July 5, 2025 9:30 PM

हथेली में राहु रेखा का संकेत: जीवन में कष्ट, रोग और मानसिक तनाव का कारण बनती है यह रेखा

  • जीवन में आने वाली समस्याओं और बाधाओं का भी संकेत होती हैं। ऐसी ही एक महत्त्वपूर्ण और रहस्यमयी रेखा है

हस्तरेखा शास्त्र में हथेली की रेखाएं न सिर्फ भविष्य के संकेत देती हैं, बल्कि जीवन में आने वाली समस्याओं और बाधाओं का भी संकेत होती हैं। ऐसी ही एक महत्त्वपूर्ण और रहस्यमयी रेखा है – राहु रेखा। इसे कई बार विघ्न रेखा, तनाव रेखा या चिंता रेखा भी कहा जाता है। अगर हथेली में यह रेखा प्रमुखता से दिखाई देती है, तो यह जीवन में धन, स्वास्थ्य और संबंधों से जुड़ी बाधाओं का कारण बन सकती है।

क्या है राहु रेखा?

राहु रेखा आमतौर पर हथेली के मंगल क्षेत्र (हथेली के निचले और बाहरी हिस्से) से निकलती है और जीवन रेखा, भाग्य रेखा, मस्तिष्क रेखा या हृदय रेखा को छूती या काटती है। यह रेखा मोटी, गहरी और स्पष्ट हो तो इसे अशुभ माना जाता है। आमतौर पर हथेली में इसकी 3 से 4 रेखाएं पाई जाती हैं।

राहु रेखा से जुड़ी संभावित समस्याएं:


जीवन रेखा को काटे तो:
व्यक्ति को पारिवारिक जीवन में संघर्ष और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं झेलनी पड़ती हैं।

भाग्य रेखा को काटे तो:
जीवनसाथी की सेहत बिगड़ सकती है और कैरियर में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है।

मस्तिष्क रेखा को काटे तो:
राहु रेखा का मस्तिष्क रेखा से टकराव धन हानि, मानसिक अशांति और बीमारियों का कारण बनता है।

हृदय रेखा को छूए तो:
यह संकेत देता है कि प्रेम संबंधों में दरार, अलगाव या धोखा जैसी घटनाएं हो सकती हैं।

कौन सी राहु रेखा होती है बेहद अशुभ?

विशेषज्ञों के अनुसार, यदि जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा के बीच से राहु रेखा उठती है, तो यह अत्यधिक नकारात्मक प्रभाव डालती है। इससे जीवन में दुर्घटनाएं, अचानक रोग, न्यायिक परेशानियां, या राहु दोष के कारण अपयश का सामना हो सकता है।

मानसिक संतुलन पर असर

जब मंगल क्षेत्र से निकलने वाली दो राहु रेखाएं पास-पास होकर शनि पर्वत (मध्य अंगुली के नीचे का क्षेत्र) के समीप मस्तिष्क रेखा को छूती हैं, तो ऐसे व्यक्ति का मानसिक संतुलन डगमगा सकता है। ऐसे योग अवसाद, भ्रम, या निर्णय लेने में असमर्थता जैसी स्थितियों का कारण बन सकते हैं।

समाधान क्या है?

हस्तरेखा विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि यदि राहु रेखा के प्रभाव जीवन में अधिक स्पष्ट हों, तो राहु शांति मंत्र, हनुमान चालीसा, या दुर्गा सप्तशती का नियमित पाठ करना लाभकारी होता है। इसके अलावा, राहु यंत्र की स्थापना, नीलम या गोमेद धारण करना भी राहु के दुष्प्रभावों को शांत करने के लिए उपयोगी माने जाते हैं।

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