनॉमी’ की दिशा में एक अनूठा और प्रभावी कदम है। यह न केवल सड़कों को टिकाऊ और किफायती बनाती है, बल्कि पर्यावरण की रक्षा, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, और आर्थिक विकास के लिए भी एक नया रास्ता खोलती है। भारत की यह तकनीक अब वैश्विक बदलाव की प्रेरणा बन रही है।



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