July 12, 2025 4:07 PM

अंतरिक्ष में इतिहास रच रहे शुभांशु शुक्ला, भारतीय प्रयोगों से दुनिया को मिल रही नई दिशा

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अंतरिक्ष में इतिहास रच रहे शुभांशु शुक्ला, भारतीय प्रयोगों से विज्ञान को नई दिशा

नई दिल्ली/अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन। भारत के पहले अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) जाने वाले अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने स्पेस में वैज्ञानिक प्रयोगों की एक नई इबारत लिख दी है। एक्सिओम-4 मिशन के तहत 25 जून को नासा के केनेडी स्पेस सेंटर से फाल्कन 9 रॉकेट द्वारा लॉन्च किए गए इस मिशन में शुभांशु अब तक 12 दिन पूरे कर चुके हैं। उनका यह 14 दिवसीय अंतरिक्ष प्रवास न केवल भारत के लिए गौरव की बात है, बल्कि वैज्ञानिक शोधों के क्षेत्र में नई संभावनाओं के द्वार भी खोल रहा है।

“स्पेस में बेहद व्यस्त हूं, भारत के प्रयोगों को लेकर उत्साहित हूं” — शुभांशु

एक्सिओम स्पेस की मुख्य वैज्ञानिक डॉ. लूसी लोव के साथ बातचीत में शुभांशु ने बताया कि वह स्पेस स्टेशन पर लगातार वैज्ञानिक गतिविधियों में जुटे हुए हैं। उन्होंने कहा,

“जब से हम यहां आए हैं, तब से ही काफी व्यस्त हैं। हम अंतरिक्ष स्टेशन पर बहुत सारे प्रयोग कर रहे हैं, जिन्हें लेकर मैं बेहद उत्साहित हूं। यह मिशन माइक्रोग्रैविटी में वैज्ञानिक शोध के लिए नई दिशा तय करेगा और भारतीय वैज्ञानिकों के लिए कई नए रास्ते खोलेगा।”

उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें इस बात पर गर्व है कि ISRO अब वैश्विक संस्थानों के साथ कदम से कदम मिलाकर कार्य कर रहा है।


माइक्रोग्रैविटी में बीजों का अंकुरण — भारतीय विज्ञान की बड़ी छलांग

शुक्ला ने अपने प्रयोगों में ‘स्प्राउट्स प्रोजेक्ट’ को प्राथमिकता दी है, जिसमें उन्होंने मेथी और मूंग के बीजों को अंतरिक्ष में अंकुरित किया है। इस प्रयोग का उद्देश्य यह जानना है कि सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण (माइक्रोग्रैविटी) में बीजों की आनुवंशिकी, सूक्ष्मजीवी पारिस्थितिकी तंत्र और पोषण प्रोफाइल में किस तरह के बदलाव आते हैं।

इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व भारत में कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, धारवाड़ के रविकुमार होसामणि और आईआईटी धारवाड़ के सुधीर सिद्धपुरेड्डी कर रहे हैं। शुभांशु ने इस प्रयोग के दौरान न केवल वैज्ञानिक की भूमिका निभाई बल्कि किसान की भूमिका भी अदा की।

एक्सिओम स्पेस की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि पृथ्वी पर लौटने के बाद इन बीजों की कई पीढ़ियों तक खेती की जाएगी, ताकि यह जाना जा सके कि स्पेस की स्थिति उनके विकास और पोषण पर कैसे असर डालती है।


स्टेम सेल और मस्तिष्क पर स्पेस का असर — मानव स्वास्थ्य के लिए बड़ा शोध

शुक्ला के अन्य अहम प्रयोगों में स्टेम सेल पर स्पेस के प्रभाव और मानव मस्तिष्क पर माइक्रोग्रैविटी का असर भी शामिल हैं। उनका कहना है कि वे स्टेम सेल के प्रयोग को लेकर विशेष रूप से उत्साहित हैं, क्योंकि इससे यह जानने में मदद मिलेगी कि क्या सप्लीमेंट्स के प्रयोग से चोट की रिकवरी तेज की जा सकती है या नहीं

यह शोध आगे चलकर अंतरिक्ष यात्रियों की लंबी अवधि की उड़ानों और पृथ्वी पर गंभीर चोटों के उपचार में नई चिकित्सा पद्धतियों को जन्म दे सकता है।


भारतीय वैज्ञानिकों और वैश्विक विज्ञान के बीच बन रहे हैं पुल

शुभांशु ने खुद को वैज्ञानिकों और अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन के बीच एक पुल बताया और कहा कि उन्हें इस भूमिका पर बेहद गर्व है। उनका कहना है कि यह मिशन भारत के वैज्ञानिकों को स्पेस-रिसर्च की मुख्यधारा में जोड़ने का कार्य करेगा और भविष्य में भारतीय वैज्ञानिक भी अंतरिक्ष में सीधे प्रयोग कर सकेंगे।


अंतरिक्ष यात्रा जल्द हो सकती है पूरी

शुक्ला की 14 दिवसीय अंतरिक्ष यात्रा 10 जुलाई के बाद कभी भी समाप्त हो सकती है। मौसम की स्थिति के आधार पर वे फ्लोरिडा तट पर उतरेंगे। हालांकि, नासा ने अभी तक मिशन की वापसी की अंतिम तिथि घोषित नहीं की है।


भारत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण

एक्सिओम-4 मिशन के तहत शुभांशु शुक्ला का यह अंतरिक्ष प्रवास केवल तकनीकी या वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह भारत के बढ़ते वैश्विक कद और विज्ञान में आत्मनिर्भरता का प्रतीक भी है। इस मिशन के जरिए भारत ने एक बार फिर दुनिया को दिखा दिया है कि वह अंतरिक्ष विज्ञान में नेतृत्वकारी भूमिका निभाने को तैयार है।



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