शुभांशु शुक्ला की अंतरिक्ष यात्रा: 41 साल बाद भारत की दूसरी उड़ान, गगनयान को मिलेगा बल
नई दिल्ली। 41 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद भारत के एक और नागरिक ने अंतरिक्ष की यात्रा पूरी कर इतिहास रच दिया है। भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला, जिन्होंने हाल ही में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) में 18 दिन बिताए और सफलतापूर्वक पृथ्वी पर लौटे, ने शुक्रवार को एक ऑनलाइन प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने अनुभव साझा किए।
उनका मिशन केवल एक तकनीकी उपलब्धि नहीं था, बल्कि यह भारत के बढ़ते अंतरिक्ष महत्त्वाकांक्षाओं की ठोस शुरुआत भी साबित हुआ। शुभांशु की इस यात्रा को भारत के बहुप्रतीक्षित गगनयान मिशन के संदर्भ में भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
धरती पर लौटकर कैसा रहा अनुभव?
शुक्ला ने बताया कि अंतरिक्ष से लौटने के बाद गुरुत्वाकर्षण से तालमेल बिठाना उनके लिए सबसे रोचक और चुनौतीपूर्ण अनुभवों में से एक रहा। उन्होंने एक दिलचस्प घटना साझा करते हुए कहा,
“मैंने जैसे ही मोबाइल फोन उठाया, मुझे वह बहुत भारी लगा। तब मुझे अहसास हुआ कि मैं वापस धरती पर हूं।”
एक और मज़ेदार किस्सा बताते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने एक दिन अपने लैपटॉप को बिस्तर पर खिसकाकर रख दिया, यह सोचकर कि वह तैरता रहेगा, जैसा ISS में होता था। पर वह फर्श पर गिर गया। सौभाग्य से वहां कालीन बिछी थी, जिससे कोई नुकसान नहीं हुआ।
VIDEO | "I remember the homework our PM had given me and I have completed it very well," says Indian Astronaut, Group Captain Shubhanshu Shukla, the mission pilot for Axiom Mission 4 (Ax-4).
“1984 में राकेश शर्मा ने भारत की अंतरिक्ष उड़ान की नींव रखी थी। अब 41 साल बाद, यह दूसरी उड़ान है, लेकिन इस बार केवल उड़ने के लिए नहीं, बल्कि नेतृत्व करने के लिए।”
उन्होंने यह भी बताया कि 28 जून को अंतरिक्ष में प्रधानमंत्री मोदी से बात करना उनके जीवन का सबसे यादगार पल था।
“प्रधानमंत्री ने मुझसे कहा था कि हर गतिविधि को रिकॉर्ड करना जरूरी है, और मैंने यह जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभाई।”
एक्सियम-4 मिशन: भारत की ओर से निजी अंतरिक्ष मिशन में ऐतिहासिक भागीदारी
शुक्ला एक्सियम-4 मिशन का हिस्सा थे, जिसे अमेरिका की निजी कंपनी एक्सियम स्पेस ने NASA और SpaceX के साथ मिलकर अंजाम दिया। इस मिशन की एक सीट के लिए भारत ने 548 करोड़ रुपये खर्च किए।
इस मिशन में चार एस्ट्रोनॉट्स को स्पेसएक्स के ड्रैगन यान से 25 जून को फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से अंतरिक्ष में भेजा गया था। ड्रैगन यान ने 28 घंटे में ISS से डॉक किया, जहां सभी एस्ट्रोनॉट्स ने 18 दिन गुजारे। मिशन के अंत में उनकी वापसी 14 जुलाई को हुई, जो 4 दिन की देरी से पूरी हुई।
भारतीय प्रयोगों से गगनयान को मिलेगा बल
शुभांशु शुक्ला का प्रमुख कार्य 7 भारतीय एजुकेशनल संस्थानों के वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम देना था, जिनमें अधिकांश बायोलॉजिकल स्टडीज शामिल थीं। इसके अलावा उन्हें NASA के साथ 5 संयुक्त प्रयोग भी करने थे, जिनका मुख्य उद्देश्य दीर्घकालिक अंतरिक्ष मिशनों के लिए डेटा एकत्र करना था।
इन प्रयोगों से न केवल भारत के वैज्ञानिक समुदाय को मूल्यवान जानकारी प्राप्त हुई, बल्कि आगामी गगनयान मिशन की तैयारी को भी सशक्त आधार मिला।
मिशन का उद्देश्य: अनुसंधान के साथ स्पेस स्टेशन का खाका
एक्सियम-4 मिशन का एक और प्रमुख उद्देश्य प्राइवेट स्पेस ट्रैवल को बढ़ावा देना और भविष्य में एक वाणिज्यिक अंतरिक्ष स्टेशन (Axiom Station) की स्थापना की दिशा में कदम बढ़ाना था। शुभांशु की यह यात्रा इस दिशा में भारत की पहली मजबूत उपस्थिति भी मानी जा रही है।
ISS: अंतरिक्ष में विज्ञान की प्रयोगशाला
शुक्ला की यात्रा इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) तक थी, जो धरती की निचली कक्षा में स्थित मानव निर्मित एक विशाल प्रयोगशाला है। इसकी गति 28,000 किमी प्रति घंटा है और यह हर 90 मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर पूरा करता है। इसमें अमेरिका, रूस, जापान, यूरोप और कनाडा की स्पेस एजेंसियों की साझेदारी है। इसका पहला हिस्सा 1998 में लॉन्च हुआ था।
गगनयान मिशन से जुड़ेगा भारत का अगला कदम
शुक्ला की यह यात्रा भारत के गगनयान मिशन से पहले का एक महत्वपूर्ण अभ्यास मानी जा रही है। यह भारत का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन होगा, जिसे 2027 तक लॉन्च किए जाने की योजना है। इसका उद्देश्य भारतीय एस्ट्रोनॉट्स (गगनयात्री) को पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजना और सुरक्षित रूप से वापस लाना है।
ध्यान देने योग्य है कि:
भारत में उन्हें गगनयात्री,
रूस में कॉस्मोनॉट,
और चीन में ताइकोनॉट कहा जाता है।
भारत का भविष्य अंतरिक्ष में तय हो रहा है
शुक्ला की यह यात्रा यह साबित करती है कि भारत अब केवल अंतरिक्ष यात्राओं का हिस्सा बनने के लिए नहीं, बल्कि ग्लोबल स्पेस पावर बनने के लिए तैयार हो चुका है। वैज्ञानिक अनुसंधान, तकनीकी तैयारी और वैश्विक साझेदारी से भारत की अंतरिक्ष नीतियां तेजी से विस्तार ले रही हैं।
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