हिंदू धर्म में शीतला सप्तमी और अष्टमी का विशेष महत्व है। इस दिन माता शीतला की पूजा की जाती है और भक्त पूरे दिन ठंडा भोजन ग्रहण करते हैं। मान्यता है कि यह व्रत रोगों से रक्षा करता है और घर-परिवार में सुख-शांति लाता है। इस दिन महिलाएं विशेष रूप से व्रत रखती हैं और शीतला माता को प्रसन्न करने के लिए विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करती हैं।
शीतला सप्तमी और अष्टमी का महत्व
शीतला सप्तमी और अष्टमी चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में आती हैं। कई स्थानों पर सप्तमी को व्रत रखा जाता है, तो कहीं अष्टमी को। शीतला माता को शीतलता और आरोग्य की देवी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि माता की पूजा करने से चेचक, खसरा, फोड़े-फुंसी और अन्य संक्रामक बीमारियों से रक्षा होती है। खासकर बच्चे इस व्रत का पालन करते हैं ताकि वे बीमारियों से सुरक्षित रहें।
क्यों खाया जाता है ठंडा भोजन?
शीतला सप्तमी और अष्टमी के दिन ठंडा भोजन खाने की परंपरा है, जिसे ‘बासौड़ा’ कहा जाता है। इसके पीछे वैज्ञानिक और धार्मिक दोनों कारण हैं।
- वैज्ञानिक कारण: गर्मियों की शुरुआत में खाने की वस्तुएं जल्दी खराब होती हैं। पुराने समय में जब रेफ्रिजरेटर नहीं होते थे, तब इस दिन पकाया गया भोजन दूसरे दिन खाया जाता था, जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती थी।
- धार्मिक मान्यता: माता शीतला को ठंडक पसंद है। उन्हें ठंडे पकवान जैसे बासी रोटियां, दही, चावल, मीठे पकवान और बिना गर्म किए गए व्यंजन अर्पित किए जाते हैं। मान्यता है कि इससे माता प्रसन्न होकर भक्तों को बीमारियों से दूर रखती हैं।
शीतला माता का स्वरूप और पूजा विधि
शीतला माता को झाड़ू धारण करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है। वे गर्दभ (गधा) की सवारी करती हैं और नीम के पत्तों की माला पहनती हैं। उनके एक हाथ में कलश और दूसरे हाथ में सूप रहता है।
पूजा विधि:
- प्रातः स्नान कर माता की मूर्ति को जल से स्नान कराया जाता है।
- माता को बासी रोटी, मीठे चावल, दही, गुड़ और अन्य ठंडे खाद्य पदार्थ अर्पित किए जाते हैं।
- घर के बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए माता से प्रार्थना की जाती है।
- विशेष रूप से इस दिन नीम के पत्तों का उपयोग किया जाता है, क्योंकि नीम को स्वास्थ्यवर्धक और औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है।
पौराणिक कथा: शीतला माता और राजा के पुत्र की कहानी
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार एक राजा ने शीतला माता की पूजा करने से मना कर दिया। उनकी रानी माता की परम भक्त थीं, लेकिन राजा ने उनका उपहास उड़ाया और माता का व्रत नहीं रखा। माता शीतला इससे क्रोधित हो गईं और राजा के पुत्र को गंभीर चेचक (मसूरिका रोग) हो गया।
राजा ने अपने सभी वैद्यों को बुलाया, लेकिन कोई भी उसका इलाज नहीं कर पाया। तब रानी ने राजा को माता शीतला की शरण में जाने का सुझाव दिया। राजा ने माता की स्तुति की और शुद्ध मन से व्रत रखा। माता शीतला ने प्रसन्न होकर उनके पुत्र को ठीक कर दिया। तब से यह परंपरा चली आ रही है कि जो भी माता शीतला की पूजा करता है और इस दिन ठंडा भोजन ग्रहण करता है, वह संक्रामक रोगों से बचा रहता है।
शीतला सप्तमी और अष्टमी का आधुनिक महत्व
आज के समय में भी यह परंपरा कई घरों में प्रचलित है। लोग इस दिन माता शीतला की पूजा कर ठंडे भोजन का सेवन करते हैं और अपने परिवार के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हैं। इसके साथ ही, नीम, जल और सफाई का विशेष ध्यान रखते हैं, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत लाभकारी होता है।
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