कांग्रेस नेता ने कहा- राजनीति में विरोध चलता है, पर राष्ट्रीय सुरक्षा पर एकजुटता जरूरी

शशि थरूर बोले- देश पहले, पार्टी बाद में; मोदी की नीति और इमरजेंसी पर दिए बेबाक बयान

कोच्चि। कांग्रेस नेता और तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर ने कहा है कि किसी भी नेता की पहली निष्ठा पार्टी से पहले देश के प्रति होनी चाहिए। शनिवार को कोच्चि में 'शांति, सद्भाव और राष्ट्रीय विकास' विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने यह बात कही। थरूर ने कहा कि राजनीतिक दल देश की सेवा का माध्यम हैं, लेकिन जब देश की सुरक्षा या राष्ट्रीय हित की बात हो, तब सभी दलों को मतभेद भुलाकर मिलकर काम करना चाहिए।

“अगर देश नहीं बचेगा, तो पार्टियां भी बेमतलब होंगी”

थरूर ने अपने संबोधन में कहा, “राजनीतिक दल सिर्फ रास्ता हैं, लक्ष्य नहीं। देश को बेहतर बनाना ही असली उद्देश्य है। जब देश ही सुरक्षित नहीं रहेगा, तो पार्टियों का क्या मूल्य रह जाएगा?” उन्होंने कहा कि जब कोई नेता राष्ट्रीय हित में दूसरी पार्टियों के साथ सहयोग की बात करता है, तो कुछ लोग उसे ग़लत समझ बैठते हैं और पार्टी से गद्दारी मान लेते हैं।

थरूर ने जोर दिया कि “राजनीति में वैचारिक प्रतिस्पर्धा स्वाभाविक है, पर जब देश कठिन दौर से गुजर रहा हो, तब नेताओं और दलों को एक साथ खड़े होने की ज़रूरत होती है।”

हाल ही में मोदी की विदेश नीति की तारीफ की थी

थरूर ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति और 'ऑपरेशन सिंदूर' में सरकार और सेना के कार्यों की खुलकर सराहना की थी। इस पर कांग्रेस पार्टी में असहमति के स्वर उठे थे। कांग्रेस ने थरूर की टिप्पणी को उनकी निजी राय बताते हुए खुद को इससे अलग कर लिया।

पार्टी पर पहले भी कर चुके हैं सवाल

यह पहली बार नहीं है जब शशि थरूर ने अपनी पार्टी की लाइन से हटकर विचार रखे हों। इससे पहले भी वे कांग्रेस नेतृत्व और उसकी कार्यशैली को लेकर कई बार आलोचनात्मक टिप्पणी कर चुके हैं।

10 जुलाई: इमरजेंसी को बताया काला अध्याय

10 जुलाई को मलयालम अखबार ‘दीपिका’ में लिखे एक लेख में थरूर ने 1975 की इमरजेंसी को भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय करार दिया। उन्होंने कहा कि इस दौर से न केवल सबक लेना चाहिए, बल्कि यह समझना चाहिए कि सत्ता के केंद्रीकरण और असहमति को कुचलने की प्रवृत्तियां कितनी खतरनाक हो सकती हैं।

उन्होंने विशेष रूप से नसबंदी अभियान को निर्दयी और अमानवीय बताया। “लक्ष्य पूरे करने के लिए गरीबों पर दबाव डाला गया, और झुग्गियां जबरन तोड़ी गईं। हजारों लोग बेघर हो गए,” थरूर ने लिखा।

उनका कहना था कि “लोकतंत्र कोई हल्की चीज़ नहीं है, यह एक विरासत है, जिसे बचाकर रखना सभी की जिम्मेदारी है। जो कुछ भी इमरजेंसी के दौरान हुआ, वह हमें चेतावनी देता है कि लोकतंत्र को कभी भी हल्के में नहीं लेना चाहिए।”

23 जून: मोदी की ऊर्जा को बताया भारत की ताकत

23 जून को 'द हिंदू' में प्रकाशित एक लेख में थरूर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैश्विक सक्रियता की प्रशंसा करते हुए कहा था कि “मोदी की ऊर्जा, वैश्विक मंचों पर उनकी सक्रियता और दूसरे देशों से जुड़ने की क्षमता भारत के लिए लाभदायक रही है। ऐसे प्रयासों को और समर्थन मिलना चाहिए।”

कांग्रेस ने बनाई दूरी

थरूर की इन टिप्पणियों को पार्टी लाइन से अलग माना जा रहा है। कांग्रेस ने साफ किया कि यह उनकी व्यक्तिगत राय है, पार्टी की नहीं। इन बयानों को कांग्रेस नेतृत्व से उनके संबंधों में बढ़ती दूरी के रूप में देखा जा रहा है।